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यादों में अनंत : अपने पास आने वाले की हरसंभव मदद करते थे अनंत कुमार

यादों में अनंत : अपने पास आने वाले की हरसंभव मदद करते थे अनंत कुमार
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'उड़ जायेगा.... हंस.. अकेला, जग दर्शन का मेला।'

कबीर के इस निर्गुण को कुमार गंधर्व का स्वर। बोस के ध्वनि यंत्र पर गंधर्व का अलाप, ऐसा लग रहा था जैसे पास ही कहीं गा रहे हैं। हालनुमा बैठक में आंख बंद किये बैठे थे अनंत कुमार। उनको इस तरह स्वर के आरोह–अवरोह में डूबे देख मैं कुछ कहे बिना चुपचाप बैठ गया। जब निर्गुण पूरा हुआ तो अनंत कुमार ने आंखें खोलीं। सामने मुझे बैठा देखकर बोले, 'अरे आप कब से बैठे हैं, बोले क्यों नहीं ?'

मैने कहा , "उड़ जायेगा.... हंस.. अकेला , जग दर्शन का मेला । आप कबीर के इस निर्गुण और इसको अपने अलाप के आरोह – अवरोह पर साकार करते कुमार गंधर्व को सुनने में ध्यानमग्न थे।"

उन्होंने कहा, 'हां! पता नहीं क्यों, यह कबीर का निर्गुण और इसको साकार करता कुमार गंधर्व का यह अलाप मुझको ऐसा अहसास कराता है कि मेरे पास बहुत समय नहीं है।

मतलब ? मैंने सवाल किया । उन्होंने गहरी सांस लेते हुए कहा, इस पर किसी और दिन बात करेंगे।

वह दिन फिर नहीं आया लेकिन इस पर उनसे बात किये बिना, उनके बताये बिना, जवाब मिल गया। आज अनंत कुमार अंनत में विलीन हो गये। हंस अकेला उड़ गया। जग दर्शन का मेला रह गया।

अनंत कुमार किसी को मदद करने के लिए जो भी हो सकता था, हमेशा करते थे। चाहे वह परिचित हो या अनजान। एक बार मेरे एक मित्र जो उन दिनों इंडिया टूडे में थे, उनका बंगलौर से फोन आया कि उनके बेटा का राज्य के इंजीनियरिंग कालेजों में एडमिशन के लिए हुए टेस्ट में बहुत अच्छा नंबर आया है लेकिन वह जिस ट्रेड में एक इंजिनियरिंग कालेज में एडमिशन लेना चाहता है, उस कालेज वाले उसका एडमिशन नहीं कर रहे हैं। मैंने उनको कहा कि आप अनंत कुमार के यहां सुबह – सुबह पहुंच जाइये। अपना नाम व पता लिखकर उनके यहां अंदर भेजवा दीजिएगा, वह आपसे जरूर मिलेंगे। वह अनंत कुमार से मिलने गये। अनंत कुमार ने उनको बुलाया, पूछा कि कैसे आये हैं। उन्होंने समस्या बताई तो पता चला कि उनके लड़के का रैंक अच्छा है लेकिन वह जो विषय लेना चाहता है वह फार्म में भरा था लेकिन उस कालेज का नाम नहीं भरा था। यह सुनकर पर अनंत ने उनके लड़के को बहुत डांटा। उसके बाद उस कालेज के मालिक को फोन करके कहा कि इस बच्चे का रैंक व नम्बर आपके कालेज में एडमिशन के नार्म्स के अनुसार है। इसको मैं कल भेज रहा हूं। आप इसका एडमिशन करके कल मुझको बताइये। मेरे मित्र अपने बेटे को साथ लेकर उस इंजीनियरिंग कालेज में गये और उसका एडमिशन हो गया। यह था अनंत कुमार के काम करने का तरीका।

उस अनंत का राजनीतिक जीवन बहुत सहज व सरल नहीं रहा। उनको भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी बहुत मानते थे लेकिन कर्नाटक में येदियुरप्पा से उनकी समरसता बन नहीं पाई । इसको लेकर भाजपा व संघ के बहुत से लोग खिन्न रहते थे। येदियुरप्पा जब भाजपा से अलग हुए और कर्नाटक में विधानसभा चुनाव में भाजपा हारी, उन दिनों संघ के वरिष्ठ नेता मदनदास देवी बेगलुरु के स्वामी विवेकानंद योग व अनुसंधान संस्थान में थे। प्रशांति में उपचार करा रहे थे। उनकी तबीयत बहुत खराब हो गई । उनका ख्वाल रखने वाले और उन दिनों स्वामी विवेकानंद योग व अनुसंधान संस्थान के प्रबंधन का काम देख रहे पदाधिकारी शत्रुघ्न, जिनको मदनदास जी बहुत मानते हैं, ने बाद में उनसे बात की तो पता चला कि मदनदास जी कर्नाटक में अनंत कुमार व येदियुरप्पा के मतभेद से बहुत चिंतित हैं।

उस चुनाव में हार के बाद तो कहा जाने लगा था कि अनंत कुमार को किनारे लगाया जायेगा लेकिन हर परिस्थिति से उबर जाने वाले अनंत कुमार केन्द्र में 2014 में आडवाणी युग के अंत के बाद भी जमे रहे। अनंत कुमार के कुछ विश्वसनीय लोगों का कहना है कि इसमें संघ के नेता दत्तात्रेय ने उनकी बहुत मदद की। उनको केन्द्रीय मंत्री बनाया गया। कई बार विपरीत परिस्थितियों में, हडको, नीरा राडिया आदि मामले के अपयश से भी पार पा गये । इस तरह राजनीति में तो हर दौर में बने रहे लेकिन असमय आई मौत पर काबू नहीं कर पाये। कैंसर से हार कर अनंत कुमार अनंत में विलीन हो गये। और "हानि –लाभ , जीवन-मरण ,यश-अपयश विधि हाथ" पर सोचने को विवश करते गये ।

Updated : 14 Nov 2018 2:53 PM GMT
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Swadesh Digital

स्वदेश वेब डेस्क www.swadeshnews.in


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