मालेगांव केस: स्वदेश के साक्षात्कार में सुरेश चव्हाण ने उजागर की हिंदू विरोधी साजिश, 17 साल बाद मिला अन्यायपूर्ण न्याय

नई दिल्ली: अनिता चौधरी। वर्ष 2008 में महाराष्ट्र के मालेगांव में हुए बम धमाकों के मामले में 17 साल बाद विशेष एनआईए कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला सुनाया है। इस धमाके में 6 लोगों की जान गई थी और दर्जनों घायल हुए थे। मामले में मुख्य आरोपियों में शामिल भोपाल से बीजेपी की पूर्व सांसद साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर और सेना के पूर्व अधिकारी लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद श्रीकांत पुरोहित सहित सभी सात आरोपियों को कोर्ट ने बरी कर दिया है।
कोर्ट ने अपने फैसले में स्पष्ट किया कि अभियोजन पक्ष ठोस और विश्वसनीय सबूत पेश करने में नाकाम रहा, जिसके अभाव में आरोपियों को बाइज्जत बरी किया जाता है। इस फैसले ने न केवल मालेगांव केस की सच्चाई को उजागर किया, बल्कि 'भगवा आतंकवाद' के झूठे नैरेटिव को भी ध्वस्त कर दिया, जिसे कांग्रेस शासनकाल में कथित तौर पर प्रचारित किया गया था।
इस ऐतिहासिक फैसले के बाद सुदर्शन न्यूज के संस्थापक और मालेगांव केस के चश्मदीद पत्रकार सुरेश के. चव्हाण ने स्वदेश के साथ एक विशेष साक्षात्कार में इस मामले से जुड़ी कई परतें खोलीं। चव्हाण ने उस दौर को याद करते हुए बताया कि कैसे 2008 में मालेगांव ब्लास्ट के बाद भगवा आतंकवाद का नैरेटिव गढ़ा जा रहा था और उस समय सरकार के सुर में सुर मिला कर कुछ मीडिया हाउस भी इस नैरेटिव का जबरदस्त साथ दे रहे थे , विशेषकर एनडीटीवी ।
प्रणय रॉय और सागरिका घोष ने एनडीटीवी के माध्यम से प्लांटेड स्टोरी गढ़ने में कोई कमी नहीं छोड़ी । यहाँ तक की सुदर्शन न्यूज के खिलाफ बेबुनियाद आरोप भी लगाए। उन्होंने कहा, “एनडीटीवी ने हेडलाइन चलाई थी- ‘पहले खबर, फिर बम धमाका’, यह दावा करते हुए कि सुदर्शन न्यूज ने धमाके से पहले ही इसकी खबर चला दी थी। यह पूरी तरह झूठ था। इतना ही नहीं, एनडीटीवी ने यह भी आरोप लगाया कि मालेगांव धमाकों में मेरा हाथ है।”
चव्हाण ने कहा कि, आज 17 साल बाद कोर्ट ने सच को सामने ला दिया। भगवान के घर देर है, अंधेर नहीं। यही नहीं भगवान ने प्राकृतिक इंसाफ़ भी किया और आज हमारा चैनल स्वतंत्र रूप से चल रहा है, जबकि एनडीटीवी के मालिक को अपना चैनल अडानी को बेचना पड़ा।”
‘भगवा आतंक’ की साजिश का पर्दाफाश
सुरेश के. चव्हाण ने साक्षात्कार में खुलासा किया कि मालेगांव ब्लास्ट केस के जरिए हिंदू धर्म को आतंकवाद से जोड़ने की एक सुनियोजित साजिश रची गई थी। उन्होंने कहा, “कांग्रेस शासनकाल में ‘हिंदू आतंकवाद’ की थ्योरी गढ़ी गई थी, जिसके तहत साध्वी प्रज्ञा, कर्नल पुरोहित और रिटायर्ड मेजर रमेश उपाध्याय जैसे लोगों को निशाना बनाया गया। यह साजिश 2002 के गुजरात दंगों के बाद पीएम नरेंद्र मोदी, संघ प्रमुख मोहन भागवत और अन्य हिंदूवादी नेताओं को फंसाने की कोशिश का हिस्सा थी।”
चव्हाण ने दावा किया कि साध्वी प्रज्ञा को एटीएस ने बेरहमी से प्रताड़ित किया, जिसमें उन्हें एक साध्वी होने के बावजूद अश्लील मूवी दिखाना, मानसिक यातनाएं देना और 6-6 फीट ऊपर से फेंकने तक शामिल था। साध्वी को यातनाएं महिला पुलिस ही नहीं पुरुष पुलिसकर्मी भी दे रहे थे ।
चव्हाण ने यह भी बताया कि मालेगांव केस में स्वामी असीमानंद को इसलिए फंसाया गया क्योंकि वे महाराष्ट्र-गुजरात सीमा पर आदिवासियों के धर्मांतरण को रोकने का काम कर रहे थे। उन्होंने सोनिया गांधी पर सीधा हमला बोलते हुए कहा, “यह सब उनकी टीम की साजिश थी।” चव्हाण ने यह भी खुलासा किया कि उस दौरान महाराष्ट्र पुलिस के कुछ मराठा जवान, जो इस अन्याय के खिलाफ कुछ नहीं कर पा रहे थे, उन्हें गुप्त रूप से जानकारी देते थे। चव्हाण ने कहा, “इसी वजह से सुदर्शन न्यूज उस समय भी सच्चाई को सामने ला पा रहा था, जिससे कांग्रेस सरकार परेशान हो रही थी।”
साध्वी प्रज्ञा की यातनाओं का खुलासा
सुरेश चव्हाण ने साध्वी प्रज्ञा के साथ हुए अत्याचारों का जिक्र करते हुए कहा कि उन्हें बड़े नेताओं के नाम लेने के लिए मजबूर किया जा रहा था , जिनमें मोहन भागवत, राम माधव, नरेंद्र मोदी, और इंद्रेश कुमार जैसे नाम शामिल थे। चव्हाण ने बताया, “साध्वी ने दबाव में आने से इनकार कर दिया और किसी को झूठा नहीं फंसाया, इसलिए उन्हें और अधिक यातनाएं दी गईं।”
उनके ओस ख़ुद लेफ्ट और काँग्रेस के नुमाइंदे स्वामी अग्निवेश जेल में गए और कहा कि मैं भी साधु हू आप इन सभी के नाम लें मैं आपको कुछ भी नहीं होने दूँगा । लेकिन तमाम यातनाओं के बावजूद साध्वी इस साज़िश का हिस्सा बनने से इनकार कर दी एयर यातनाओं का ये सिलसिला कई साल तक जारी रहा । सबसे बड़ी बात ये थी की पुलिस कस्टडी में ये सभी यातनाएं साध्वी और कर्नल पुरोहित सहित सभी को बिना अरेस्ट शो किए बिना दी जा रही थी ।
चव्हाण ने 2008 के उस दौर को याद करते हुए बताया कि जब मालेगांव ब्लास्ट हुआ, तब उन्होंने सुदर्शन न्यूज पर पहली बार कोर्ट पहन कर नहीं बल्कि भगवा कुर्ता पहनकर प्राइम शो में एंकरिंग की और कहा, “मैं सुरेश के. चव्हाण, भगवा आतंकवादी… क्योंकि मैंने भगवा कुर्ता पहना है।” उन्होंने बताया कि उसी रात वे बीजेपी की वरिष्ठ नेता सुषमा स्वराज के घर डिनर पर गए, जहां तत्कालीन गृहमंत्री पी. चिदंबरम भी मौजूद थे। सुषमा स्वराज ने चिदंबरम से पूछा, “आप इन्हें जानते हैं?” जिस पर चिदंबरम ने जवाब दिया, “हां, अभी टीवी पर देखा, ये भगवा आतंकवादी हैं।”
दरअसल उस समय तुष्टिकरण की राजनीति चरम पर थी और आतंकवाद का भले कोई जाम नहीं होता मगर आतंकवादी घटनाओं के बाद जो भी नाम आते थे वो एक ही कौम के होते थे । काँग्रेस अपने एएसपी को जबरदस्त मुस्लिम पक्षधर साबित करना चाहती थी और मुस्लिम तुष्टिकरण की राजनीति में उतना नीचे गिर गई थी की हिंदुओं को आतंकवादी साबित करने ओर तूल गई थी । काँग्रेस की ये साज़िशों सिर्फ़ आरएसएस के ख़िलाफ़ नहीं था बल्कि पूरे हिंदू समुदाय के ख़िलाफ़ था । इन्होंने कहा कि काँग्रेस की तरफ़ से सैफ़रन टेररिज्म की ये कोशिश कोई पहले नहीं थी और ना ही ये अंतिम होगी इसलिए आज के इस अस्तित्व की लड़ाई में हिन्दू समाज को संगठित और सतर्क रहने की जरूरत है ।
मालेगांव केस और हेमंत करकरे
साक्षात्कार में 26/11 मुंबई हमले में शहीद हुए एटीएस प्रमुख हेमंत करकरे का भी जिक्र हुआ। करकरे मालेगांव ब्लास्ट की जांच करने वाले पहले अधिकारी थे और उन पर साध्वी प्रज्ञा को निर्मम तरीके प्रताड़ित करने की बात ख़ुद साध्वी प्रज्ञा अपने कई इंटरव्यू में कर चुकी है , साध्वी ने अपने इंटरव्यू में साफ़ कहा है कि ये हेमंत करकरे ही थे जो उनकी पिटाई डंडे से कराटे थे और बाद में उन्हें ब्लू फ़िल्म देखने को मजबूर करते थे । चव्हाण ने कहा कि उस समय हिंदू संगठनों और सेना के जवानों को बदनाम करने की साजिश रची गई थी, जिसमें कर्नल पुरोहित जैसे सैन्य अधिकारियों को भी नहीं बख्शा गया।
चव्हाण ने यह भी कहा कि उस समय हिंदू समाज ने उनका साथ नहीं दिया। “लेकिन यह भी एक सच है कि कॉंग्रेस शासनकाल में दबाव इतना ज़्यादा था कि कांग्रेस शासनकाल में सेना के अधिकारी भी अपने कर्मियों के लिए आवाज नहीं उठा पा रहे थे ।”
असली गुनहगार अभी बाकी
सुरेश के. चव्हाण ने अंत में कहा कि मालेगांव ब्लास्ट के असली गुनहगारों को पकड़ना अभी बाकी है। उन्होंने मांग की कि तत्कालीन गृहमंत्री और सोनिया गांधी पर कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए, जिन्होंने एक साजिश के तहत हिंदुत्व को बदनाम करने की इतनी बड़ी षड्यंत्र रची। चव्हाण ने जोर देकर कहा, “17 साल बाद कोर्ट ने बेगुनाहों को न्याय दिया, लेकिन असली दोषियों को सजा मिलना अभी बाकी है,”
मालेगांव ब्लास्ट केस में कोर्ट के फैसले का स्वागत करते हुए सुरेश के. चव्हाण ने कहा कि यह न केवल साध्वी प्रज्ञा और कर्नल पुरोहित के लिए, बल्कि पूरे हिंदू समाज के लिए न्याय है। हालांकि, उन्होंने यह भी सवाल उठाया कि 17 साल तक बेगुनाहों को जेल में रखने और हिंदू धर्म को बदनाम करने की साजिश के लिए जिम्मेदार लोगों को सजा कब मिलेगी?
यह फैसला न केवल मालेगांव केस की सच्चाई को सामने लाया है, बल्कि भारतीय राजनीति और मीडिया के उस दौर को भी उजागर करता है, जब सत्ता और मीडिया के एक वर्ग ने कथित तौर पर मिलकर हिंदू धर्म को निशाना बनाया था।
