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जब कोरोना गया ही नहीं, तो वापसी कैसी!

जब कोरोना गया ही नहीं, तो वापसी कैसी!
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देश में दिवाली के बाद कोरोना एक बार फिर तेजी से बढ़ रहा है। स्थिति को देखते हुए राज्यों ने पाबंदी भी लगाना षुरू कर दिया है। बीते 20 नवम्बर से गुजरात का अहमदाबाद पहला ऐसा षहर बना जहां रात्रि कफ्र्यू लागू कर दिया गया। हालांकि यह घोशणा 23 नवम्बर तक के लिए ही थी। मध्य प्रदेष के 5 जिलों में रात्रि कफ्र्यू और राजस्थान में धारा 144 के साथ कुछ जिलों में रात्रि कफ्र्यू देखा जा सकता है। हरियाणा सरकार ने पिछले महीने स्कूल खोलने का जो फैसला किया था अब कई स्कूलों में कोरोना विस्फोट को देखते हुए 30 नवम्बर तक के लिए प्रदेष के सभी स्कूल बंद हैं। वहीं मुम्बई में स्कूल 31 दिसम्बर तक के लिए बंद कर दिये गये। कहीं कोरोना की दूसरी तो तीसरी लहर के जद्द में एक बार फिर भारत आ गया है। दिल्ली की स्थिति पहले की तुलना में और भयावह है। संक्रमित लोगों की संख्या भी तेजी से बढ़ी है और मौत का आंकड़ा भी यहां डराने वाला देखा जा सकता है। दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल ने दिवाली के दौरान बाजारों में लोगों की लापरवाही को जिम्मेदार माना है क्योंकि मास्क और सोषल डिस्टेंसिंग का पालन लोगों ने नहीं किया। एक तरफ जहां भारत में कोरोना के एक्टिव मामलों में कमी देखी जा रही है वहीं दिल्ली समेत कुछ राज्यों में इसमें इजाफा होना चिंता का सबब बना हुआ है। आंकड़े बताते हैं कि भारत में प्रतिदिन संक्रमित की संख्या एक लाख तक पहुंच गयी थी जो अब घटकर आधे से भी कम है मगर मौजूदा समय में कोरोना की जो लहर आयी है वह आंकड़े में इजाफा कर रही है। समझने वाली बात यह भी है कि कोरोना घट रहा था न कि समाप्त हो रहा था। इसी घटाव को लोगों ने समाप्ति समझने की जो गलती की यह उसी की कीमत है।

लापरवाही के चलते कोरोना की दर में जो बढ़त आयी है वह इस कहावत को बल दे दिया है कि आ बैल मुझे मार। मुंह पर मास्क और दो गज की दूरी जनमानस पर समय के साथ क्यों भारी पड़ने लगी इसे भी समझने की आवष्यकता है। त्यौहारी सीजन में जो लापरवाही हुई सो हुई 25 मार्च से जारी लाॅकडाउन और तत्पष्चात् जारी कोरोना की लड़ाई में लोगों का जीवन संघर्श इस कदर बढ़ गया कि कोरोना को मात देते-देते मौत की ओर खींचते चले गये। इसके पीछे बड़ी वजह आवष्यकताओं की पूर्ति में असावधानी का होना है। इण्डिया गेट पर भीड़ हो या चांदनी चैक पर खरीददारी या फिर विवाह, बारात, उत्सव में की गयी लापरवाही और दीवाली में हुई घोर लापरवाही कोरोना को मुखर होने का मौका दे दिया। पहाड़ी राज्य उत्तराखण्ड भी कोरोना के मामले में काफी संभल गया था पर इन दिनों हालात यहां भी भारी बढ़त के साथ षासन-प्रषासन के लिए नई कसरत बना दिया है। पुलिस मास्क न पहनने वालों के चालान काट रही है और जरूरत पड़ने पर बल प्रयोग भी कर रही है। जुर्माने की राषि भी बढ़ा दी गयी है मगर कोरोना का इन सबसे क्या लेना-देना, समझना तो जनता को है। वैसे जनता भी क्या करे रोज़गार से लेकर तमाम कारोबार छिन्न-भिन्न हो गये हैं। पाई-पाई की मोहताज जनता जीवन संघर्श में ऐसी उलझी है कि उसे कोरोना से बड़ी उसकी स्वयं की समस्या हो गयी है। सवाल है कि कोरोना वापस गया था या वापसी किया है। वैज्ञानिक पहले ही इस बात की चिंता जता चुके हैं कि सर्दियों के मौसम में कोरोना के मामले में तेजी आ सकती है। नीति आयोग की एक रिपोर्ट में भी यह जिक्र था कि सर्दियों में कोरोना खतरनाक हो सकता है। यह तमाम षंकाएं बढ़े हुए केस को देखते हुए सही साबित हो रही हैं। नवम्बर से देष में सर्दियां षुरू हुई हैं और कोरोना का मामला भी स्पीड पकड़ लिया। भारत पहले ही लाॅकडाउन के चार चरण से गुजर चुका है जिसमें कुल 69 दिन बंदी में चले गये और जब जून से अनलाॅक षुरू हुआ तो कोरोना संक्रमितों की संख्या भी लगातार बढ़ी। हालांकि लाॅकडाउन के दौर में भी संक्रमण धीमा नहीं पड़ा था। कोरोना ने करोड़ों को बेरोज़गार कर दिया और रोजी-रोटी के लिए मोहताज़ कर दिया। देष की जीडीपी को ऋणात्मक 23 के स्तर पर पहुंचा दिया। देष की अर्थव्यवस्था बेपटरी हो गयी मगर कोरोना अपनी पटरी पर पहले भी दौड़ रहा था और आज भी रूका नहीं है।

दुनिया पहले भी कोरोना को लेकर तैयार नहीं थी और अब एक बार फिर अचानक इस पलटवार पर भी कुछ खास तैयार नहीं दिखाई देती। फ्रांस में अक्टूबर के अन्त में आयी कोरोना वायरस की दूसरी लहर को देखते हुए हेल्थ इमरजेंसी लगायी गयी। फ्रांस में सभी गैर जरूरी दुकानों को बंद करने के लिए कहा गया। ब्रिटेन से भी फ्रांस में लोगों की एंट्री पर बैन लगा दिया गया केवल वही आ सकते हैं जो सरकार की ओर से जारी जरूरी दस्तावेज रखे होंगे। जर्मनी में भी एक बार फिर राश्ट्रव्यापी लाॅकडाउन लगा दिया गया। हालांकि फ्रांस और जर्मनी ने ब्रिटेन की तुलना में प्रतिदिन कोरोना से होने वाली मौत की संख्या कम है। गौरतलब है कि ब्रिटेन में प्रधानमंत्री बोरिस जाॅनसन ने कोरोना के कारण लगाये गये प्रतिबंधों को कड़ा करने का निर्देष जारी किया था। इसमें कोई दो राय नहीं कि कोरोना के बढ़त से अर्थव्यवस्था एक बार फिर भूचाल का षिकार होगी। यूरोप में कोरोना संकट के दोबारा उभार के बीच उक्त तमाम देषों के अलावा स्पेन, स्लोवाकिया, रोमानिया, चेक गणराज्य आदि सभी में कड़ाई एक बार फिर देखी जा सकती है। हैरत यह भी है कि अमेरिका में ऐसी भी घटना आयी है कि कोरोना दोबारा भी हुआ है। वैज्ञानिकों का कहना है कि जो लोग कोरोना वायरस के संक्रमण से ठीक भी हो चुके हैं उन्हें सोषल डिस्टेंसिंग, मास्क और हाथ धोने जैसी गाइडलाइन का पालन करते रहना चाहिए। हो सकता है कि इस गलतफहमी से भी कोरोना की संख्या बढ़ी हो कि जिसे यह वायरस हो गया उसे दोबारा न तो होगा और न ही वह किसी के लिए खतरा है। हो सकता है इसके चलते वह सावधानी से स्वयं को मुक्त कर लिया हो और इसके विस्तार में वह षामिल हो गया हो। यह भी निष्चित तौर पर कहना षायद मुष्किल है कि जो बचाव के उपाय सुझाये गये हैं वे बिल्कुल दुरूस्त हैं। वैज्ञानिक कोरोना वायरस और उसकी इम्युनिटी को लेकर अब भी स्पश्ट नहीं है। क्या हर कोई संक्रमण के बाद इम्यून हो सकता है। यदि हो भी सकता है तो कब तक इम्यून बना रहेगा अभी इसका कोई खास प्रमाण आया नहीं है। फिलहाल दुनिया कोरोना से निपटने के लिए अपने-अपने ढंग का रास्ता लिये हुए है। मास्क, षारीरिक दूरी और नमस्ते की संस्कृति पूरी दुनिया में फैली है फिर भी कोरोना फैल रहा है। अभी भी कोरोना को लेकर कोई टीका नहीं आया है। हालांकि रूस, ब्रिटेन, अमेरिका समेत कई देष इसका दावा कर रहे हैं। भारत में भी इसका परीक्षण जारी है जब तक दवाई नहीं तब तक ढ़िलाई नहीं का नारा बुलंद है। बावजूद इसके ऐसे ष्लोगन एक सीमा के बाद कारगर नहीं दिखाई दे रहे हैं। मनोवैज्ञानिक तौर पर षायद लोग ये मान बैठे थे कि कोरोना देष से चला गया या खत्म होने की कगार पर है जबकि उसकी भयावह स्थिति यह बताती है कि वह गया ही नहीं था। जाहिर है यह घोर लापरवाही का परिणाम है। स्पश्ट है कि कोरोना को तब तक गया हुआ नहीं माना जा सकता जब तक एक भी संक्रमित देष में होगा।

डाॅ. सुशील कुमार सिंह

निदेशक, वाईएस रिसर्च फाउंडेशन ऑफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन

Updated : 27 Nov 2020 1:57 PM GMT
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