Home > स्वदेश विशेष > खुदीराम बोस : उम्र 18, हाथ में गीता और हंसते हुए चूम लिया फंदा

खुदीराम बोस : उम्र 18, हाथ में गीता और हंसते हुए चूम लिया फंदा

शिवकुमार शर्मा

खुदीराम बोस : उम्र 18, हाथ में गीता और हंसते हुए चूम लिया फंदा
X

अमर शहीद खुदीराम बोस

जब देश की खातिर मर मिटने की उमंग और जज्बा अपने चरम पर हो तो आयु आड़े नहीं आती, साधन हीनता अवरोध पैदा नहीं कर सकती, संपूर्ण 'ज्ञानÓ की व्याया मातृभूमि की रक्षा के 'कर्म' पर आकर टिक जाती है। 11 अगस्त 1908 को मुजफ्फरपुर जेल में 18 वर्ष 8 माह 8 दिन की अल्पायु में क्रांतिकारियों के प्रेरणा स्रोत अमर शहीद खुदीराम बोस श्रीमद्भगवत गीता को हाथ में लेकर फांसी के फंदे की ओर निर्भय होकर हंसते हंसते जाते हैं और मातृभूमि की सेवा में मृत्यु का वरण करते हैं।

खुदीराम बोस मृत्यु को एक पड़ाव मानते थे और आत्मा को अमर। उन्होंने गीता के उपदेश को देश के हित में दिल में उतार लिया ,खुद फांसी के फंदे पर चढ़ गए। गीता दर्शन के इस द्रष्टा ने भारत की गुलामी बेडिय़ां तोडऩे के लिए बेधड़क होकर मौत के बंधन को ही तोड़ डाला। उनका दृढ़ विश्वास था कि-( श्रीमद् भगवत गीता अध्याय-2 श्लोक क्रमांक 19) य एनं वेाि हन्तारं यश्चैनं मन्यते हतम्। उभौ तौ न विजानीतो नायं हन्ति न हन्यते। अर्थात् जो इस आत्मा को मारने वाला समझता है तथा जो इसको मरा मानता है, वह दोनों ही नहीं जानते क्योंकि यह आत्मा वास्तव में न तो किसी को मारता है और न किसी के द्वारा मारा जाता है। श्रीमद्भगवत गीता केवल ग्रंथ नहीं है जिसे केवल साधू, संन्यासी या कोई दर्शनशास्त्र का अध्येता ही पढ़े। यह ऐसा अद्भुत ग्रंथ है जो ज्ञान, कर्म और संन्यास को एक साथ समन्वित करते हुए जीवन को संपूर्णता की ओर ले जाता है।भारत के क्रांतिकारियों को श्रीमद्भगवत गीता से वैचारिक ऊर्जा प्राप्त हुई और मानसिक संबल ,उत्साह, जोश, होश और हौसला मिला। स्वराज के संस्थापक क्रांतिकारी विचारों से स्वदेश की सेवा में लगे हुए वीरों को प्रेरित करने वाले महर्षि दयानंद सरस्वती ने गीता पर टीका लिखी है।स्वामी श्रद्धानंद सरस्वती जी ने स्वराज ,स्वधर्म और स्वाभिमान के लिए बलिदान दिया। स्वामी विवेकानंद ने भी 39 वर्ष 5 माह 24 दिन के छोटे से जीवन में भारत भूमि का परचम विश्व पटल पर लहराया। उन्होंने भी गीता के कर्म योग, राजयोग, ज्ञान योग पर लेखन किया है। महर्षि अरविंद ने 'ऐस्सेज ऑन गीता' का लेखन किया। स्वामी सहजानंद सरस्वती द्वारा 'गीता हृदय' की रचना की गई। बाल गंगाधर तिलक ने वर्ष 1915 में मांडले जेल (बर्मा) में कर्मयोग की व्याया करते हुए 'गीता रहस्य' नामक कृति की रचना की।

जरा याद करो कुर्बानी

पश्चिम बंगाल के मिदनापुर जिले के बहुवैनी नामक गांव में बाबू त्रिलोकी नाथ बोस एवं लक्ष्मी प्रिया देवी के यहां जन्मा देशभक्त नौवीं कक्षा में ही पढ़ाई छोड़ स्वदेशी आंदोलन में शामिल हो गया। रिवॉल्यूशनरी पार्टी की सदस्यता ली। वंदे मातरम् पंपलेट बांटने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। 1905 के बंगाल विभाजन (बंग -भंग ) के विरोध में महती भूमिका का निर्वहन किया। उन्होंने क्रांतिकारी देशभक्त के संपूर्ण आचरणों के उदाहरण छोटी सी उम्र में प्रस्तुत कर दिए। क्रांतिकारी सत्येंद्र नाथ की ज्वलंत विचारधारा के पत्रक 'सोनार बांग्लाÓ की प्रतियां एक कार्यक्रम में वितरित करते समय पुलिस वाले ने उन्हें पकड़ लिया। वे उसके मुंह में घूंसा मार कर भाग गए। पकड़े जाने पर जेल में रहे ,प्रमाण न होने पर छोड़ दिए गए। 6 दिसंबर 1907 को खुदीराम बोस ने नारायण के रेलवे स्टेशन पर गवर्नर की विशेष ट्रेन पर हमला किया वह भी बच गया । उनमें दो अंग्रेज अधिकारियों वाट्सन और पेफायल्ट पर बम से हमला किया, वे भी बच निकले। क्रांतिकारियों की 'युगांतर' समिति की बैठक में न्यायाधीश किंग्सफोर्ड को मारने की योजना में खुदीराम बोस एवं प्रफुल्ल चंद चाकी का चयन किया गया। कर्तव्य पूरी निष्ठा से निभाया गया। हमला हुआ, लेकिन दुर्योग कि हमला किंग्स कोर्ट की बग्गी समझकर किया गया था उसमें वह नहीं था,वह भी बच गया। अमर शहीद खुदीराम बोस को शत शत नमन।

Updated : 11 Aug 2022 12:45 PM GMT
Tags:    
author-thhumb

Swadesh News

Swadesh Digital contributor help bring you the latest article around you


Next Story
Top