पाकिस्तान में नरक बन गई थी जिंदगी, जीना हो गया था दूभर, इसलिए ग्वालियर आकर बसे
- पाकिस्तान में धार्मिक प्रताडऩा सहने वाले शरणार्थियों ने सुनाई आपबीती
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-नागरिकता संशोधन कानून को बताया नई जिंदगी देने वाला कानून
ग्वालियर। नागरिकता संशोधन कानून को लेकर विपक्षी पार्टियां जहां भ्रम फैलाकर जनता को गुमराह करने में जुटी हैं वहीं दूसरी तरफ पाकिस्तान में धार्मिक प्रताडऩा के चलते भारत आए हिन्दू शरणार्थियों के लिए यह कानून उम्मीद की किरण बनकर आया है। पाकिस्तान में सालों तक यातनाएं झेलने वाले हिन्दू शरणार्थी मंगलवार को सिन्धी धर्मशाला में सांसद विवेक शेजवलकर की बैठक में जुटे। इनमें से कुछ लोगों ने मंच पर आकर पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों पर धार्मिक प्रताडऩा, एक नागरिक के तौर पर भेदभाव, जबरन धर्म परिवर्तन, युवतियों के अपहरण और बलात्कार के आरोप लगाए और मातृभूमि पाकिस्तान को अलविदा कहने की भावुक आपबीती भी सुनाई। सालों तक यातना झेलने के वह मंजर याद कर उनकी आंखें नम हो गईं। इन शरणार्थियों ने नागरिकता संशोधन कानून के लिए नरेन्द्र मोदी सरकार का आभार जताते हुए कहा कि वे अब पाकिस्तान कभी लौटना नहीं चाहते हैं और उन्होंने जल्द से जल्द भारत की नागरिकता मिलने की उम्मीद जताई।
सिंध प्रांत से आए अल्पसंख्यकों ने इस तरह व्यक्त की पीड़ा
बहन-बेटियों के साथ ज्यादती करते थे मुसलमान
श्रीमती जमुनाबाई गिदवानी 1989 में सिंध प्रांत से अपने भाई-बहनों के साथ भारत आईं और ग्वालियर के डबरा में रहने लगीं। उनकी शादी दतिया में हुई। वह बताती हैं कि पाकिस्तान में हम नरक की जिंदगी जी रहे थे। आए दिन मुसलमान हम पर अत्याचार करने के साथ ही बहन-बेटियों के साथ ज्यादती करते थे। जीना मुश्किल हो गया और एक दिन हम सब खुशहाल परिवार छोड़कर भारत आ गए। यातनाओं के वह मंजर याद करके रूह कांप जाती है।
नरक बन गई थी जिंदगी, आज भी होते हैं अत्याचार
साल 2016 में पाकिस्तान से भारत आए जयपाल दास बताते हैं कि आज भी वहां पर रहना बहुत मुश्किल है। नरक की जिंदगी बन गई है। वहां न तो रोजगार है और न ही शांति से रह सकते हैं। हमारे घरों को जला दिया जाता है। आए दिन मारपीट होती है। मजबूरन हमें पाकिस्तान छोड़कर यहां आना पड़ा। हर दो साल में पाकिस्तानी दूतावास में बीजा रिन्यू कराने जाना पड़ता था। यहां भी हमारे से अभद्रता की जाती रही। कई बार हमारे कागज फेंक दिए जाते थे। भारत की नागरिकता न होने से हमें कई कठिनाइयां झेलना पड़ रही हैं। शासन की योजनाओं का हमें पूरा लाभ यहां भी नहीं मिल रहा है। नागरिकता संशोधन कानून से आस जगी है, जो हमारी जिंदगी बदल देगा।
जेहन में आज भी जिंदा हैं यातनाएं
कृष्ण विहार निवासी लोकेश बनवारी अपने परिवार के साथ 1991 में पाकिस्तान के सिंध से भारत आए थे। उस समय उनकी आयु महज सात-आठ साल थी और यह नहीं समझते थे कि हम भारत क्यों आए हैं? लेकिन उनके जेहन में आज भी उनके परिवार के लोगों को दी गईं यातनाएं जिंदा हैं। यह सोचकर ही वह सिहर जाते हैं। लोकेश बताते हैं कि आज भी वहां का मंजर याद है। कभी भी हमारे घरों पर हमले हो जाते थे। माता-पिता हमें गले से लगाकर रात भर ममतामयी सांत्वना देते थे कि सो जाओ। मजबूरन हमें पाकिस्तान छोड़कर भारत आना पड़ा।
नागरिकता न होने से यहां भी नहीं मिल रहा सुविधाओं का लाभ
प्रकाश वर्तमान में डबरा में रह रहे हैं और छोटा-मोटा काम करके जीवन यापन कर रहे हैं। वह अपने भाई और बहनों के साथ 1989 में पाकिस्तान छोड़कर भारत आए थे। वह बताते हैं कि मुसलमानों के अत्याचार इतने बढ़ गई थे कि जीना दूभर हो गया था। हमारे गांव के कई लोगों को मौत के घाट उतार दिया गया तो कई लोग काट दिए गए। घरों को तबाह कर दिया गया। हमें देश छोडऩे के लिए जानबूझकर मजबूर किया गया। यहां आने के बाद नागरिकता न होने से शासन की योजनाओं का लाभ नहीं मिल रहा है। न हमारे आधार कार्ड बने हैं और न ही अन्य दस्तावेज बनाए गए। अब इस कानून के आने से हमें नागरिकता मिल जाएगी।
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