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ग्वालियर में हिंदी भवन : अटल जी के निधन के बाद पूरा होता उनका सपना

प्रस्तावित हिंदी भवन के लिए प्रदेश सरकार ने 7 करोड़ रुपये किये स्वीकृत, नगर निगम ने भी सम्पत्तिकर में छूट दी

ग्वालियर में हिंदी भवन : अटल जी के निधन के बाद पूरा होता उनका सपना
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ग्वालियर/स्वदेश विशेष। भारत रत्न पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने ग्वालियर में हिंदी भवन बनाये जाने का जो सपना 2004 में देखा था वो अब 14 साल बाद पूरा होने जा रहा है। राज्य सरकार ने इसके लिए 7 करोड़ रुपये स्वीकृत कर दिए है। वहीँ नगर निगम से इसके लिए आवंटित भूमि पर लगाए गए संपत्ति कर को कम किये जाने का संघर्ष भी समाप्त हो गया है। अब उम्मीद की जा सकती है कि शीघ्र ही हिंदी भवन बनकर तैयार हो जाएगा।

अटल बिहारी वाजपेयी को हिंदी से बहुत लगाव था. उनकी कविताएं, उनके भाषण हिंदी से उनके प्रेम और भाषा पर मजबूत पकड़ का प्रमाण हैं। अटल जी ने जीवन भर हिंदी की सेवा की। अटल जी दुनिया के किसी भी कोने में गए हिंदी हमेशा उनके साथ रही। ग्वालियर में अटल जी अपनी शैक्षिणक काल में ही हिंदी को आत्मसात कर लिया था। वे हिंदी साहित्य सभा के कार्यक्रमों में जाया करते थे। वे दौलतगंज स्थित हिंदी साहित्य सभा भवन में कविता पाठ करने कई बार गए। उन्हें इस भवन से बहुत लगाव था। वे अपनी युवावस्था में सैंकड़ों बार इस भवन में बैठे कविताओं का सृजन किया।

26 दिसंबर 2004 को मेडिकल कॉलेज के ऑडिटोरियम में जब हिंदी साहित्य सभा का शताब्दी वर्ष समारोह आयोजित किया गया तब अटलजी ने दौलतगंज वाले भवन के घुमावदार जीनों की याद मंच से की और उस भवन में बिताये अपने बहुमूल्य पलों को याद किया। इसी कार्यक्रम में अटलजी ने ग्वालियर में हिंदी भवन बनाये जाने का विचार रखा और कहा कि ये मेरा सपना है कि लखनऊ की तरह ग्वालियर में भी एक हिंदी भवन होना चाहिए जहाँ बैठकर हिंदी की सेवा हो सके। शोधार्थी अपना काम करें और लोगों को हिंदी साहित्य से जुड़ने का अवसर दिया जाये।

शताब्दी समारोह के बाद इस प्रस्ताव को आगे बढ़ाया गया। भूमि की तलाश की गई और आवंटन के प्रयास किये गए जिसके बाद सिटी सेंटर में शिवाजी पार्क से सामने टेनिस कोर्ट के पास वाली सवा बीघा भूमि हिंदी भवन के लिए शासन ने हिंदी साहित्य सभा को दे दी। तब तत्कालीन जनप्रतिनिधियों ने इसमें आर्थिक सहयोग करने की बात कही लेकिन जैसे जैसे समय बीता मामला ठंडा पड़ गया। लेकिन अटल जी के मन में हिंदी भवन को लेकर चिंता और जिज्ञासा हमेशा रही । 27 दिसंबर 2005 को मामा माणिकचंद वाजपेयी के निधन पर अटलजी ग्वालियर आये थे। नई सड़क पर राष्ट्रोत्थान न्यास स्थित राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यालय में मामा माणिकचंद वाजपेयी को याद कर उनकी आँखें कई बार डबडबाईं और वे उनके साथ बिताये पलों को याद करते रहे। लेकिन यहाँ भी उनके मन में हिंदी भवन बसा हुआ था। जाते समय उन्होंने वर्तमान में हिंदी साहित्य सभा के वरिष्ठ मार्गदर्शक बैजनाथ शर्मा से पूछा " हिंदी भवन का क्या हुआ ? बना कि नहीं ? क्या मेरे जाने के बाद बनेगा ? बैजनाथ जी अटलजी के सवालों का कोई संतोष जनक उत्तर नहीं दे पाए।

लेकिन विडंबना देखिए कि अटल जी कहे शब्द सच साबित हुए और उनके निधन के 28 दिन बाद ही मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने हिंदी दिवस के अवसर पर 14 सितम्बर को ग्वालियर में बनने वाले हिंदी भवन के लिए 7 करोड़ रुपये की राशि स्वीकृत कर दी। राशि की घोषणा के बाद हिंदी साहित्य सभा से जुड़े हिंदी सेवी लोग बहुत प्रसन्न हैं। सभा के सदस्य उपेंद्र कस्तूरे ने प्रसन्नता जताते हुए कहा कि अटलजी ने ही हिंदी भवन का ये प्रस्ताव रखा था और अब ये 14 साल बाद पूरा होने जा रहा है। उन्होंने बताया कि संपत्तिकर को लेकर नगर निगम से 2008 से चल रहा हमारा संघर्ष भी अभी कुछ दिन पहले ही थमा है। नगर निगम ने इस भूमि पर बहुत अधिक सम्पत्तिकर लगाया था जबकि हमारा निवेदन था कि हिंदी भवन में तो शोध कार्य होगा और वाचनालय बनेगा इसलिए हमें छूट दी जाए। जिसे नगर निगम ने स्वीकार कर लिया है। अब जैसे ही राशि हिन्दी साहित्य सभा को प्राप्त होगी भवन निर्माण का कार्य प्रारम्भ हो जाएगा।

यहाँ उल्लेखनीय है कि अटलजी ने ग्वालियर में हिंदी भवन सपना 2004 में देखा था और 2003 से मध्यप्रदेश में भाजपा की सरकार है लेकिन फिर भी इस भवन पर किसी ने गंभीरता नहीं दिखाई। हिंदी साहित्य सभा भी 2008 से सम्पत्तिकर कम करने की लड़ाई नगर निगम से लड़ रही थी । अब इसे संयोग ही कहेंगे या नियति का लिखा मानेंगे कि अटलजी का सपना उनके निधन के बाद ही पूरा हो पा रहा है और उनके कहे वाक्य "क्या मेरे जाने के बाद बनेगा हिंदी भवन " ही सच साबित होने जा रहा है ।

Updated : 15 Sep 2018 7:51 PM GMT
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Swadesh Digital

स्वदेश वेब डेस्क www.swadeshnews.in


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