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प्रियंका की सक्रियता से कमजोर होंगे राहुल ?

प्रियंका की सक्रियता से कमजोर होंगे राहुल ?
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चुनाव सिर पर हो तो हर राजनीतिक दल आगे बढ़कर अपनी रणनीति बनाता है। प्रियंका गांधी के बारे में लंबे समय से यह बात कही जा रही है कि देश उनमें इंदिरा गांधी की छवि देखता है लेकिन इंदिरा गांधी जैसी दृढ़ता और संकल्प शक्ति जरूरी तो नहीं कि प्रियंका गांधी में हो ही। प्रियंका गांधी को सक्रिय राजनीति में लाने की मांग कांग्रेस में उठती भी रही है। उन्हें उत्तर प्रदेश की बेटी और बहू के तौर पर पेश किया जा रहा है। समझा जा रहा है कि वे रायबरेली से सोनिया गांधी की जगह लोकसभा चुनाव लड़ेंगी। यह भी कहा जा रहा है कि अमेठी में जिस तरह स्मृति ईरानी से राहुल गांधी को चुनौती मिल रही है, उसे देखते हुए राहुल रायबरेली और प्रियंका अमेठी से चुनाव लड़ सकती हैं। पूर्वांचल की प्रभारी होने के नाते प्रियंका पूर्वी उत्तर प्रदेश और बहू होने के नाते पश्चिमी उत्तर प्रदेश की सीटों को कांग्रेस की झोली में डालने का प्रयास करेंगी। वे कितना सफल हो पाएंगी, यह तो वक्त ही तय करेगा।

हालांकि प्रियंका की राजनीतिक छलांग की आधार भूमि राहुल गांधी ने ही तैयार की है। फिर भी आशंका जताई जा रही है कि उनका यह निर्णय उनके प्रधानमंत्री बनने के सपने को चकनाचूर भी कर सकता है। सोनिया गांधी पार्टी की प्रबल मांग के बाद भी बेटी सक्रिय राजनीति का मार्ग नहीं दिखा रही थीं तो एक बड़ा कारण यह भी था कि ऐसे में उनके बेटे का क्या होगा? उन्होंने राहुल गांधी को राजनीति में आगे बढ़ने का भरपूर मौका भी दिया लेकिन वे नाकारा ही साबित हुए। भाजपा ने तो प्रियंका गांधी को महासचिव बनाए जाने के बाद यहां तक टिप्पणी की है कि इससे देश-दुनिया को इस बात का भान हो गया है कि राहुल गांधी फेल हो गये। अब जब लोकसभा चुनाव अधिसूचना में महज दो माह बचे हैं, कांग्रेस का यह निर्णय उसे कहां ले जाएगा, यह सोचने वाली बात होगी। उत्तर प्रदेश में बसपा और सपा से गठबंधन की बाजी राहुल गांधी पहले ही हार चुके हैं। सपा अध्यक्ष अखिलेष यादव भी उन्हें गठबंधन में शामिल न करने की दलीलें पेश कर रहे हैं। राहुल भी कुछ ऐसी ही बात कह रहे हैं कि सपा और बसपा द्वारा उन्हें गठबंधन में शामिल न किए जाने का उन्हें मलाल नहीं है। उनकी अखिलेश- मायावती से कोई दुश्मनी नहीं है। वे तो भाजपा को हराना चाहते हैं और इसके लिए उन्हें हर संभव मदद देंगे। उनका इरादा उत्तर प्रदेश में भाजपा को जीतने से रोकना है। वे कह रहे हैं कि उन्हें मायावती और अखिलेश से प्यार है न कि नफरत लेकिन बुंदेलांड में मायावती और अखिलेश का खेल बिगाड़ने के लिए ही उन्होंने गुना सीट से सांसद ज्योतिरादित्य सिंंधया को पश्चिमी उत्तर प्रदेश का प्रभारी बनाया है। अगर वे बुंदेलखंड की कुछ सीटें भी कांग्रेस को दिलाने में कामयाब रहे तो सपा-बसपा गठबंधन का नुकसान तो वैसे ही हो जाएगा। वैसे राजनीति में सभी कुछ पैंतरे पर होता है। दोस्ती और दुश्मनी बाद में होती है, स्वहित सर्वोपरि होता है। राहुल गांधी को अखिलेश-मायावती को अपना वजूद दिखाना है, अपने प्रयास में वे जितने कामयाब होंगे, भाजपा उतनी मजबूत होगी और सपा -बसपा गठबंधन उतना ही कमजोर।

दूसरी ओर भाजपा का आरोप है कि कांग्रेस उत्तर प्रदेश में गठबंधन नहीं कर पाई तो उसने अपने परिवार में ही गठबंधन कर लिया। राहुल गांधी बहन को महासचिव और पूर्वी उत्तर प्रदेश का प्रभारी बनाकर अपनी बैकफुट पर खेलने वाली अपनी छवि को दुरूस्त करना चाहते हैं। इसमें उन्हें कितनी सफलता मिलेगी, यह तो नहीं कहा जा सकता लेकिन इतना तो तय है कि कांग्रेस में राहुल गांधी के अच्छे दिन अब लदने वाले हैं। युवाओं का रुझान अब प्रियंका की ओर होगा न कि राहुल के। इस सच को नकारा नहीं जा सकता कि साल 2014 में अगर प्रियंका गांधी ने रायबरेली और अमेठी का मोर्चा न संभाला होता तो कांग्रेस को दो सीटें भी नसीब न होंती। वैसे भी पार्टी घर की हो तो कुछ भी हो सकता है। अपने अमेठी दौरे में राहुल गांधी ने कहा है कि प्रियंका गांधी को पूर्वी उत्तरप्रदेश और ज्योतिरादित्य सिंधिया को पश्चिमी उत्तर प्रदेश का प्रभारी उन्होंने केवल दो माह के लिए नहीं बनाया है बल्कि हमेशा के लिए बनाया है। हमने एक मिशन के तहत ऐसा किया है। उन्हें भरोसा है कि अब वे बैकफुट पर नहीं खेलेंगे।

प्रियंका गांधी तो राहुल गांधी की बहन हैं, लेकिन एक दिन पहले ही ज्योतिरादित्य सिंधिया मध्यप्रदेश के निवर्तमान मुख्यमंत्री शिवराज सिंह से मिलकर और उनसे एक घंटे तक बातचीत करके आए हैं। क्या उनकी नियुक्ति कर कांग्रेस डैमेज कंट्रोल कर रही है या मध्यप्रदेश कांग्रेस में बढ़ते असंतोष से निपटने की यह तैयारी भर है। राहुल ने प्रियंका को जहां कर्मठ नेता बताया वहीं ज्योतिरादित्य को डायनेमिक। वैसे यह पहला मौका नहीं है जब राहुल गांधी ने भाजपा को उनसे घबराया न बताया हो। कांग्रेसी नेता इसे राहुल गांधी का बड़ा दांव बता रहे हैं तो भाजपा ने इसे कांग्रेस की आखिरी उम्मीद करार दिया है। दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित की मानें तो प्रियंका गांधी भले ही सक्रिय राजनीति में अब आई हों लेकिन उनके पास राजनीति का लंबा अनुभव रहा है। प्रियंका गांधी के पति रॉवर्ट वाड्रा ने भी उनका हौसला बढ़ाया है और जिंदगी के हर मोड़ पर प्रियंका का साथ देने की बात कही है। हरीश रावत और मोतीलाल वोरा भी राहुल गांधी के इस निर्णय में कांग्रेस का फायदा और युवाओं का अधिकाधिक जुड़ाव देख रहे हैं। राजीव शुक्ला को भी लगता है कि प्रियंका वाड्रा की राजनीतिक सक्रियता से कांग्रेस को न सिर्फ उत्तर प्रदेश में, प्रत्युतर पूरे देश में वापसी करने में मदद मिलेगी। उत्तर प्रदेश के लिए प्रभारी-महासचिव की भूमिका निभा रहे गुलाम नबी आजाद को अब हरियाणा की जिम्मेदारी दी गयी है। गुलाम नबी आजाद को उत्तर प्रदेश से हटाने का मतलब है कि मुसलमान बिदकेंगे। उनकी नाराजगी कांग्रेस पर भारी पड़ सकती है।

चुनाव से पहले राहुल गांधी उत्तर प्रदेश में 10-12 बड़ी रैलियां कर पार्टी के लिए माहौल बनाना चाहते हैं। भाजपा पहले से ही इस दिशा में सक्रिय है। कुंभ, प्रवासी भारतीय सम्मेलन, गणतंत्र दिवस जैसे कई मौके उसके पास हैं। योगी आदित्यनाथ इस बार पांच लाख करोड़ का बजट दे सकते हैं। इन चुनौतियों का सामना प्रियंका गांधी कैसे कर पाएंगी, इस पर भी कांग्रेस को आत्ममंथन करना होगा। भाजपा के खिलाफ कांग्रेस जितना भी दांव खेले लेकिन उसके हर दांव उलटे पड़ रहे हैं। ये दांच चुनाव तक सही हो ही जाएंगे, यह कैसे कहा जा सकता है। अखाड़े के बाहर से दांव बताना आसान है लेकिन अखाड़े में उतरने पर दांव भूल भी जाता है। प्रियंका के साथ ऐसा न हो, इसकी उम्मीद की जा सकती है। वैसे भी प्रियंका जितनी सफल होंगी, कांग्रेस में राहुल गांधी का कद उतना ही कमजोर होगा, इसमें कोई संदेह नहीं है। (लेखक : सियाराम पांडेय 'शांत' )

Updated : 24 Jan 2019 12:11 PM GMT
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