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चीन नहीं अब भारत होगा दुनिया भर के निवेशकों की पहली पसंद

अरुण आनंद

चीन नहीं अब भारत होगा दुनिया भर के निवेशकों की पहली पसंद
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चीनी वायरस कोरोना से पैदा हुए कोविड—19 नामक रोग का असर दुनिया भर में ऐसा हुआ है कि इस रोग से निपटने के बाद दुनिया वैसी नहीं रहेगी जैसी आज है। दुनिया में शक्ति संतुलन बदलेगा। हम देख रहे हैं कि जिन देशों को हम विकसित कहते थे—अमेरिका, फ्रांस, इटली, स्पेन, ब्रिटेन, आदि, इस रोग से निपटने में वे खस्ताहाल हैं।

दूसरी ओर भारत है। भारत को अब तक लोग विकासशील देश मान रहे थे लेकिन कोरोना के प्रकोप से निपटने में जिस तरहं भारत में समाज व सरकार मिलकर काम कर रहे हैं वह अपने अपने तरीके का विलक्षण मॉडल है जो इन सब तथाकथित विकसित देशों के मॉडल पर भारी पड़ रहा है। इस मॉडल की खासियत यह है कि भारतीय अर्थव्यवस्था पर भले ही इस बीमारी का जबरदस्त असर हो रहा हो इसके बावजूद समाज में साधन संपन्न वर्ग यह सुनिश्चित कर रहा है कि वंचित वर्ग को कम से कम भोजन व रोज़मर्रा की वस्तुओं को लेकर कोई समस्या न हो। खासकर प्रवासी मज़दूरों के लिए बड़ी संख्या में शिविर लगाए गए हैं। लॉकडाउन के बाद बड़ी संख्या में प्रवासी श्रमिकों को वहीं रुकना पड़ा जहां वे थे। उनके लिए प्रशासन ने तो इंतज़ाम किए ही हैं, साथ ही बड़ी संख्या में समाज में सक्रिय गैर सरकारी समूहों व संगठनों ने भी उनकी देख— रेख का दायित्व अपने पर लिया है। संकट के इस समय में यह एक सुखद अनुभव है कि किस प्रकार समाज के सभी वर्ग एक साथ मिलकर इस दिशा में काम कर रहे हैं। भारत के इस मॉडल के प्रति विश्व भर में सकारात्मक माहौल है। साथ ही जिस प्रकार से केंद्र में मोदी सरकार ने समय रहते न केवल लॉक डाउन जैसे कड़े कदम उइाने में झिझक नहीं दिखाई वहीं यह भी सुनिश्चित किया कि इस कदम और अन्य दिशा निर्देशों का कड़ाई से पालन हो। राष्ट्र को बार—बार संबोधित कर सीधा लोगों से संवाद किया और उनकी आशंकाओं का निवाण कर उन्हें इस रोग के प्रति सजग होने के लिए तैयार किया। कुल मिलाकर पूरी दुनिया के लिए यह एक नए भारत की साकार होती परिकल्पना है जहां प्रशासन सुव्यवस्थित है, राजनीतिक इच्छाशक्ति मौजूद है और समाज—सरकार मिलकर सहज भाव से काम करते हैं। इसलिए आने वाले समय में हमें हैरानी नहीं होनी चाहिए अगर यूरोप तथा अमेरिका के उद्यमी चीन से अपना निवेश निकालकर भारत में उस निवेश को ले आएं। चीन के प्रति पूरे विश्व में आक्रोश है। न तो उसने समय रहते इस वायरस के बारे में चेतावनी दी और उन ही उसके बाद कोई उपयोगी जानकारी। इस वायरस के फैलने की शुरूआत चीन के वूहान शहर से हुई। वहां से लाखों की संख्या में चीनी दुनिया के विभिन्न हिस्सों में इस वायरस को ले जाने वाले कैरियर बने। चीन ने वूहान को लॉकडान किया था। माना जा रहा है कि चीन इस रोग से मरने वालों की संख्या को बहुत कम करके बता रहा है। इसके अलावा इसके द्वारा भेजे जा रहे स्वास्थ्य उनपकरणों में भी दूसरे देशों को कई कमियां मिल रही हैं जिससे इस रोग से निपटने के प्रयास भी प्रभावित हुए हैं।

ऐसे में विश्व भर में लोगों का मन बना रहा है कि चीन तथा चीनी वस्तुओं का बहिष्कार किया जाए। श्रम, बुनियादी ढांचे तथा अन्य भौतिक सुविधाओं के साथ भारत विश्व के लोगों की पहली पसंद बनने जा रहा है। हालांकि यह होने में समय लगेगा क्योंकि दुनिया के ज्यादातर अंतर्राष्ट्रीय संगठनों पर चीन का कब्ज़ा है। संयुक्त राष्ट्र की 11 में से चार संस्थाओं की अध्यक्षता चीन के पास है। सुरक्षा परिषद का चीन स्थायी सदस्य है। दुनिया के ज्यादातर हिस्सों में बैंकिंग, टेक्नॉलाजी और मैन्युफैक्चरिंग के क्षेत्र में चीनियों की गहरी पैठ है। चीनी सरकारी कंपनियां काफी हद तक दुनिया भर के खनिज पदार्थों व उर्जा के संसाधानों में से अधिकतर को नियंत्रित करती हैं। ऐसे में रातों—रात कोई परिवर्तन नहीं होगा। पर इतना तो तय है कि सरकारी व निजी, दोनों ही स्तरों पर भारत दुनिया की प्राथमिकताओं में शामिल होने जा रहा है। लेकिन इसके लिए भारत को भी तैयारी करनी होगी। अंतर्राष्ट्रीय संगठनों में भारत को अपनी पैठ और गहरी करनी होगी, घरेलु बुनियादी ढांचे को और मजबूत करना होगा तथा कर प्रणालियों व नियम—कायदों की जटिलता कम करनी होगी। साथ ही उस विमर्श के खिलाफ भी लड़ना होगा जो एक विशिष्ट वर्ग द्वारा अंतर्राष्ट्रीय मीडिया में भारत की बहुलतावादी देश की छवि बनाने के उद्देश्य से चलाया जा रहा है। विडंबना ये है कि खुद को भारतीय कहने वाले कुछ तथाकथित बुद्धिजीवी इसके पीछे हैं। इसके पीछे उनके निजी स्वार्थ भी हैं तथा वैचारिक भ्रम भी । अगर हम इन चुनौतियों से निपट पाए तो निश्चित ही संकट की इन घड़ियों को स्वर्णिम अवसर में बदला जा सकता है।

- लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं

Updated : 10 April 2020 7:00 AM GMT
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