शिवराज जी, बचिए अपने सलाहकारों से
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भोपाल/वेब डेस्क। आभासी दुनिया में मचे कोहराम के बाद हरकत में आए मुख्यमंत्री सचिवालय के संकेत पर तुषार पांचाल ने पदभार ग्रहण करने से पहले ही 'ना' कह कर आग पर पानी डालने का काम कर दिया है। पर यह फजीहत एक गंभीर प्रश्न खड़ा कर रही है। सवाल यह कि मुयमंत्री शिवराज सिंह को यह सलाह किसने दी कि तुषार पांचाल को मुयमंत्री का विशेष कर्तव्यस्थ अधिकारी बनाया जाए। मुयमंत्री को चाहिए कि तत्काल न केवल अपने ऐसे सलाहकार के कान पकड़ें और आवश्यक हो तो उन्हें बाहर का रास्ता भी दिखाएं। इस प्रसंग ने यह तो फिर एक बार सिद्ध कर ही दिया है कि मुयमंत्री के आंख, कान उनको सच से दूर रखने का खेल जारी रखे हुए हैं और उसके चलते वह निशाने पर आते हैं। लिखना आवश्यक है कि इससे अकेले शिवराज सिंह ही शिकार नहीं है, देश के बड़े-बड़े नेता अपने सलाहकारों की सच्चाई जानें तो उन्हें पता चलेगा कि उनकी जमीन उनके विरोधी नहीं, उनके अपने ही खिसका रहे हैं। ऐसी ही नियुति कर उत्तराखंड के मुख्यमंत्री, दिनेश मनसेरा को एवं हरियाणा के मुयमंत्री विनोद मेहता को अपना सलाहकार बनवाकर विरोध का सामना कर चुके हैं और यह रोग प्रदेश से लेकर केन्द्रीय स्तर तक है। अनुकूलता देख कई वामी रंग बदलकर सत्ता प्रतिष्ठानों में कुर्सी पर जम गए हैं और जमीनी कार्यकर्ता, यह देखकर हैरान है कि विचार या प्रबोधन अब इनसे लेना है।
बहरहाल ताजा प्रसंग में तुषार पांचाल ने अपनी असमर्थता प्रकट कर दी है कि वह यह पदभार ग्रहण नहीं कर रहे हैं। जाहिर है यह उनसे कहा गया होगा। कारण कल से आज दोपहर तक वे बधाई स्वीकार कर रहे थे। मुंबई निवासी तुषार पांचाल राजनीतिक प्रबंधन, प्रचार तंत्र के विशेषज्ञ माने जाते हैं। वह मुयमंत्री की टीम में लंबे समय से जुड़े हैं। पर यह कार्य एक व्यावसायिक स्तर पर था। हाल ही में 22 विधानसभा के उपचुनाव का प्रचार तंत्र भी इन्हीं की कंपनी के जिमे था। जन संपर्क विभाग का कई कार्य भी इन्हें अनुबंध पर दिया जाता रहा है और आज भी वह कर रहे हैं।
बेशक राजनीति अब एक 'कॉर्पोरेट' ही हो गई है। यही कारण है कि देश के प्रत्येक राजनीतिक दल अपनी-अपनी रणनीति हैसियत के अनुसार लोक संपर्क (पीआर) के लिए सेवा प्रदाता कंपनी को ठेका देते हैं। बड़ी-बड़ी रकम लेकर ये सेवा प्रदाता कंपनी हर राजनेता को जागने से सोने तक का सलीका बताती है। उनके भाषण, ट्वीट, बयान आदि अब इन्हीं के हवाले हैं। तुषार हो या प्रशांत किशोर ये न भाजपा के हैं, न कांग्रेस के, न बसपा के न जनता दल के। जो पैसा दे, उनके लिए ये लिखते हैं। यह कितना नैतिक है, यह आज का विषय नहीं। पर यह सच है कि राजनेता अपने कार्यकर्ताओं पर भरोसा नहीं करते, इनकी आंखों से ही देखते सुनते हैं। नौकरशाही कब किस नेता को किस विशेषज्ञ से जुड़वाना है, इसकी तैयारी करते हैं और यही तुषार पांचाल के मामले में भी हुआ। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह को यह प्रस्ताव भी उन्हीं के खासमखास अधिकारियों में से एक ने दिया एवं उन्होंने स्वीकृति दे दी। जबकि तुषार पांचाल का अपना ट्वीटर, फेसबुक भाजपा एवं विशेषकर नरेन्द्र मोदी की नीतियों का खुलकर विरोध करता है। हालांकि तुषार पहले अमित शाह का कार्य भी देख चुके हैं।
पर अब जब उन्हें मुयमंत्री सचिवालय में खास जिम्मेदारी दी गई तो स्वाभाविक है, प्रश्न खड़े हुए। बहरहाल तुषार पांचाल की भी परवान चढ़ती उम्मीदों पर तुषारपात हुआ। वहीं मुख्यमंत्री के खिलाफ वातावरण बनाने वाले इसे एक ज्वार का स्वरूप देने में जुट गए हैं। इस घटना ने सलाहकारों पर एक गंभीर प्रश्न खड़ा किया है। शिवराज सिंह इस पर कितना और कैसे संज्ञान लेंगे, यह आने वाले दिन बताएंगे।
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