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खाते रहे भारत की, गाते रहे पाकिस्तान की

- सरकार के सब्र का बांध टूटा, पांच की सुरक्षा ली गई वापस - कश्मीर में अलगाववादी नेताओं की सुरक्षा पर साल का खर्च 10 करोड़, फिर भी दिल नहीं पसीजा, - राज्य में वीवीआईपी सुरक्षा बजट का करीब 10 फीसदी इनकी सुरक्षा पर खर्च

खाते रहे भारत की, गाते रहे पाकिस्तान की
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नई दिल्ली। पुलवामा के फिदायीन हमले ने केंद्र की नरेन्द्र मोदी सरकार के सब्र का बांध तोड़ दिया। सीआरपीएफ के 40 जवानों की शहादत के तीन दिन बाद रविवार को आतंकवाद पर कड़ा प्रहार करते हुए ऑल पार्टी हुर्रियत कॉन्फ्रेंस के नेता मीरवाइज मौलवी उमर फारूक समेत पांच अलगाववादियों की सरकारी सुरक्षा वापस ले ली गई।

हालांकि कट्टरपंथी सईद अली शाह गिलानी और अन्य कट्टरपंथियों की सुरक्षा हटाने पर फिलहाल कुछ नहीं कहा गया है। तमाम अलगाववादियों की सुरक्षा पर सालाना सरकारी खजाने से 10 करोड़ रुपये से ज्यादा खर्च किए जाते रहे हैं। जम्मू-कश्मीर गृह विभाग के महत्वपूर्ण आदेश में कहा गया है कि ऑल पार्टी हुर्रियत कॉन्फ्रेंस के चेयरमैन मीरवाइज मौलवी उमर फारूक, प्रो अब्दुल गनी बट, बिलाल गनी लोन, शब्बीर शाह और हाशिम कुरैशी को प्रदान की गई सुरक्षा के साथ सुरक्षा वाहन और अन्य सुविधाएं वापस ली जाती हैं। इसके अलावा अगर कोई अन्य सरकारी सुविधा भी इनको प्राप्त है तो वह भी हटाई जाएगी।

इस पर मीरवाइज मौलवी उमर फारूक और प्रो अब्दुल गनी बट ने सरकार पर तंज किया है। दोनों ने बेफिक्री भरे लहजे में कहा, "हमने कभी सुरक्षा नहीं मांगी। हटाने से हमें फर्क नहीं पड़ता। इस सुरक्षा को भारतीय एजेंसियां कश्मीर की आजादी पसंद तंजीमों और उनके नेताओं को बदनाम करने के लिए इस्तेमाल करती हैं। राज्य सरकार ने खुद खतरे का आकलन कर सुरक्षा दी। इसके जरिए हमारी निगरानी की जाती थी। अच्छा हुआ, अब हम आजादी से घूम सकेंगे।"

आतंक की कक्षा, भारी सुरक्षा

यह साफ हुआ है कि अलगाववादी नेताओं को प्रदान किए गए सुरक्षाकर्मियों, एस्कार्ट, वाहन और अन्य सुविधाओं पर करीब 10 करोड़ रुपये से ज्यादा खर्च हुए। मीरवाइज मौलवी उमर फारूक की सुरक्षा पर छह करोड़ रुपये खर्च हुए। प्रो अब्दुल गनी बट की सुरक्षा पर 2.34 करोड़ रुपये, बिलाल गनी लोन की सुरक्षा पर 1.65 करोड़ और हाशिम कुरैशी की सुरक्षा पर करीब डेढ़ करोड़ रुपये खर्च किए गए।

यह हैं वो पांच अलगाववादी चेहरे

1. मीरवाइज मौलवी उमर फारूक

मीरवाइज ऑल पार्टी हुर्रियत कॉन्फ्रेंस उदारवादी गुट के चेयरमैन हैं। इनके संगठन का नाम अवामी एक्शन कमेटी है। इसका गठन उनके पिता मीरवाइज मौलवी फारूक ने किया था। मौलवी की 21 मई, 1990 में आतंकियों ने हत्या की थी। पिता की मौत के बाद कश्मीर के मीरवाइज और अवामी एक्शन कमेटी के चेयरमैन बने। वह प्रत्येक शुक्रवार को श्रीनगर की जामिया मस्जिद से खुतबा देते हैं। वह केंद्र के साथ कश्मीर मुद्दे पर बातचीत में हिस्सा ले चुके हैं। वर्ष 2014 में उन्हें दुनिया के 500 सर्वाधिक प्रभावशाली मुस्लिम नेताओं की सूची में शामिल किया गया।

पिता की हत्या के बाद उन्हें सुरक्षा प्रदान थी। 2015 में केंद्र सरकार ने इसे जेड प्लस कर दिया था। इसके तहत उन्हें सीआरपीएफ व राज्य पुलिस के सुरक्षाकर्मी प्रदान किए गए। बुलेट प्रूफ वाहन दिया गया। वर्ष 2017 में जामिया मस्जिद में ईद से चंद दिन पहले एक डीएसपी की हत्या के बाद उनकी सुरक्षा में कटौती की गई। मीरवाइज उमर फारूक की पत्नी शीबा मसूदी अमेरिकन हैं। एक बार कश्मीर की तत्कालीन सरकार ने शीबा को देश छोड़ने का आदेश दे दिया था। शीबा के माता-पिता कश्मीरी हैं।

2. प्रो. अब्दुल गनी बट

प्रो. अब्दुल गनी बट मुस्लिम कॉन्फ्रेंस कश्मीर के अध्यक्ष हैं। वह एकीकृत हुर्रियत कॉन्फ्रेंस के चेयरमैन रह चुके हैं। हुर्रियत में दोफाड़ के बाद वह मीरवाइज मौलवी उमर फारुक के साथ डटे हैं। वह हुर्रियत के प्रमुख प्रवक्ता भी रहे हैं। वह शुरू में जमायत-ए-इस्लामी के साथ थे। वह सोपोर के हैं। उनके एक भाई को आतंकी मार चुके हैं। कश्मीर मसले पर बातचीत के पक्षधर हैं। एक बार हुर्रियत के वार्ता से बहिष्कार के बावजूद उन्होंने केंद्रीय वार्ताकार दिनेश्वर शर्मा से मुलाकात की। बट को सरकारी सुरक्षा के नाम पर चार सुरक्षाकर्मी प्रदान किए गए थे।

3. बिलाल गनी लोन

बिलाल गनी लोन पीपुल्स कॉन्फ्रेंस के चेयरमैन और पूर्व समाज कल्याण मंत्री सज्जाद गनी लोन के भाई हैं। कॉन्फ्रेंस का गठन पिता अब्दुल गनी लोन ने 1978 में किया था। उनकी हत्या के बाद कॉन्फ्रेंस की बागडोर सज्जाद ने संभाली। 2002 के चुनाव में पीपुल्स कॉन्फ्रेंस के प्रॉक्सी उम्मीदवार उतारे जाने से अलगाववादी खेमे में पैदा हुए विवाद से न सिर्फ हुर्रियत दोफाड़ हुई बल्कि पीपुल्स कॉन्फ्रेंस भी दो धड़ों बिलाल व सज्जाद में बंट गई। सज्जाद मुख्यधारा की सियासत में शामिल हो गए। बिलाल अलगाववादी खेमे में ही रहे।

वह मीरवाइज मौलवी उमर फारूक के करीबियों में हैं। लोन ने पिछले दिनों पीपुल्स कॉन्फ्रेंस के अपने गुट का नाम बदलकर जम्मू-कश्मीर पीपुल्स इंडिपेंडेंट मूवमेंट रखा है। उनकी सुरक्षा में छह से आठ पुलिसकर्मियों की गारद, एक सुरक्षा वाहन था। वह कुपवाड़ा के हैं। फिलहाल श्रीनगर के सन्नत नगर में सज्जाद गनी लोन के बगल में रहते हैं।

4. शब्बीर शाह

अनंतनाग जिले के शब्बीर शाह पुराने अलगाववादी हैं। शब्बीर ने साठ के दशक के अंत में अलगाववादी संगठन यंगमैन लीग के साथ अपना सियासी सफर शुरू किया। 1974 में फजल हक कुरैशी, नजीर वानी और अब्दुल मजीद पठान के साथ मिलकर पीपुल्स लीग बनाई। पीपुल्स लीग के आधिकारिक ऐलान के वक्त जेल में थे। शब्बीर बंदूक के भी समर्थक रहे हैं। 1987 के विधानसभा चुनाव शामिल हुए। उनके एक भाई राज्य विधानसभा के सदस्य भी रहे हैं।

घाटी में आतंकवाद शुरू होने के बाद वह 29 अगस्त, 1989 को पकड़े गए और 1994 में रिहा हुए। छूटने के कुछ समय बाद हुर्रियत कॉन्फ्रेंस से जुड़ गए। कुछ ही समय बाद हुर्रियत से अलग होकर जम्मू-कश्मीर डेमोक्रेटिक फ्रीडम पार्टी बनाई। फिलहाल वर्ष 2016 में कश्मीर में हुए सिलसिलेवार हिंसक प्रदर्शन और कश्मीर में आतंकी फंडिग के सिलसिले में तिहाड़ जेल में बंद हैं। शब्बीर शाह की पत्नी डॉक्टर है और उनकी दो बेटियां हैं। शाह एक बार भारत को परमाणु युद्ध की धमकी दे चुके हैं। इनका संगठन गिलानी समर्थक है। जो पाकिस्तान की शह पर कश्मीर में अशांति फैलाता है।

5. हाशिम कुरैशी

हाशिम कुरैशी जम्मू-कश्मीर में खूनी आतंकवाद का इतिहास लिखने वाले संगठन जम्मू-कश्मीर लिबरेशन फ्रंट के संस्थापकों में हैं। 1984 में तिहाड़ में फांसी पर लटकाए गए मकबूल बट के करीबी रहे हैं। उन्होंने ही 1971 में इंडियन एयरलाइंस के विमान गंगा को अपने साथियों के साथ अपहृत कर लाहौर में उतारा था। वर्ष 1994 में उन्होंने जम्मू-कश्मीर डेमोक्रेटिक लिबरेशन पार्टी का गठन किया। वह लंबे अरसे तक पाकिस्तान में रहे। कुछ वक्त हालैंड में रहे। वर्ष 2000 में भारत लौटे। चार बच्चे हैं। एक बेटा जुनैद कुरैशी अक्सर संयुक्त राष्ट्र में कश्मीर मुद्दे पर अपना पक्ष रखता नजर आता है।

सेब और अखरोट के बागान

कश्मीर के अलगाववादी नेताओं की सुरक्षा पर सरकार सालाना करीब 10 करोड़ रुपए खर्च करती रही है। आरटीआई में यह खुलासा हो चुका है। इन्हें महंगी गाड़ियों में चलने का शौक है। पंच सितारा श्रेणी के अस्पतालों में इलाज करवाते हैं। कुछ को तो पाकिस्तानी के आतंकी संगठन पैसा भी भेजते रहे हैं। 2016 में आत्मसमर्पण कर चुका तारिक कह चुका है कि अलगाववादी अपने रिश्तेदारों के नाम पर जमीन ज्यादा खरीदते हैं। कई लोग इस पर होटल या घर का पक्का निर्माण नहीं करवाते। इनमें सेब और अखरोट की खेती करवाते हैं।

सरकारी रिपोर्ट कहती है

पिछले साल फरवरी में जम्मू-कश्मीर विधानसभा में पेश रिपोर्ट के अनुसार अलगाववादी नेताओं की सुरक्षा पर सालाना 10.88 करोड़ रुपये खर्च किए गए। यह राज्य में कई तरह की वीवीआईपी सुरक्षा पर खर्च होने वाले बजट का करीब 10 फीसदी है। मीरवाइज उमर फारूक की सुरक्षा सबसे मजबूत है। उसकी सुरक्षा में डीएसपी रैंक के अधिकारी हैं। उसके सुरक्षाकर्मियों के वेतन पर पिछले एक दशक में पांच करोड़ रुपये से अधिक खर्च हो चुके हैं। सज्जाद लोन, बिलाल लोन और उनकी बहन शबनम, आगा हसन, अब्दुल गनी बट और मौलाना अब्बास अंसारी आदि को सुरक्षा कवच मिला हुआ है। राज्य में 25 लोगों को जेड प्लस सुरक्षा है। इसके अलावा करीब 1200 लोगों के पास अलग-अलग श्रेणी की सुरक्षा है।

गाड़ी, घोड़ा, बंगला, होटल, स्कूल

अलगाववादियों के पास अकूत संपत्ति है। यासीन मलिक नब्बे के दशक में रेहड़ी चलाकर गुजारा चलाता था। इस वक्त उसके पास श्रीनगर के सबसे महंगे बाजार लालचौक इलाके की दो तिहाई से भी ज्यादा संपत्ति है। इसकी कीमत 150 करोड़ रुपये से ज्यादा है। रेजीडेंसी होटल भी इसी का है। इसकी कीमत करीब 40 करोड़ रुपये है। पहलगाम में भी होटल है।

राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) ने डोजियर में हर अलगाववादी नेता की प्रॉपर्टी को दर्ज किया है। इसके अनुसार हुर्रियत नेता शब्बीर शाह के पास सबसे अधिक करीब 19 प्रॉपर्टी हैं। दूसरा बड़ा नाम सैयद अली शाह गिलानी का है। इसकी अधिकांश संपत्ति इसके दो बेटों के नाम है। इसमें प्लॉट, स्कूल, मकान आदि हैं।शीर्ष 20 अलगाववादी नेताओं के पास करीब 200 प्रॉपर्टी बेनामी भी हैं। गिलानी के घर पर आधा दर्जन से ज्यादा नौकर हैं। मीरवाइज की जीवनशैली भी लग्जरी है। इसका स्टाफ टेक्नोलॉजी फ्रेंडली है। इसके पास आईपैड से लेकर आईफोन तक हैं। इसके स्टाफ में करीब डेढ़ दर्जन कश्मीरी युवक हैं। वह सोशल मीडिया से लेकर इसके धंधे का हिसाब रखते हैं। आलीशान घर के चप्पे-चप्पे में सीसीटीवी हैं। घर का अधिकांश फर्नीचर अखरोट की लकड़ी का है। पूरे घर में वुडन फर्श है। हर कमरे की छत पर कश्मीरी नक्काशी है। ऐसे ही आलीशान घर लगभग हर अलगाववादी नेता के हैं। दूसरों को पत्थरबाजी के लिए उकसाने वाले इन अलगाववादियों में कई की संतानें विदेश में रहती हैं। कइयों की संतानें सरकारी नौकरी भी करती हैं।

राजनाथ ने इस तरह नाथा

केन्द्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने शुक्रवार को श्रीनगर यात्रा के दौरान कहा था कि पाकिस्तान से धन प्राप्त करने वाले लोगों को दी गई सुरक्षा और आईएसआई की सहायता करने वाले लोगों की समीक्षा की जानी चाहिए। जम्मू-कश्मीर के कुछ तत्वों के आईएसआई और आतंकवादी संगठनों के साथ संबंध हैं। गौरतलब है कि हुर्रियत कॉन्फेंस का मकसद जम्मू-कश्मीर में अलगाववाद को प्रोत्साहित करना है। इसके कई सदस्य पूर्व में आतंकवादी भी रहे हैं।

Updated : 18 Feb 2019 2:35 PM GMT
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Swadesh Digital

स्वदेश वेब डेस्क www.swadeshnews.in


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