Nobel Peace Prize: जिसका आविष्कार युद्ध में अनगिनत मौतों का कारण बना उसने की थी शांति पुरस्कार की स्थापना

Alfred Nobel Peace Prize Story
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Alfred Nobel Peace Prize Story

Alfred Nobel Peace Prize : दुनिया में इन दिनों नोबेल पीस प्राइज की काफी चर्चा है। अमेरिका जैसे ताकतवर देश के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को शिकायत है कि, लिबरल उन्हें उनके अच्छे काम के लिए यह शांति पुरस्कार नहीं दे रहे। उन्होंने कहा है कि, भारत और पाकिस्तान के बीच परमाणु युद्ध रुकवाने के लिए भी उन्हें यह शांति पुरस्कार नहीं दिया जा रहा। उनके दावों में कितनी सच्चाई है यह तो नहीं बताया जा सकता लेकिन यह कहानी जरूर बताई जा सकती है कि, आखिर दुनिया में शांति पुरस्कार की स्थापना क्यों की गई।

कहानी शुरू होती है अल्फ्रेड नोबेल से, इन्हें 'डायनामाइट किंग' के नाम से भी जाना जाता था। इन्होनें ही शांति पुरस्कार की स्थापित की थी। यह एक बहुत बड़ा विरोधाभास है कि, शांति पुरस्कार की स्थापना करने वाले अल्फ्रेड नोबेल के परिवार का इतिहास युद्ध से जुड़ा हुआ था। उनके पिता, इमैनुएल ने क्रीमियन युद्ध के दौरान रूस के लिए हथियार और खदानें बनाईं।

युद्ध का सामान बनाने वाली 100 फैक्ट्रियों के मालिक :

अल्फ्रेड के पास खुद 350 से अधिक पेटेंट थे, जिनमें से कई विस्फोटकों के लिए थे। उनके सबसे जबरदस्त आविष्कारों में से एक था डायनामाइट। इसका उपयोग कंस्ट्रक्शन और युद्ध दोनों में किया जाता था। उनके पास युद्ध का सामान बनाने वाली लगभग 100 फैक्ट्रियां थीं। इसके चलते वे काफी अमीर हो गए थे।

21 अक्टूबर, 1833 को जन्मे अल्फ्रेड नोबेल की कहानी बहुत ही रोचक है। हथियार निर्माता से लेकर प्रतिष्ठित नोबेल पुरस्कार के संस्थापक तक उनका सफर किसी फिल्मी स्टोरी से कम नहीं।

अल्फ्रेड नोबेल द्वारा शांति पुरस्कार स्थापना का निर्णय कुछ हद तक रहस्य है। शांति पुरस्कार को लेकर कई कहानियां हैं। उनमें से एक है समाचार पत्र में छपे लेख पर आधारित। दरअसल, साल 1888 में एक फ्रांसीसी समाचार पत्र ने गलती से उनके भाई लुडविग के बजाय अल्फ्रेड के लिए एक मृत्युलेख प्रकाशित किया। इस लेख में उन्हें 'मौत का सौदागर' कहा गया, जिसने हथियार बनाकर लाभ कमाया।

अपनी विरासत पर पुनर्विचार करना पड़ा :

कहते हैं कि, इस लेख ने अल्फ्रेड नोबेल के हृदय में परिवर्तन ला दिया। उन्हें अपनी विरासत पर पुनर्विचार करना पड़ा। अल्फ्रेड नोबेल के जीवनीकारों जिनमें केने फैंट भी शामिल है, का सुझाव है कि इस घटना ने नोबेल को अपनी वसीयत को फिर से लिखने के लिए प्रेरित किया, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि उनका नाम युद्ध के बजाय परोपकार के लिए याद किया जाएगा।

गौरतलब है कि, मृत्युलेख की मूल प्रति की पुष्टि नहीं की गई है। इतिहासकार इस बात पर बहस करते हैं कि, क्या यह कहानी सच है या नोबेल के निर्णय को प्रभावित करने वाले कई कारकों में से एक है।

पांच भाषाएं बोलते थे और नाटक और कविताओं का भी शौक :

अल्फ्रेड नोबेल ने रॉयल स्वीडिश एकेडमी ऑफ साइंसेज से पुरस्कार प्राप्त करने के बाद 1868 की शुरुआत में ही विज्ञान पुरस्कारों के बारे में सोचना शुरू कर दिया था। वे बहुत पढ़े-लिखे भी थे, पांच भाषाएं बोलते थे और नाटक और कविताएं लिखते थे।

ऑस्ट्रियाई काउंटेस बर्था वॉन सुटनर भी हो सकती हैं कारण :

शांति पुरस्कार के लिए, यह व्यापक रूप से माना जाता है कि नोबेल की ऑस्ट्रियाई काउंटेस बर्था वॉन सुटनर के साथ दोस्ती शांति पुरस्कार स्थापना की प्रमुख वजह है। बर्था वॉन सुटनर एक प्रमुख पीस एक्टिविस्ट थीं और एंटी वॉर उपन्यास 'ले डाउन योर आर्म्स' की लेखिका थीं।

नोबेल और सुटनर की पहली मुलाकात 1876 में हुई थी, जब उन्होंने कुछ समय के लिए उनके लिए सचिव के रूप में काम किया था। हालांकि वे अलग हो गए लेकिन उनके बीच लंबे समय तक पत्राचार होता रहा। सुटनर ने अक्सर नोबेल को शांति प्रयासों का समर्थन करने के लिए प्रोत्साहित किया, और निरस्त्रीकरण पर उनके विचारों ने उनकी वसीयत में शांति पुरस्कार शामिल करने के उनके निर्णय को प्रभावित किया।

युद्ध का सामान बनाने वाले की शांतिवादी विचारधारा :

युद्ध का सामान बनाने वाले नोबेल ने युद्ध के बारे में विरोधी विचार व्यक्त किए। एक तरफ वे युद्ध का सामान बना रहे थे तो दूसरी ओर वे शांतिवादी विचारधारा का प्रचार कर रहे थे। उन्हें उम्मीद थी कि, उनके आविष्कार अंततः शांति की ओर ले जाएंगे। उन्होंने एक बार कहा था कि वह 'युद्ध का अंत देखना चाहते हैं।'

कुल मिलाकर अल्फ्रेड नोबेल विरोधाभासों से भरे थे। उनकी कहानी यह बताती है कि, कैसे एक व्यक्ति की प्रतिभा रचनात्मक और विनाशकारी दोनों हो सकती है।

नोबेल की वसीयत ने खड़ा किया विवाद :

अल्फ्रेड नोबेल ने पुरस्कारों के लिए अपनी योजनाओं को काफी हद तक गुप्त रखा था। 10 दिसंबर, 1896 को उनकी मृत्यु के बाद उनकी वसीयत ने विवाद खड़ा कर दिया था। कुछ परिवार के सदस्यों ने इसका विरोध किया था और स्कैंडिनेविया में कई लोग उनकी इस शर्त से नाखुश थे कि पुरस्कार राष्ट्रीयता पर विचार किए बिना दिए जाने चाहिए। कानूनी मुद्दों को सुलझाने और नोबेल फाउंडेशन की स्थापना में पांच साल लग गए थे।

हर साल 10 दिसंबर को दिया जाता है यह पुरस्कार :

पहला नोबेल पुरस्कार 1901 में दिया गया था, जिसके प्राप्तकर्ताओं में रेड क्रॉस के संस्थापक हेनरी डुनेंट, कवि सुली प्रुधोम और एक्स-रे खोजकर्ता विल्हेम कॉनराड रॉन्टगन शामिल थे। चार साल बाद, बर्था वॉन सुटनर को नोबेल पर उनकी सक्रियता और प्रभाव को मान्यता देते हुए शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया। तब से, अल्बर्ट आइंस्टीन, मैरी क्यूरी, विंस्टन चर्चिल, अर्नेस्ट हेमिंग्वे और मार्टिन लूथर किंग जैसी हस्तियों को 500 से अधिक नोबेल पुरस्कार दिए जा चुके हैं। अल्फ्रेड नोबेल की मृत्यु की वर्षगांठ यानी 10 दिसंबर को हर साल ये पुरस्कार दिए जाते हैं।

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