Home > स्वदेश विशेष > क्या 2004 की बुनियादी गलती फिर दोहराया रही है सोनिया गांधी ?

क्या 2004 की बुनियादी गलती फिर दोहराया रही है सोनिया गांधी ?

पीएम पद की चुनावी उपयोगिता खोकर भी सबक नही सीखा कांग्रेस

क्या 2004 की बुनियादी गलती फिर दोहराया रही है सोनिया गांधी ?
X

बेहतर होगा दिग्विजय, अमरिंदर, चेन्नीथला जैसे फूल टाइमर नेताओं को मिले कमान

- डॉ अजय खेमरिया

राहुल गांधी स्तीफा वापिस नही ले रहे है यानी वे अब 134 साल पुरानी देश के सबसे पुराने राजनीतिक दल के अध्यक्ष नही रहेंगे।लेकिन इस सबसे पुरानी औऱ व्यापक प्रभाव वाली पार्टी में लोग इसके लिये तैयार नही है की कोई गैर गांधी इस पार्टी की कमान संभाले।कांग्रेस शासित सभी 5 मुख्यमंत्री ने राहुल से पद पर बने रहने का आग्रह किया है लेकिन पक्की खबर यही है कि राहुल अब अध्यक्ष नही रहने वाले है खबर यह भी है कि महाराष्ट्र के पूर्व सीएम औऱ देश के होम मिनिस्टर रहे सुशील कुमार शिंदे को सोनिया गांधी ने अगले अध्यक्ष बतौर काम करने के लिये कहा है।

अगर वाकई सुशील कुमार शिंदे कांग्रेस के अध्यक्ष बनते है तो यह एक बार फिर कांग्रेस का सेल्फ गोल साबित होगा और इस गोल के साथ पार्टी की वापिसी की संभावनाओ पर बड़ा ग्रहण लग सकता है।क्योंकि श्री शिंदे की पहचान न तो अखिल भारतीय है और न जन संघर्ष से निकले हुए नेता के रूप में उनकी ख्याति।देश के गृह मंत्री के रूप में उनके कार्यकाल का खामियाजा पिछले दो लोकसभा चुनावों में पार्टी हिन्दू ध्रुवीकरण के रूप में उठा ही रही है।और उम्र के इस पड़ाव पर युवा अध्यक्ष को श्री शिंदे ग्रहण करें यह किसी के गले नही उतरने वाला।

अगर वास्तव में 10 जनपथ ने सुशील कुमार शिंदे को अध्यक्ष की कमान सौंपी तो यह प्रधानमंत्री पद की लोकप्रियता औऱ गंभीरता को कमतर करने जैसा ही राजनीतिक कर्म होगा जो सोनिया गांधी मनमोहन सिंह को पीएम बनाकर कर चुकी है।यह तथ्य है कि मनमोहन सिंह एक नेक औऱ उत्कट विद्वान प्रधानमंत्री थे उनकी निष्ठा, उनकी सज्जनता, औऱ ईमानदारी स्वयं सिद्ध है पर यह भी हकीकत है कि वे राजनीतिक नही मूलतः एकेडमिक इंसान है। श्री मनमोहन सिंह का एक वित्त मंत्री औऱ फिर प्रधानमंत्री के रूप में योगदान अद्धभुत है। बाबजूद इसके वे संसदीय मॉडल की हमारी राजनीति के लिये फिट नही थे कम से कम प्रधानमंत्री जैसे लोकप्रिय पद के लिये जो नेहरू,इंदिरा,शास्त्री,अटल,राजीव औऱ आज मोदी जैसे अखिल भारतीय व्यक्तित्व द्वारा धारित हुआ है।ये ऐसे पीएम है जिनकी एक सभा आयोजित कराने के लिये मारामारी होती हो।ये ऐसे नेता और प्रधानमंत्री है जिनकी चर्चा खेत,खलिहान, से घर की चारदीवारी तक सब दूर सुनाई देती थी भले ही आप उनसे सहमत हो या असहमत।सच तो यही है कि भारत मे प्रधानमंत्री के लिये ही चुनाव होता रहा है प्रधानमंत्री शासन के समानान्तर राजनीतिक पद है देश की समूची राजनीति इसी पद के इर्दगिर्द रहती आई है।यही कारण है कि नेहरू,इंडिरा,राजीव नरसिंहराव प्रधानमंत्री रहते हुए भी कांग्रेस के अध्यक्ष बने रहे। यानी कांग्रेस अध्यक्ष का पद भारत की संसदीय राजनीति में एक बहुत महत्वपूर्ण आकार लिये हुए है।

अकेले शास्त्री जी और मनमोहन सिंह ही दो ऐसे कांग्रेसी पीएम है जो पीएम रहते अध्यक्ष नही रहे है।दोनो की स्थितियों को हम समझ सकते है इंदिरा-सोनिया की मौजूदगी से।

मनमोहन सिंह का एक प्रधानमंत्री रूप में कांग्रेस के लिये योगदान की जब जब चर्चा की जाएगी तब एक शून्य नजर आएगा यह सही है कि उनके नेतृत्व में 2009 में यूपीए ने सरकार बनाई पर ये हकीकत का एक सुविधाजनक पहलु ही है इस सत्ता वापिसी में एक पीएम के रूप में मनमोहन सिंह का क्या योगदान था???देश मे एक भी राज्य ऐसा नही था जहां कांग्रेस कैंडिडेट अपने पीएम की सभा कराने का आग्रह करते हो।यह बहुत ही विसंगतिपूर्ण स्थिति थी काँग्रेस के लिये उसका पीएम 2009 में किसी लोकसभा सीट से चुनाव लड़ने की हिम्मत नही दिखा सका।असल मे अर्जुन सिंह,प्रणव मुखर्जी, दिग्विजय सिंह,एके एंटोनी,चिदम्बरम, कैप्टन अमरिंदर गेहलोत, जनार्दन द्विवेदी, शीला दीक्षित, जैसे तमाम नेताओं को दरकिनार कर एक नोकरशाह का चयन 10 जनपथ के लिये तो मुफीद रहा पर कांग्रेस को 10 साल की सत्ता का राजनीतिक फायदा नही दिला सका जैसा नेहरू इंदिरा,शास्त्री,राजीव दिलाते थे ।कहना होगा ऐसी ही खिचड़ी सरकार अटल जी ने भी चलाई थी लेकिन हारने के बाबजूद एक पीएम के रूप में उनकी राजनीतिक ताकत इसलिये बनी रही क्योंकि वे मूलतः राजनीतिक थे ,अटल इंदिरा ,नेहरू,शास्त्री,के मन और मस्तिष्क में भारत की राजनीतिक ,सामाजिक समझ सदैव चैतन्य रहती थी जो आम भारतीय को उनके साथ सयोंजित करती थी लेकिन मनमोहन सिंह इस पैमाने पर कभी खरे नही उतरे।इसमें उनकी कोई गलती नही है क्योंकि वे मूलतःइस मिजाज के आदमी ही नही थे।

कहा जा सकता है कि मनमोहन सिंह के सिलेक्शन ने 134 साल पुरानी पार्टी को पहले 44 फिर अब 53 सीट्स पर लाकर टिका दिया यह यूपीए के 10 साल पर ही जनादेश था।मनमोहन सिंह औऱ यूपीए की उर्वरा भूमि पर ही मोदी का जन्म हुआ है कल्पना की जा सकती है कि मनमोहन की जगह प्रणव दा,अर्जुनसिंह ,दिग्विजय सिंह,कैप्टन अमरिंदर या कोई फूल टाइमर कांग्रेसी 10 बर्ष पीएम रहा होता तो शायद इस घटाटोप नैराश्य के हालात कांग्रेस में निर्मित नही हुए होते।प्रधानमंत्री मोदी ने जिस करीने से पीएम पद को मनमोहन सिंह के कार्यकाल से जोड़कर देशवासियों के सामने खुद को पेश किया वह अद्वितीय था। आज मोदी ने पीएम के पद को ऐसा लगता है मानो हर भारतीय के मन मस्तिष्क और सीने से भी जोड़ दिया है।यह स्थिति नेहरू,शास्त्री, इंदिरा के दौर से भी मजबूत नजर आती है तब संचार और सम्प्रेषण की सुविधाएं आज की तरह नही थी।

‌वस्तुतः जो गलती सोनिया गांधी ने मनमोहन के सिलेक्शन को लेकर की वही लगता है राहुल की कुर्सी पर सुशील कुमार शिंदे को बिठालकर की जायेगी क्योंकी आज कांग्रेस के सामने चुनोतियाँ का अंबार खड़ा है उसे राहुल जैसा यंग औऱ सही मायनों में दिग्विजय सिंह जैसा चतुर औऱ ऊर्जावान नेता चाहिये।श्री शिंदे का अपना कोई स्वतन्त्र अस्तित्व नही है वह हमेशा 10 जनपथ की उसी छत्र छाया में रहेंगे जिसके नीचे 134 साल पुरानी पार्टी की ऐतिहासिक पराजयो का सिलसिला थमने का नाम नही ले रहा है।अच्छा होगा कांग्रेस अध्यक्ष के पद पर दिग्विजय सिंह जैसे नेता को बिठाया जाए जो हर वक्त पॉलिटिकल मोड़ में रहते है उन्होनें दस साल मप्र को चलाया है अगर वे अपनी प्रो मुस्लिम इमेज को सुधार ले (जो एक रणनीति के तहत ही है क्योंकि निजी रूप से वे कट्टर सनातनी हिन्दू है)तो कांग्रेस में फिलहाल वे सबसे उपयुक्त नामो में एक है क्योंकि वे अहंकारी नही है और देश भर में कांग्रेस के कैडर को वे खुद से कनेक्ट कर खड़ा कर सकते है उन्होंने कांग्रेस का वैभव और पतन दोनो नजदीक से देखा है उनकी संगठन की क्षमताओं को इस विधानसभा चुनाव में देखा जा चुका है।वे दो बार मप्र के अध्यक्ष भी रह चुके है।मीडिया विमर्श में भले ही दिग्विजय सिंह को खलनायक के रूप में लिया जाए पर शिंदे की जगह वह कांग्रेस के लिये लाख गुना बेहतर साबित होंगे।इसी तरह महाराजा पटियाला कैप्टन अमरिंदर सिंह भी एक बहुत बढ़िया और नाम है पर वे शायद ही इसके लिये तैयार हो।पार्टी ने दक्षिण में इस बार अच्छा किया है इसलिय रमेश चेन्नीथला एक बेहतरीन विकल्प हो सकते है जिन्हें संगठन का सुदीर्ध अनुभव है।लेकिन आज कांग्रेस को बुनियादी चुनौती तो हिंदी बैल्ट से मिल रही है 17 राज्यो में उसका सफाया हो गया है।मोदी के रूप में एक ऐसा कम्युनिकेटर पीएम है जो ट्रम्प,आबे,पुतीन सबसे हिंदी में बात करता है ऐसे में कांग्रेस को दोहरे मोर्चे पर लड़ना है इसलिय दिग्विजय सिंह जैसे हरफ़नमौला की आवश्यकता ही इस कठिन चुनोती को कुछ भेद सकती है।असल मे आज कांग्रेस के सामने सिर्फ सत्ता बचाने या पाने की चुनोती नही है उसके अस्तित्व पर सवाल है।मोदी शाह की निर्मम जोड़ी ने 134 साल पुरानी पार्टी को मुद्दाविहीन ओर आइसोलेट करके रख दिया है।गांधी,शास्त्री,नेहरू, पटेल,औऱ आजादी के 75 साल सब मोदी ही करने वाले है देश की हर समस्या के लिये नई पीढ़ी में नेहरू गांधी परिवार को जिम्मेदार के रूप में स्थापित किया जा चुका है।राष्ट्रवाद के नायक के रूप में मोदी आज हीरो है जो दुश्मन को घर मे घुसकर मारने का माद्दा दिखाते है भूल जाइये1971 की लड़ाई।वैचारिक रूप से गांधी को मोदी अपने साथ सयुंक्त करने में सफल हो रहे है और कांग्रेस मोदीयुगीन भारत मे उनके अभेद्य प्रचार तंत्र के आगे नेहरू,इंदिरा राजीव की कहानियाँ सुनाकर जनता को मोदी से फिलहाल तो दूर नही कर सकती है क्योंकि निजी रूप से उनकी ईमानदारी पर आप कैसे दाग लगा सकते हो जब 134 साल पुरानी पार्टी का अध्यक्ष 3 साल तक लगातार देश विदेश में मोदी को चोर कहता रहा लेकिन जनता ने चौकीदारी चोर को ही देना उचित समझा क्योंकि वह जनताकी नजर में चोर नही था।

‌ऐसी विकट जमीनी चुनोतियाँ के बीच क्या शिंदे कांग्रेस का वैभव लौटा पाएँगे?

(लेखक राजनीति विज्ञान और लोक प्रशासन के फैलो है)

Updated : 8 July 2019 2:57 PM GMT
Tags:    
author-thhumb

Swadesh News

Swadesh Digital contributor help bring you the latest article around you


Next Story
Top