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मुलायम सिंह ने मुस्लिम आतंकियों के साथ मिलकर रामभक्तों पर चलवाई थी गोली – रामविलास वेदांतीजी महाराज

अनीता चौधरी

मुलायम सिंह ने मुस्लिम आतंकियों के साथ मिलकर रामभक्तों पर चलवाई थी गोली – रामविलास वेदांतीजी महाराज
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वेबडेस्क। ये मेरी अयोध्या की यात्रा थी , राम के पैड़ी पर चलते हुए कदम अनायास ही रामजन्म भूमि लड़ाई के अग्रणी संत रामविलस वेदांती जी महाराज के आश्रम हिन्दू धाम की तरफ चल पड़े । महाराज जी अपने आश्रम मे ही कुछ लोगों के साथ बैठे थे । मैंने अपना परिचय दिया और अपने अखबार के लिए एक इंटरव्यू की इच्छा व्यक्त की ।

स्वदेश अखबार के साथ अपने एक्सक्लूसिव इंटरव्यू में हिन्दू धाम के के महान संत रामविलास वेदांतीजी महाराज ने अपने बात चीत की शुरुआत में ही 1990 में रामभक्त कारसेवकों के उस बलिदान को याद करते हुए समाजवादी पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह पर बड़ा आरोप लगाया है और कहा है कि 1992 में रामभक्तों पर गोली चलाने वाला कोई भी हिन्दू पुलिसकर्मी नहीं था । जब पुलिस वालों को मुलायम सिंह ने गोली चलाने का आदेश दिया था तब हिन्दू पुलिसकर्मियों ने गोली चलाने से मना कर दिया था । 30 अक्टूबर 1990 को जब कार सेवक अयोध्या जब पहुंचे तब हिन्दू पुलिसकर्मी ड्यूटी पर तैनात थे लेकिन गोली चलाने से जब उन्होंने ने मना कर दिया था । ऐसे में मुलायम सिंह का विश्वास हिन्दू पुलिस कर्मियों के ऊपर से उठा चुका था तब इसलिए रामभक्तों को रामजन्मभूमि पर जाने से रोकने के लिए 2 नवंबर 1990 को मुलायम सिंह यादव ने आतंकवादी मुसलमानों को पुलिस की वर्दी पहना कर ड्यूटी पर लगा दिया था । लगभग 500 इस्लामिक आतंकवादी मुसलमान पुलिस की वर्दी में चौराहे पर खड़ा थे ।

रामभक्त कारसेवा के लिए जब आगे बढ़े तो उनमें कोलकाता के कोठारी बंधु भी थे । जय श्री राम का नारे लगाते हुए कोठारी बंधुओं में से बड़ा भाई अभी हनुमान गढ़ी चौराहा पर पहुंचा ही था कि पुलिस वर्दी पहने आतंकवादी रूपी मुसलमानों ने राम कोठारी की छाती पर गोली मार देते है और वो वहीं गिर जाते हैं । जब छोटा भाई बड़े भाई को बचाने के लिए आगे बढ़ता है तब उन्ही आतंकवादी मुस्लिम पुलिस के द्वारा छोटे भाई को खींच कर उसके सिर पर गोली मार दी जाती है। आपको पता होगा कि भीड़ को रोकने के लिए हवी फ़ाइरिंग की जाती है , पैर में गोली मारी जाती है लेकिन सिर में कब सुन है किसी पुलिसकर्मी को आम लोगों को गोली मराते हुए । इसी प्रकार निर्ममता से संकड़ों रामभक्तों को उन इस्लामिक आतंकवादी फर्जी पुलिस के द्वारा मारा और घायल किया जाता है और लाशों को सरयू में डाल दिया जाता है । मुलायम सिंह यादव ने स्वयं आतंकवादियों से मिल कर अयोध्या में ऐसा कुकृत्य करवाया था । जो काम आज तक किसी ने नहीं किया वो काम मुलायम सिंह यादव ने इस्लामिक आतंकवादियों को पुलिस कि वर्दी पहना कर अयोध्या के कार सेवकों को मारने के लिए किया था । मुलायम सिंह यादव की इस सच्चाई से अखिलेश और शिवपाल यादव और समाजवादी अनभिज्ञ हैं लेकिन मुलायम सिंह अच्छी तरह से जानते थे अब वो नहीं रहे लेकिन आज अगर वो जिंदा होते और उनसे पूछा जाता तब वो खुद स्वीकार करते कि हाँ उन्होंने ही आतंकवादियों को पुलिस की वर्दी पहना कर भेजा था । यहाँ गौर करने वाली बात ये है जब धोखे से एक हिन्दू पुलिसकर्मी द्वारा गलती से एक बंदर को गोली लगती है तो वो राम-बल्लभ कुंज घाट के बगल में उसकी समाधि तैयार करवाता है।

जब एक संत की राम मंदिर की लड़ाई में जुडने के वृतांत पर हमने सवाल किया तो रामविलस वेदन्ती जी का कहना था कि 1528 में जब बाबर ने विक्रमदित्य द्वरा पुनर्जागृत की गई राम मंदिर पर अवैध गुंबज बनाया तब से राम मंदिर की लड़ाई शुरू हुई और लगातार चलती रही । रामभक्त इस लड़ाई से कभी पीछे नहीं हटे । लेकिन आजादी के बाद सन 1984 में इस लड़ाई को समाप्त करने और भव्य रामलाल मंदिर बनाने के लिए उस समय के विश्व हिन्दू परिषद के अंतर्राष्ट्रीय अध्यक्ष अशोक सिंघल जी ने दिगम्बर अखाड़ा मे एक बैठक की थी ।

इस बैठक राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के मोरो पिंगले जी थे, आचार्य गिरिराज किशोर जी थे, ओंकार भावे जी थे,श्रीराम बल्लभ कुंज के संत थे,जानकी घाट के महंत पंडित श्री हरिनाम दासवेदन्ती जी थे,पंडित अखिलेश्वर दास जी थे,प्रेमदास रामयणी जी थे ,छप्पन किला के स्वामी सीता राम शरण जी थे,महंत रामस्वरूप शरण जी थे, खुद मैं था और साथ में अयोध्या के बहुत से संत महात्मा थे । अशोक सिंघल जी चाहते थे कि राम मंदिर की लड़ाई की बागडोर अयोध्या के ही कोई संत-महंत “रामजन्म भूमि मुक्ति समिति” का अध्यक्ष बन कर संभाले । लेकिन कॉंग्रेस सरकार की डर से अयोध्या के कोई भी संत तैयार नहीं हुए । तब गोरक्षपीठ धाम के महंत अवैधनाथ जी ने कहा था उनको गोरखनाथ मंदिर की चिंता नहीं है उन्हें अपने रामलाला कि चिंता है। इसतरह से इस लड़ाई की अगुवाई के लिए वो आगे बढ़े और श्री रामजन्म भूमि मुक्ति यज्ञ समिति” के अध्यक्ष बने। उस समय दाऊ दयाल खन्ना जी महामंत्री बने और अयोध्या के संत के तौर पर खुद रामविलस वेदन्ती जी महाराज उसके सदस्य बने ।

पूज्य परमहँस जी महाराज और राजमाता सिंधिया को उपाध्यक्ष बनाया गया और इस तरह से फिर देश के 51 लोगों की एक कमिटी बनी। इस कमिटी द्वारा ये निर्णय लिया गया कि जनपुर से एक राम-जानकी रथ चलाई जाए ये रथ पूरे देश कब्रमन करते हुए अयोध्या आया और इस तरह से रामजन्म भूमि लड़ाई को लेकर फिर से एक माहौल बन गया। राम विलास वेदांती जी ने बताया कि इस लड़ाई में 1990 का वो समय भी आया जब रामभक्तों ने मुलायम सिंह के राजनीतिक दमन की क्रूरता देखी। 5 दिसंबर 1992 को सरयू तट पर वेदन्ती जी के हिन्दू धाम आश्रम में महंत अवैधनाथ जी की अध्यक्षता मे फिर से संतों की एक बैठक हुई जिसमें निर्णय लिया गया कि 6 दिसंबर को कारसेवा दोबारा प्रारंभ होगी। 6 दिसंबर को कारसेवा जब प्रारंभ हुई तब संकल्प पत्र लेकर अशोक सिंघल जी वेदन्ती जी को भेजा। उन्होंने बताया कि जैसे ही वो संकाल्प करवाना शुरू किये, कारसेवक अपना संकल्प पूरा करने के लिए रामजन्मभूमि परिसर पर पहुँच गए और ढ़ाचा तोड़ना शुरू कर दिया । इस बीच महंत अवैधनाथ जी, अशोक सिंघल जी ,आडवाणी जी, जोशी जी, राजमाता सिंधिया और उमा भारती भी वहाँ पहुंचीं गईं । इनलोगों ने रामभक्तों को उतारने की बहुत कोशिश की लेकिन कारसेवक उनकी बात सुनने को तैयार नहीं थे । महज पाँच घंटे में ढांचा टूट चुका था । रात भर वहाँ कारसेवा चली । वहाँ एक राम चबूतरा बनाया गया जहां रामलला विराजमान थे । रामविलस वेदन्ती जी उस घटना को याद करते हुए आगे बताते हैं कि उसके बात उनके गुरूभाई आचार्य सतेन्द्र दास पुजारी ने विद्या भास्कर,वसुदेवाचार्य, जगतगुरु राममनोजाचार्य के साथ भगवान रामलला के लड्डू गोपाल स्वरूप को अपनी गोदी में उठाया कर वहीं बैठ गए । रात भर कारसेवा चली और एक भव्य मंदिर बन कर तैयार हो गया । रात के डेढ़ बजे रामलला की आरती हुई फिर पुजारी सतेन्द्र दासजी वहीं बैठ गए । इसके बाद कर्फ्यू लग गई और कल्याण सिंह ने इस्तीफा दे दिया । उत्तरप्रदेश , मध्यप्रदेश ,राजस्थान जहां भी भाजपा की सरकार थी उस समय के प्रधानमंत्री नरसिंहाराव ने उन्हें बर्खास्त कर दिया । जब 1996 में 13 दिन की अटाल बिहारी बजपाई की सरकार बनी तो उन्होंने बताया कि वो भी सांसद बने । उसके बाद लगातार 3 बार अटल जी प्रधानमंत्री बने । प्रधानमंत्री रहते हुए बाजपाई जी ने जन्मभूमि पर पुरातत्व विभाग को खुदाई के निर्देश दिए । इस खुदाई के दौरान राम रामजन्म भूमि से जुड़े कई साक्ष्य मिले। रामबिलस वेदन्ती जी ने इस साक्षात्कार में बताया कि 2005 में हाई कोर्ट में रामजन्म भूमि पर उनकी गवाही हुई । गवाही के दौरान उन्होंने सिद्ध किया कि जहां रामलाल विराजमान हैं वहीं जन्मभूमि है । जज साहब ने इसको लेकर प्रमाण भी मांग तब कोर्ट मे उन्होंने बाल्मीकि रामायण को साक्ष्य बनाते हुए कहा कि अयोध्या में राम जन्म को लेकर बाल्मीकि रामायण मे लिखा है कि —

ततो य्रूो समाप्ते तु ऋतुना षट् समत्युय: । ततश्च द्वादशे मासे चैत्रे नावमिके तिथौ॥ नक्षत्रेsदितिदैवत्ये स्वोच्चसंस्थेषु पंचसु । ग्रहेषु कर्कटे लग्ने वाक्पताविन्दुना सह॥ प्रोद्यमाने जनन्नाथं सर्वलोकनमस्कृतम् । कौसल्याजयद् रामं दिव्यलक्षसंयुतम् ॥ जिसका भावार्थ है चैत्र मास के शुक्लपक्ष की नवमी तिथी को पुनर्वसु नक्षत्र और कर्क लग्न में कौशल्यादेवी ने दिव्य लक्षणों से युक्त सर्वलोकवन्दित श्री राम को जन्म दिया। यानी जिस दिन भगवान राम का जन्म हुआ उस दिन अयोध्या के तारों और नक्षत्रों की स्थिति का इसमें साफ-साफ वर्णन है । यही नहीं रामायण में जिक्र नक्षत्रों की इस स्थिति को नासा ने भी माना है । नासा द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले सॉफ्टवेयर प्लैनेटेरियम गोल्ड में उस वक्त की सितारों की स्थिती से मिलान की गई तो ठीक वही तिथि निकाल कर आई । वाल्मीकि रामायण की तिथि से मिलान करने पर जो दिन मिला, वो दिन 10 जनवरी 5114 ईसा पूर्व है । उस दिन दोपहर 12 बजे अयोध्या के आकाश पर सितारों की स्थिति वाल्मीकि रामायण और सॉफ्टवेयर दोनों में एक जैसी ही है। इस तिथि को जब आधुनिक कैलेंडर की तारीख में बदला तो वो वैज्ञानिक ये जान कर हैरान रह गए कि सदियों से भारतवर्ष में रामलला का जन्मदिवस बिल्कुल उसी तिथि पर मनाया जाता या रहा है। उन्होंने बताया कि कोर्ट में फिर उन्होंने करपत्रीजी महाराज की रामायण मीमांसा का भी हवाला दिया जिसमें व्याख्या किया गया है कि एक करोड़ 81 लाख साठ हजार , पैंसठ वर्ष पहले रामलला का जन्म उसी स्थान पर हुआ था जबकि बाबरी मस्जिद कमिटी के वकील ने कोर्ट को बताया कि 1528 में बाबर ने मंदिर को तोड़ कर मस्जिद बनाई थी । बाल्मीकि रामायण आधार पर दिए गए उनके बयान को कोर्ट ने प्रमाण माना । उसके बाद हाई कोर्ट से मुकदमा सुप्रीम कोर्ट गया । सुप्रीम कोर्ट में भी उनके द्वारा दिए गए साक्ष्य को प्रमाण माना गया और 9 नवंबर 2019 को फैसला आया जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने भी माना की जहां रामलला विराजमान हैं वही रामजन्मभूमि है । सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर भारत सरकार ने पार्लियामेंट में कानून बनाते हुए एक एक नए ट्रस्ट की स्थापना की जिसका नाम श्री रामजन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र रखा गया । 5 अगस्त 2020 को भूमि पूजन के साथ मंदिर निर्माण कार्य शुरू हुआ । रामजन्मभूमि की लड़ाई खत्म हो चुकी है । उन्होंने कह कि ये हम सबका सौभाग्य है कि हम उस काल के साक्षी बन रहे जब हमारे रामलला एक ऐसे भवन रूपी मंदिर में सोने के सिंहासन पर विराजमान हैं जिसके सोने के फाटक हैं ।

अयोध्या के विकास पर उनका कहना था कि विकास कार्य के लिए 85 हजार करोड़ का बजट है और चहुं दिशा विकास कार्य हो रहे हैं । सरयू सजी हुई है , दीपोत्सव मनाए जा रहे हैं । अयोध्या का ऐसा मंगलमय दिव्य दृश्य है मानों प्रतीत हो रहा है कि धरती पर कलयुग में त्रेतायुग का अयोध्या में आगमन हुआ है । जो दृश्य त्रेता में रामजन्म और प्रभु के वनवास वापसी था आज वही दृश्य अयोध्या में देखने को मिल रहा है ।

जवाहर लाल नेहरू को भी रामविलस वेदन्ती जी ने राम विरोधी बताया। उस व्यक्त की एक घटना उल्लेख करते हुए उन्होंने बताया कि आजादी के बाद जवाहरलाल नेहरू देश के प्रधानमंत्री बने थे ।उसी समय 1949 में रामलला का प्रकट्य हुया था। तब रामलला कि मूर्ति को हटाने के लिए 23 दिसंबर 1949 की सुबह उन्होंने उस वक्त के उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री गोविंद बल्लभ पंत को अयोध्या भेजा था । नेहरू के आदेश पर गोविंद बल्लभ पंत फैजाबाद तक पहुँच चुके थे लेकिन उस समय के सिटी मजिस्ट्रेट ठाकुर गुरुदत्त सिंह ने गोविंद बल्लभ पंत को अयोध्या में प्रवेश नहीं करने दिया । उसी वक्त गोरखपुर के महंत दिग्विजय नाथ जी रामलला कि सेना के साथ अयोध्या पहुँच चुके थे । उन्होंने रालाला कि मूर्ति को हटाने नहीं दिया । गोविंदबल्लभ पंत वापस चले गए लेकिन 30 दिसंबर को सिटी मजिस्ट्रेट ठाकुर गुरुदत्त सिंह से त्यागपत्र ले लिया गया ।

शंकराचार्य जी पर रामविलस वेदन्ती जी का कहना था कि ,इस तरह के वक्तव्य शंकराचार्य का नहीं है ये कॉंग्रेस, सपा और ममता बनर्जी का काम है । ये शंकराचार्य को बदनाम करने का षड्यन्त्र है । शंकराचार्य के नाम पर साधु-संतों को बदनाम किया जा रहा है । लेकिन अब इस षड्यन्त्र का पर्दाफाश हो चुका है । हाई कोर्ट , सुप्रीम कोर्ट रामलला के साथ है। अब प्राण प्रतिष्ठा में किसी भी तरह का कोई विघ्न नहीं उत्पन्न हो सकता है । सोमवार 22 जनवरी को पूरा विश्व रामलला के प्राण प्रतिष्ठा का साक्षी बनेगा । 33 करोड़ देवताओं रामलला के साथ हैं और सभी देवी देवताओं रामजन्मभूमि के पक्ष में है । अब उस शुभ घड़ी के बस कुछ ही घंटे रह गए हैं जब रामलला अपने अलौकिक, भव्य, दिव्य मंदिर में विराजमान होंगे ।

Updated : 21 Jan 2024 4:24 PM GMT
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