सहकार से समृद्धि: आत्मनिर्भर भारत की सामूहिक चेतना

सहकार से समृद्धि
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सहकार से समृद्धि

डॉ. बलकार सिंह पूनिया: आधुनिक भारत में सहकारिता अब केवल एक संगठनात्मक ढांचा नहीं रही, बल्कि यह आत्मनिर्भरता, समावेशी विकास और ग्राम आधारित आर्थिक शक्ति का वाहक बन चुकी है। हर वर्ष 7 जुलाई को मनाया जाने वाला अंतरराष्ट्रीय सहकारिता दिवस केवल एक स्मृति नहीं, बल्कि उस चेतना का उत्सव है जिसमें ‘मैं’ नहीं बल्कि ‘हम’ का भाव निहित है।

यह वह चेतना है जो व्यक्ति की शक्ति को सामूहिक प्रयास में बदल देती है और समाज को आत्मनिर्भरता की ओर अग्रसर करती है। भारत जैसे विशाल और विविधतापूर्ण देश में सहकारिता का विचार केवल आधुनिक विकास का उपकरण नहीं बल्कि एक सांस्कृतिक परंपरा भी है, जिसकी जड़ें हमारे वेदों, पुराणों और ग्राम्य जीवन के नैतिक तंतुओं में गहराई तक फैली हुई हैं। प्राचीन भारत में सहकारिता ग्राम सभाओं और सामूहिक कृषि प्रयासों के माध्यम से स्वतः स्फूर्त रूप में कार्य करती थी। आज, यही भावना आधुनिक सहकारी आंदोलन के रूप में देश के विकास और समृद्धि की आधारशिला बन चुकी है।

2025 के संयुक्त राष्ट्र अंतर्राष्ट्रीय सहकारिता वर्ष का थीम है "सहकारिताएँ एक बेहतर दुनिया का निर्माण करती हैं" , जो हर जगह सहकारी समितियों के स्थायी वैश्विक प्रभाव को प्रदर्शित करता है। यह थीम इस बात पर प्रकाश डालती है कि कैसे सहकारी मॉडल कई वैश्विक चुनौतियों से निपटने के लिए एक आवश्यक समाधान है और 2030 तक सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) को लागू करने के प्रयासों को तेज करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाना जारी रखता है।

इसका सबसे स्पष्ट प्रमाण हाल ही में नई दिल्ली में आयोजित अंतर्राष्ट्रीय वैश्विक सहकारी सम्मेलन में देखने को मिला, जहाँ 100 से अधिक देशों के लगभग 3,000 प्रतिनिधियों ने भाग लिया। यह न केवल भारत के सहकारी आंदोलन की वैश्विक मान्यता का प्रतीक बना, बल्कि एक समावेशी और वैकल्पिक विकास मॉडल के रूप में भारत की भूमिका को भी रेखांकित करता है।

वर्तमान समय में सहकारिता केवल कृषि क्षेत्र तक सीमित नहीं रही है, बल्कि यह विविध क्षेत्रों में अपनी सशक्त उपस्थिति दर्ज करा रही है। इसमें डेयरी, मत्स्य पालन, जैविक उत्पाद, बीज उत्पादन, खाद्यान्न भंडारण, ग्रामीण बैंकिंग और अब टैक्सी सेवा जैसी शहरी-ग्रामीण परिवहन सुविधाएं भी सम्मिलित हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में सहकारिता क्षेत्र को विशेष प्राथमिकता दी गई है। वर्ष 2021 में सहकारिता मंत्रालय की स्थापना इसी दूरदर्शिता का परिणाम है।

यह मंत्रालय सहकारी संस्थाओं की संस्थागत, वित्तीय, संगठनात्मक, कानूनी और तकनीकी मजबूती के लिए निरंतर कार्य कर रहा है। भारत में सहकारिता की नींव 1904 में पड़ी, जब औपनिवेशिक शासन ने सहकारी ऋण समितियों का अधिनियम लागू किया। उस समय यह एक सीमित प्रयास था, लेकिन स्वतंत्रता के बाद सहकारिता ने एक जनांदोलन का रूप लिया।

आज देश में लगभग 8.54 लाख सहकारी समितियाँ पंजीकृत हैं, जिनमें से साढ़े पाँच लाख के करीब सक्रिय रूप से काम कर रही हैं। ये समितियाँ कृषि, दुग्ध उत्पादन, बैंकिंग, आवास, श्रम, विपणन, उपभोक्ता सेवा से लेकर स्वयं सहायता समूहों तक अनेक क्षेत्रों में फैली हैं।

सहकारी क्षेत्र को सशक्त करने हेतु सरकार ने अनेक संरचनात्मक सुधार किए हैं। वर्ष 2021 में सहकारिता मंत्रालय की स्थापना एक ऐतिहासिक कदम था। यह मंत्रालय सहकारी संस्थाओं के संगठनात्मक, कानूनी, तकनीकी और वित्तीय पक्षों को मजबूती देने के लिए कार्य कर रहा है। 63,000 से अधिक प्राथमिक कृषि ऋण समितियों को एकीकृत डिजिटल प्लेटफॉर्म से जोड़ने का कार्य चल रहा है। इससे ये समितियां सिर्फ कृषि ऋण तक सीमित न रहकर बहुउद्देश्यीय सेवा केंद्र के रूप में कार्य कर सकेंगी।

किसानों के लिए सहकारिता जीवनरेखा है। देश के 86 प्रतिशत से अधिक किसान छोटे और सीमांत हैं, जिनके लिए व्यक्तिगत रूप से आधुनिक संसाधनों तक पहुँचना लगभग असंभव है। ऐसे में प्राथमिक कृषि साख समितियाँ उन्हें सस्ती दरों पर ऋण, बीज, खाद, उपकरण और विपणन की सुविधा देती हैं। भारत के कृषि ऋण वितरण में सहकारी संस्थाओं की हिस्सेदारी 25 प्रतिशत से अधिक है। श्वेत क्रांति की जननी बनी ‘अमूल’ जैसी सहकारी संस्थाएँ इस बात का प्रमाण हैं कि यदि किसानों को संगठित किया जाए तो वे वैश्विक बाज़ार में भी प्रतिस्पर्धा कर सकते हैं।

सहकारिता का सबसे सुंदर पहलू यह है कि उसने समाज के उस वर्ग को नेतृत्व दिया है जिसे दशकों तक हाशिये पर रखा गया महिलाओं को। महिला सहकारी समितियों और स्वयं सहायता समूहों ने देश की लाखों महिलाओं को न केवल आर्थिक रूप से सशक्त किया, बल्कि उन्हें सामाजिक निर्णयों में भागीदारी का अधिकार भी दिलाया।

वर्तमान में 1.8 लाख से अधिक महिला सहकारी समितियाँ देश में कार्यरत हैं और 75 लाख से अधिक स्वयं सहायता समूहों में से अधिकांश महिलाओं द्वारा संचालित हैं। इन समूहों के माध्यम से ₹1.5 लाख करोड़ से अधिक का ऋण वितरित किया जा चुका है, जिसने महिलाओं को खाद्य प्रसंस्करण, दस्तकारी, दुग्ध व्यवसाय और कुटीर उद्योग जैसे क्षेत्रों में आत्मनिर्भर बनाया है।

सहकारिता का यह स्वरूप अब केवल परंपरागत ढाँचे तक सीमित नहीं रहा। डिजिटल युग में सरकार ने 'सहकार से समृद्धि' अभियान के तहत सहकारी संस्थाओं को आधुनिक तकनीक, पारदर्शिता और जवाबदेही से जोड़ने की दिशा में महत्त्वपूर्ण कदम उठाए हैं। जुलाई 2021 में स्थापित केंद्रीय सहकारिता मंत्रालय के नेतृत्व में डिजिटल कोऑपरेशन पोर्टल, सहकार मित्र ऐप और राष्ट्रीय सहकारी नीति जैसे नवाचार सामने आए हैं।

2 लाख से अधिक प्राथमिक कृषि ऋण समितियों के डिजिटलीकरण, 100 नई बहु-राज्यीय सहकारी समितियों की स्थापना और 10 लाख युवाओं को सहकारी उद्यमों से जोड़ने जैसे लक्ष्य न केवल सहकारी आंदोलन को सशक्त बना रहे हैं, बल्कि ग्रामीण भारत की दिशा बदल रहे हैं।

इसी क्रम में, सहकारी शिक्षा और शोध की भूमिका भी निरंतर बढ़ रही । भारत सरकार ने त्रिभुवन सहकारिता विश्वविद्यालय की स्थापना का निर्णय लिया है, जो देश का पहला सहकारिता विश्वविद्यालय होगा. इसका उद्देश्य सहकारी संस्थानों को मजबूत बनाना, युवाओं को समावेशी शिक्षा , प्रशिक्षण और अनुसन्धान के अवसर देना है.यह विश्वविद्यालय गांवों में सहकारी संस्थानों और लघु उधोगो को बढ़ावा देगा. इससे गांवों में रोजगार के अवसर बढ़ेंगे और लोग आत्मनिर्भर बन सकेंगे. .देश में सहकारी क्षेत्र के विकास और विस्तार को देखते हुए प्रशिक्षित मानव संसाधन की जरूरत है। त्रिभुवन सहकारी विश्वविद्यालय इस जरूरत को पूरा करने का काम करेगा।

सहकारी टैक्सी सेवा, जो ग्रामीण और अर्ध-शहरी क्षेत्रों में परिवहन के सुलभ, सस्ते और सुरक्षित साधन के रूप में उभर रही है। देश के कई राज्यों में युवाओं ने सहकारी समूह बनाकर टैक्सी सेवाएं शुरू की हैं, जिससे उन्हें रोजगार मिला है और ग्रामीण क्षेत्रों में आवागमन की समस्याओं का समाधान भी हुआ है। सरकार इस दिशा में तकनीकी सहायता, प्रशिक्षण और सॉफ्टवेयर प्लेटफॉर्म उपलब्ध कराकर इन्हें और सशक्त बना रही है।

यह सहकारिता के नवाचार और सामुदायिक स्वावलंबन का एक सुंदर उदाहरण है।

सहकारिता मंत्रालय दूरदर्शी नीतियों और पहल को लागू करना जारी रखता है ,सहकारी क्षेत्र भारत की आर्थिक आत्मनिर्भरता प्रगति को आगे बढ़ने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए तैयार है ,2025 में अंतराष्ट्रीय सहकारिता वर्ष ,नई दिल्ली में अंतराष्ट्रीय सहकारिता वर्ष में वैश्विक सम्मलेन के साथ ,भारतीय सहकारी आंदोलन की उपलब्धियों और भविष्य की सम्भावनाओ को और बढ़ाएगा ,सहकारी मॉडल ,समुदाय संचालित विकास और आर्थिक असमानताएं के लिए एक स्थायी समाधान प्रस्तुत करता है ,तःथा सभी के लिए समृद्ध और समतापूर्ण भविष्य का मार्ग प्रशस्त करता है।

आख़िरकार, सहकारिता उस भारत की परिकल्पना का आधार है जो केवल आर्थिक रूप से संपन्न नहीं, बल्कि सामाजिक रूप से न्यायसंगत और नैतिक रूप से सहभागी हो। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का यह कथन सारगर्भित है कि “सहकार से समृद्धि, गाँव से वैश्विक तक की यात्रा का माध्यम बन सकती है।” आज आवश्यकता है कि इस विचार को केवल भाषणों या नीतियों तक सीमित न रखकर, उसे जमीन पर उतारा जाए, स्कूलों में शिक्षा के रूप में, विश्वविद्यालयों में शोध के रूप में, गाँवों में संस्था के रूप में और सरकार में निर्णय के रूप में लागू किया जाए । जिस दिन भारत के प्रत्येक गाँव में सहकारिता केवल संस्था नहीं, बल्कि जीवनशैली बन जाएगी, उस दिन हम सच्चे अर्थों में आत्मनिर्भर और सहभागी भारत की ओर बढ़ेंगे—एक ऐसा भारत, जहाँ समृद्धि अकेले नहीं आती, बल्कि सभी को साथ लेकर चलती है।





डॉ. बलकार सिंह पूनिया

सहायक प्रोफेसर

ग्रामीण विकास विभाग

इग्नू, नई दिल्ली

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