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स्मृति शेष : जनसेवा और सरोकारों को समर्पित राजनेता रहे नन्नाजी

विवेक कुमार पाठक

स्मृति शेष : जनसेवा और सरोकारों को समर्पित राजनेता रहे नन्नाजी
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वेबडेस्क। 1957 में मध्यप्रदेश की पहली विधानसभा देखने वाले नन्नाजी 104 वर्ष के सरोकारपरक जीवन के बाद नहीं रहे। वे देश के वरिष्ठतम राजनेता एवं जनप्रतिनिधि थे। वे मध्यप्रदेश के तब विधायक बने थे जब राजधानी भोपाल में विधायक विश्राम गृह नहीं था। पहली बार विधायक बने लक्ष्मीनारायण गुप्ता नन्नाजी बांस के तंबुओं में अपने साथी विधायकों के साथ रुके थे। वर्तमान में वे ही उस पहली विधानसभा के अकेले जीवित हस्ताक्षर थे। जनहितकारी राजनीति के प्रतीक नन्नाजी का चले जाना एक युग के समापन जैसा है।

निश्चित ही नन्नाजी सार्वजनिक जीवन एवं राजनैतिक क्षेत्र में हमेशा आशा के सूरज रहेंगे। वे राजनीति की काजल लगी कोठरी में दिन रात बिताकर भी धवल उजले रहे। वे मध्यभारत से लेकर मौजूदा मध्यप्रदेश के गवाह रहे। विपरीत विचारधाराओं वाले भी उनका हमेशा आदर करते रहे और उनसे बराबरी से स्नेह भी पाते रहे।मध्यप्रदेश की पिछोर विधानसभा उनकी कर्मस्थली रही । वे पिछोर से सात बार विधायक व मंत्री चुने जाने वाले लोकप्रिय राजनेता रहे। अलग अलग जातियों की बहुलता वाले पिछोर में नन्नाजी की अपनी सर्वप्रिय जननेता की पहचान रही । मध्यप्रदेश मंत्रीमंडल में उनकी धमक रही । मध्यप्रदेश के राजस्व मंत्री एवं वरिष्ठतम नेता के रुप में जनसंघ, जनता पार्टी और आज की भारतीय जनता पार्टी में उनकी अमिट पहचान रही। हाल ही में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अपनी भोपाल यात्रा के दौरान नन्नाजी से आशीर्वाद लेने पहुंचे थे।

सर्वप्रिय नन्नाजी के नेतृत्व में मप्र के राजस्व विभाग ने भू राजस्व सुधार के क्षेत्र में महत्वपूर्ण काम किया। उन्होंने भूमि सुधारों पर किताब भी लिखी। पिछोर के विधायक रहते हुए नन्नाजी ने आम जनता के लिए गांव गांव भ्रमण कर जीवटता से कार्य किया। वे नियमित दिनचर्या के बाद पूरे समय जनमानस के लिए समर्पित रहे। वे ग्रामीण विधानसभा के किसान हितैषी राजनेता के रुप में पहचाने गए। किसानों की छोटी छोटी समस्याओं के लिए भोपाल और मंत्रालय तक उनके पहुंचने की खूब धमक रही है।

बुंदलेखंड के किसानों की आवाज पर महुआ को एक्साइज टैक्स फ्री कराना उनके कार्यकाल का यादगार संस्मरण है। दरअसल महुआ पूरे पिछोर क्षेत्र में गांव गांव बीना जाता रहा है। इसके फूल से शराब, फल से तेल के अलावा कई उत्पाद बनते हैं मगर शराब के नाम पर महुआ पर सरकार एक्साइज ड्यूटी लेती रही। पिछोर सहित नजदीकी बुंदेलखंड के तमाम किसानों की समस्या सुनकर नन्नाजी से रहा नहीं गया। वे महुआ के फूल बटोरकर गांवां के किसानों से बटोरकर सीधे तत्कालीन मुख्यमंत्री के पास जा पहुंचे। उन्होंने किसानों की बात तब ऐसी प्रभावपूर्ण ढंग से रखी थी कि मौके से ही मप्र सरकार ने महुआ पर एक्साइज ड्यूटी खत्म कर दी जिससे गरीब किसानों को कुछ पैसे कमाने का मौका देने महुआ फिर से एक्साइज फ्री हो गया।

वे राष्ट्रवादी विचारधारा के जितने बड़े व्यक्तित्व थे उतना ही बड़ा उनका प्रशंसक परिवार पिछोर से लेकर समूचे मध्यप्रदेश में रहा। दूसरों की मदद उनका प्रिय काम रहा। लोगों के घर पर आते ही चलो कहां चलना है का दम भरकर वे आंगुतक का हृदय जीत लेते थे। भूख प्यास और अपने कामों को पीछे छोड़कर आम लोगों की मदद करने के उनके किस्से पूरे प्रदेश में लोकप्रिय रहे हैं।नन्नाजी का जन्म अशोक नगर जिले में 6 जून 1918 को हुआ। वे हिन्दू महासभा के कार्यकर्ता के रुप में सार्वजनिक जीवन में आए। हिन्दू महासभा मे ंकाम करते हुए वे अखिल भारतीय कार्यकारिणी के सदस्य तक बने। वे महात्मा गांधी की हत्या से जुड़े मामले में जेल भेजे गए मगर निर्दाष पाए जाने पर उन्हें रिहा कर दिया गया।

नन्नाजी 1967 में गोविन्द नारायण सिंह के मुख्यमंत्री काल में कैबीनेट मंत्री बने। देश में जब भाजपा मंदिर आंदोलन से अखिल भारतीय ताकत के रुप में तेजी से संसद में शतक के करीब पहुंच रही थी तब भी नन्नाजी मध्यप्रदेश सरकार के कैबीनेट मंत्री थे। 1990 से 1992 के उस कालखंड में भाजपा शासन में स्वर्गीय सुंदरलाल पटवा उनके मुख्यमंत्री थे।नन्नाजी राष्ट्रवाद को जीने वाले देशभक्त जनप्रिय नेता थे। युवावस्था में हिन्दुत्व के नायक स्वातंत्रय वीर सावरकर, कश्मीर की स्वतंत्रता के लिए प्राण न्यौछावर करने वाले राष्ट्रवादी श्यामा प्रसाद मुखर्जी, एकात्म मानववाद के प्रणेता पंडित दीनदयाल उपाध्याय जैसे राष्ट्रवादी विचारकों और उनकी प्रेरणा ने युवा लक्ष्मीनारायण गुप्ता को नन्नाजी बनने के लिए दिशा दी थी।

आज की सशक्त भाजपा की रचना करने वाले अग्रणी जननेताओं में कुशाभाउ ठाकरे, राजमाता विजयाराजे सिंधिया भारत रत्न पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से नन्नाजी की अतिशय आत्मीयता और आपसी विश्वास का मधुर संबंध रहा । मप्र के शीर्षस्थ संघ विचारक और भाजपा के बुजुर्ग नेता उनके आत्मीय मित्र रहे हैं।वे बिना सरकारी बंगले वाले राष्ट्रीय पहचान वाले जननेता रहे। घर पर सरकारी फोन, सरकारी गाड़ी और तमाम सरकारी सुविधाओं के बिना लोगों की मदद करना उनकी नेकी के लिए जिद रही। पिछोर तहसील, शिवपुरी की कलेक्ट्रेट, ग्वालियर की कमिश्नरी और भोपाल के वल्लभ भवन तक वे निरंतर आम लोगों की समस्याओं के निराकरण के लिए जाते रहे। न्याय, हक और जरुरतमंद की लड़ाई में वे दलगत भावना से उपर रहे। नस्वर देह त्यागकर भी वे हमेशा अच्छाई की कमी वाले वर्तमान समय में निश्चित ही आशा का उजियारा दिखाने वाले सूरज रहेंगे।


Updated : 15 Jan 2022 2:28 PM GMT
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