ज्ञान और आनन्द का पर्व बसंत
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वीणाधरे विपुलमंगलदानशीले,
भक्तार्तिनाशिनि विरिंचिहरीशवन्द्ये।
कीर्तिप्रदेह्यखिलमनोरथदे महार्हे,
विद्याप्रदायिनि सरस्वति नौमि नित्यम।।
भारतीय संस्कृति में प्रकृति को सदैव देव तुल्य माना गया, पूजा गया, प्रकृति से जुडऩे के लिए, इसके संरक्षण के लिए, प्रकृति के रंग में रंग जाने के लिए, हमारे धर्म ग्रंथों में इस बसंत पर्व का विशेष महत्व है। विद्या ज्ञान, विज्ञान, कला, साहित्य और संगीत की अधिष्ठात्री देवी माँ सरस्वती की पूजा का विधान इसी बसंत पंचमी पर होता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार ब्रह्मा जी ने बसंत पंचमी के दिन ही चार भुजाओं वाली शक्ति वीणावादिनी को प्रकट किया था। विद्या के उपासकों में माँ सरस्वती अज्ञानता का अंधकार दूर कर ज्ञान का प्रकाश भर देती है। छह ऋतुओं में बसंत को ऋतुराज कहा गया है। बसंत ऋतु में मौसम बहुत सुहाना हो जाता है पशु पक्षी खूब आनन्दित होते हैं। चारों तरफ खेतों में सरसों के फूल सहज ही आकर्षित करने लगते हैं। प्रकृति का नव-सौंदर्य नव दुल्हन सा देखते बनता है। नवपल्लव, नवकुसुम, नवगंध का अद्भुत संगम सबके मन को भाता है। शीशम के पेड़ पर हरी-हरी कोमल पत्तियाँ आ जातीं हैं। केसरिया रंग प्रकृति के रंगों में घुलमिल जाता है, सेमल के फूल छटा बिखरने लगते हैं, आम्रवृक्ष पर मंजरियाँ लद जाती हैं नारंगी-लाल रंग के फूलों से लदे हुए ढाक के पेड़ प्रकृति को शोभायमान बनाते हैं। पौधो पर गुंजन करते भंवरे रंग बिरंगे फूलों की गंध-रस के आनंद में डूब जाते हैं।
इसीलिए बसंत ऋतु में संस्कृत के कवियों ने कामदेव की कल्पना कर के खूब वर्णन किया है कामदेव को बसंत का मित्र माना गया है इसलिए बसंत अपने मित्र को फूलों का बना हुआ धनुष भेंट स्वरूप देता है।
प्राचीन काल में फागुन से चैत के महीने तक बसन्तोत्सव कई प्रकार से मनाया जाता था। भविष्य पुराण के अनुसार बसंत काल में कामदेव और रति की मूर्तियों की स्थापना और पूजा-अर्चना की जाती है। कामदेव के पांच वाण हैं शब्द, स्पर्श, रूप, रस, गंध। कंदर्प बसंत में जड़ तथा चेतन सभी को उन्मादित आल्हादित कर देता है। आम्र मंजरी सम्मोहन का प्रतीक है जो प्राणियों को मदन भाव से सम्मोहित करती हैं और इसी भाव प्रणय के चित्रण को कवियों ने अपनी कलम से बसंतोत्सव या मदनोत्सव के पर्व के रूप में अपनी कलम से खूब उकेरा है।
रत्नावली नाटिका में सार्वजनिक धूम-धाम और मदनपूजा इन दोनों उत्सवों का बड़ा ही सरस और जीवन्त वर्णन मिलता है इस दिन नगर के सारे पुरवासी नवीन वस्त्र धारण कर मधुर संगीत मृदंग के मादक घोष से समस्त जन मदमत्त हो उठते थे। राजा अपने ऊंचे प्रासाद की सबसे ऊंची चन्द्रशाला में बैठ कर नगरवासियों के आमोद-प्रमोद का रस लेते थे। अन्य स्थान पर वासवदत्ता रानी साड़ी पहनकर जब अशोक वृक्ष के नीचे कामदेव की पूजा कर रही थी तो उसकी साड़ी का रक्तवर्णी पल्ला ध्वनि करता है। उस समय राजा को ऐसा लगा था, जैसे तरुण प्रवाल विटप की लता ही लहरा उठी हो।
भवभूति रचित नाटक मालती-माधव से पता चलता है कि अमात्य भूरिवसु की कन्या मालती भी इस उद्यान में कन्दर्प-पूजन के लिए आई थी। मदन महोत्सव देखने के लिए माधव मदनोद्यान में गया था वहां पर उसे मालती मिली थी। इस पूजन में धार्मिक बुद्धि की प्रधानता होती थी और शोरगुल और हुड़दंग का नाम भी नहीं था। यह मंदिर नगर के बाहर हुआ करता था।
कालीदास ने बसंत ऋतु के सौन्दर्य का वर्णन मेघदूत के उत्तर मेघ के प्रारंभ के श्लोकों में खूब किया है।
यहां अलकापुरी में स्त्रियों के हाथों में कमल वालों में नए कुंद पुष्पों का गुंफन और जूड़े में नवीन कुरबक के पुष्प शोभायमान हो रहे हैं। यक्षप्रिया के नूपुरयुक्त वामचरणों के मृदुल आघात से फूट-उठने वाले अशोक और बकुल के वृक्ष खिल उठने को आतुर हैं। वस्तुत: अशोक और बकुल को इस प्रकार खिला देने का उत्सव बसंत में ही मनाया जाता था।
मालविकाग्निमित्र से पता चलता है कि मदन देवता की पूजा के बाद ही अशोक में फूल खिला देने का अनुष्ठान होता था।
हर्ष चरित में भी मदनोत्सव का वर्णन मिलता है । राजमार्ग पर गीत की ध्वनियां मुखरित हो उठती सुगंधित रंग बिरंगे रंगों सभी दिशाएं रंगीन हो जाती है।
गीता के दशवें अध्याय के पैतीसवें श्लोक में बसंत ऋतु का महत्व बताते हुए भगवान श्री कृष्ण ने स्वयं कहा है कि - बृहत्साम तथा साम्नां गायत्री छन्दसामहम्।
मासानां मार्गशीर्षोऽहमृतूनां कुसुमाकर:।।
सामवेद के प्रकरणों में जो बृहत्साम नामक प्रधान प्रकरण है वह मैं हूँ। छन्दों में मैं गायत्री छन्द हूँ अर्थात् जो गायत्री आदि छन्दोबद्ध ऋचाएँ हैं उनमें गायत्री नामक ऋचा मैं हूँ। महीनों में मार्गशीर्ष नामक महीना और ऋतुओं में फूल खिलाने बसन्त ऋतु मैं हूँ।
ऐसे आनन्दायी बसंत ऋतु के आगमन के लिए चारों दिशाएं प्रकृति नर और नारी, पशु-पक्षी प्रसन्न होकर पीत वर्ण के साथ वसुधैव कुटुंबकम का भाव लेकर सत् संकल्प एवं शुभ कार्यों में संलग्न हो जाते हैं।
-डॉ. ज्योत्सना सिंह
Naveen Savita
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