स्वदेश विशेष: अंतरिक्ष में भारत का उदय

अंतरिक्ष यात्री ग्रुप कैप्टेन शुभांशु शुक्ला जब वापसी की उड़ान भर रहे थे तो उनसे पूछा गया कि अंतरिक्ष से भारत कैसा दिखता है? शुभांशु का जवाब था - " अंतरिक्ष से देखने पर आज का भारत निडर, महत्वाकांक्षा से भरा और आत्मविश्वासी दिखता है।" शुभांशु के इस जवाब में भारत की अंतरिक्ष रणनीति ही नहीं एक नए भारत के उदय, उसकी शक्ति और उसके सामर्थ्य का भाव बड़ी स्पष्टता से सामने आता है।
निश्चित ही शुभांशु के इस कारनामे ने अंतरिक्ष की ऊंचाईयों में भारत की एक नई पहचान स्थापित की है। मंगलवार 15 जुलाई का दिन ऐतिहासिक कहा जाएगा, जब शुभांशु शुक्ला 18 दिन अंतरिक्ष की गहराइयों में बिताकर लौटे।
उनकी इस यात्रा ओर सकुशल वापसी को सामान्य नहीं कहा जा सकता। उनकी वापसी भारतीय अंतरिक्ष इतिहास के उस स्वर्णिम अध्याय की शुरुआत है जो भविष्य में चंद्रमा, मंगल और अन्य दूसरे ग्रहों पर भारतीय पुरुषार्थ के पैर जमाने वाला है।
शुभांशु ने एक्सिओम - 4 मिशन के तहत अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (आईएसएस) पर जाकर एक ऐसा कीर्तिमान स्थापित किया जो न केवल भारत के लिए बल्कि संपूर्ण दक्षिण एशिया के लिए प्रेरणा बन गया है। इस ऐतिहासिक अंतरिक्ष यात्रा ने एक नए संदर्भ और नई दिशा के साथ राकेश शर्मा की विरासत को अक्षुण्ण रखा है।
यह यात्रा एक राष्ट्र के सपनों , उसकी क्षमताओं और उसके उज्ज्वल भविष्य की कहानी है जिसमें भारत केवल अंतरिक्ष की ओर ही नहीं ताकता बल्कि अंतरिक्ष के सीने पर अपने कदमों के निशान भी दर्ज करता है।
शुभांशु की यह अंतरिक्ष यात्रा कई मायनों में ऐतिहासिक रही है। अव्वल तो वे आईएसएस में कदम रखने वाले पहले भारतीय अंतरिक्ष यात्री बने हैं। इससे पहले 1984 में राकेश शर्मा ने रूस के मिशन में हिस्सा लिया था। लेकिन अंतरराष्ट्रीय स्तर पर, खासकर नासा एवं एक्सिओम - 4 स्पेस जैसे संगठनों के साथ भारत की सीधी भागीदारी पहली बार हुई है।
इस यात्रा में शुभांशु ने 18 दिनों में इसरो के सात महत्वपूर्ण प्रयोगों पर काम किया। उन्होंने अंतरिक्ष में जीवन की संभावनाओं को समझने के लिए एक प्रयोग किया। इसके अलावा अंतरिक्ष में मांसपेशियों के नुकसान, मस्तिष्क कंप्यूटर इंटरफेस, अंतरिक्ष में विकिरण, तरल पदार्थों के व्यवहार, पौधों की वृद्धि और स्वास्थ्य निगरानी जैसे महत्वपूर्ण प्रयोगों पर काम किया।
इन प्रयोगों के परिणाम हमें अंतरिक्ष में जीवन और काम करने के बारे में और अधिक जानकारी देने में सहायक साबित होंगे। इतना ही नहीं भविष्य के अंतरिक्ष अभियानों के लिए भी महत्वपूर्ण डेटा प्राप्त होगा। शुभांशु की यह यात्रा यकीनन भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम के लिए मील का पत्थर साबित होगी।
यह उपलब्धि न केवल हमारे वैज्ञानिकों, और इंजीनियरों की कड़ी मेहनत व समर्पण का प्रतिफल है बल्कि हमारे देश की तकनीकी प्रगति और आत्मनिर्भरता की भी गवाही देती है। शुभांशु की इस यात्रा ने अंतरिक्ष अनुसंधान में नई संभावनाओं के द्वार खोल दिए हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी शुभांशु की वापसी पर खुशी जाहिर करते हुए कहा ही है कि यह यात्रा भारत के मानव अंतरिक्ष मिशन की दिशा में मील का पत्थर साबित होगी। भारत का गगनयान मिशन एक महत्वाकांक्षी परियोजना है।
जिसका उद्देश्य भारतीय अंतरिक्ष यात्रियों को अंतरिक्ष में भेजना और सुरक्षित वापस लाना है। भारत इसके लिए प्राणपण से जुटा है। वह अपनी स्वदेशी तकनीक और क्षमताओं से यह कारनामा करना चाहता है। हम कह सकते हैं कि आने वाले दिनों में भारत अंतरिक्ष अनुसंधान के क्षेत्र में एक बड़ा और प्रमुख खिलाड़ी बनकर उभरेगा।
