विश्लेषण : रेलवे का "पुनर्गठन" एक गेम चेंजर हो सकता है
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नईदिल्ली/वेब डेस्क। केंद्र सरकार पिछले कुछ समय से भारतीय रेलवे का स्वरुप बदलना चाहती है इस विषय पर रेलमंत्री पीयूष गोयल विभिन्न प्लेटफॉर्म्स पर चर्चा भी करते हैं कभी रेलवे बोर्ड के चेयरमैन तो कभी रेल राज्यमंत्री सुरेश अगाड़ी भी रेल परियोजनाओं को लेकर विस्तृत रूप से बतलाते हैं ।
इसी को ध्यान में रखते हुए हाल ही में रेलमंत्री पियूष गोयल ने रेल संगठन के "पुनर्गठन" के नीतिगत निर्णय की घोषणा की है जिसमे समूह "ए" की आठ विभागीय सेवाओं को मिलाकर भारतीय रेल प्रबंधन सेवा का गठन, रेलवे बोर्ड सदस्य संख्या आधा करना और उत्पादन इकाईओं के महाप्रबंधकों को सचिव स्तर का बनाकर व्यापक निर्णय लिए हैं। उन्होंने रेल विभाग में विभाग कैडर की जो संरचना हैं उसमे से अफसरगिरी के आधार पर कुप्रबंधन का आरोप लगाया है। ऐसा बताया गया हैं की पुनर्गठन का उद्देश्य "विभागवाद" को समाप्त करना है जिससे "सेवाओं का एकीकरण" कर निर्णय लेने में तेजी आएगी और "एक सुसंगत दृष्टि बनाने " के साथ "तर्कसंगत निर्णय लेने की शक्ति को बढ़ावा देंगा "। रेलवे बोर्ड (ट्रैफिक) के पूर्व सदस्य अजय शुक्ला ने इस मुद्दे पर अपने विचार व्यक्त किये जिसमे उन्होंने बताया की -
जानकारी अनुसार रेल परियोजनाओं पर निर्णय के निष्पादन के लिए एक व्यापक समिति जिसमे सचिवों के साथ शायद मंत्रियों के एक समूह द्वारा काम किया जाएगा। पुनर्गठन का एजेंडा दशकों से रेलवे के एजेंडे में है। पूर्व में गठित समितियां 1994 में प्रकाश टंडन से लेकर 2001 में राकेश मोहन, 2012 में सैम पित्रोदा तथा 2015 में बिबेक देबराय की अध्यक्षता वाली विभिन्न समितियों ने इन सुधारों की सिफारिश की थी। अभी तक कुछ स्पष्ट नहीं हैं की यह सुधार वास्तविकता में क्या होंगे ? लेकिन कभी लगता है की यह एक शिगूफा है जो की रेलवे बोर्ड के गलियारों में चर्चाओं का दौर गर्म कर देता है
इससे स्पष्ट है की योजना का विस्तृत विवरण अभी तक उपलब्ध नहीं है, लेकिन फिर भी इस बात पर चर्चा करना सार्थक होगा कि हम निर्णयों के बारे में क्या जानते हैं ? रेलवे बोर्ड का आकार वर्तमान आठ से घटाकर पांच करने का प्रस्ताव है। जोकि अपने आप में एक अच्छा निर्णय है, लेकिन सवाल यह भी उठता है - यदि सरकार बोर्ड के पुर्गठन की योजना बना रही थी तब अप्रैल 2019 मे बोर्ड में सदस्यों के दो अतिरिक्त पद क्यों जोड़े गए? वह किसका तर्कहीन निर्णय था? फिर कौन सी कार्यप्रणाली है जिसके द्वारा ऐसे निर्णय लिए जा रहे हैं?
साथ ही निर्णय लिया गया है की 27 उत्पादन इकाईओं के महाप्रबंधकों के पदों को सचिव स्तर पर गठित किया जाएगा । यहाँ सवाल यह उठता हैं की क्या IAS लॉबी रेलवे अधिकारियों के लिए इतने सचिव स्तर के पद सृजित करने के लिए सहमत होगी - जब तक कि उन्हें शीर्ष पद नहीं दिए जाते ? क्या यही उद्देश्य है ? सचिवों का पैनल इस तरह की सिफारिश कर सकता है, लेकिन क्या वित्त मंत्रालय सहमत होगा? यह दावा किया जाता है कि रेलवे अधिकारियों ने फैसले का स्वागत किया है। वे कैसे कर सकते हैं, जब उन्हें यह भी नहीं पता कि उनके लिए क्या है? उनसे निश्चित रूप से सलाह नहीं ली गई थी।
दूसरी तरफ रेलवे बोर्ड एक गवर्निंग बॉडी है और जो महाप्रबंधक हैं वह पहले से ही बोर्ड के अधीनस्थ हैं। ऐसी दशा में बोर्ड समान रैंक के जीएम (भविष्य में सचिव स्तर के ) को कैसे नियंत्रित करेगा ? क्या यह बोर्ड के सदस्यों को बांझ बनाने के लिए एक चाल है, और जो सिर्फ इसलिए प्रशंसनीय है, क्योंकि एक जीएम और अन्य सदस्य समकक्ष ग्रेड के होते हैं, ऐसी स्थिति में सिर्फ एक असहज के रूप में सदस्य को आसानी से जीएम के रूप में कुछ दूरदराज के कोने में नाम के लिए रखा जा सकता है। वर्तमान सेट-अप में, मंत्री एक सदस्य के बिना कुछ नहीं कर सकता सिवाय खामोशी के... ।
विभागवद को समाप्त करने का निर्णय प्रथम दृष्टया एकदम सही हैं और अच्छा इरादा है। हालाँकि, विभागवाद केवल एक शब्द है और इसका अर्थ रेल उपयोगकर्ताओं के लिए या राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था के लिए कुछ भी नहीं है। हर बड़े संगठन के पास कई विभाग होते हैं। संवर्गों के विलय के बाद भी, विभागों का अस्तित्व बना रहेगा, वे झगड़ते रहेंगे, और इन विवादों को निपटाना मंत्री का काम है। मंत्री को यह भी समझना चाहिए कि समस्या विभागों की नहीं बल्कि उसी की रचना की है, और रेलवे संगठन में उनकी भूमिका की है। इसे राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था के परिप्रेक्ष्य से देखा जाना चाहिए न कि सिर्फ रेलवे से संबंधित मुद्दे के रूप में।
यदि पुनर्गठन ऐसी राष्ट्रीय प्राथमिकताओं को ध्यान में रखते हुए किया जाए तो यह भारतीय रेलवे के लिए ही नहीं बल्कि भारत के लिए एक गेम चेंजर हो सकता है। अन्यथा यह केवल एक बड़ी गड़बड़ ही पैद करेगा।
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