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निर्दोष धर्माचार्या का उत्पीडन
विनोद कुमार सर्वोदय
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वर्षों तक एक विचाराधीन कैदी साध्वी प्रज्ञा को पुरुष पुलिस अधिकारियों व कर्मचारियों द्वारा कठोरतम मानसिक व शारीरिक पीड़ा देना मानवाधिकार व न्याय व्यवस्था का खुला उल्लंघन है। क्यों नहीं ऐसे क्रूरतम कांड के जिम्मेदार सरकारी व राजनैतिक दोषियों पर सर्वोच्च न्यायालय संज्ञान लेता ? ऐसा अगर किसी मुस्लिम या ईसाई के साथ होता तो सेक्युलर व मानवाधिकारवादी मंडली अब तक भारत सरकार को कटघरे में खड़ा कर चुकी होती। लेकिन हिंदुओं की उदारता उन्हें कायर बनाये रखती है। स्वार्थ वश वे किसी न किसी राजनेता के अंधभक्त बनने को विवश होते रहते हैं। इसी कारण धार्मिक प्रेरणा के ओझल होने से उनमें स्वाभिमान व तेजस्विता का निरन्तर अभाव होता जा रहा है।
अपवादस्वरूप साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर जैसे धर्म योद्धाओं की जिजीविषा को तोड़ा जाता है। उनका मानमर्दन करके उनको इतना उत्पीडित किया जाता है कि भविष्य में अन्य कोई ऐसा साहस ही न कर सकें। क्या कारण है कि किसी मुसलमान व ईसाई सजायाफ्ता अपराधियों के साथ भी ऐसे दर्दनाक उत्पीडन का शासकीय व प्रशासकीय आधिकारियों में साहस नही होता ? आपको स्मरण होगा कि 26.11.2008 मुम्बई को लगभग 60 घंटे तक बंधक बनाने वाले आतंकवादी हमलों में पकड़ा गया अजमल कसाब को स्वादिष्ट व्यंजन परोसने में अधिकारियों ने कोई कसर नहीं छोड़ी थी। यद्दपि कालांतर में उसे उसके जिहादी अपराधों पर फांसी दी गई।
लेकिन चिंतन करना होगा कि निर्दोष धर्माचार्या का अपमान व उत्पीडन करने वाले अधिकारी (मृत्युपरांत) हेमंत करकरे व उनके साथी क्षमा योग्य कैसे हो सकते हैं ? जबकि आतंकवादियों के लिए (सितंबर 2008) यमराज बनें शहीद मोहनचंद शर्मा के बलिदान पर गर्व करने के स्थान पर उनकी वीरता पर संदेह करके आतंकियों को उत्साहित करने वालों की देशभक्ति पर संदेह अवश्य होता है।
अतः आज देश की बर्बादी तक जंग करके टुकड़े-टुकड़े करने की देशद्रोही मानसिकता वाले और उनके सहयोगियों को ढूंढ -ढूंढ कर कारागारों में डालना होगा और साध्वी प्रज्ञा जैसे भारतीय अस्मिता व स्वाभिमान के लिए संघर्ष करने वालों से प्रेरणा लेकर राष्ट्रोत्थान में भागीदार बनना होगा।