स्‍वदेश विशेष: मंत्री हो तो नरेंद्र शिवाजी पटेल जैसा!

मंत्री हो तो नरेंद्र शिवाजी पटेल जैसा!
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प्रशंसा करनी होगी प्रदेश के ऊर्जावान स्वास्थ्य राज्य मंत्री नरेंद्र शिवाजी पटेल की। उन्होंने ग्वालियर में अपनी ही पार्टी के राष्ट्रीय नेता के पुत्र के विवाह प्रसंग में भोजन नहीं किया और अचानक शहर के क्वालिटी रेस्टोरेंट में छापा मारने ख़ुद चले गये। जो काम विभाग का एक निरीक्षक भी कर सकता है उसके लिए स्वयं मंत्री का जाना यह बताता है कि वह अपने 'कर्तव्य' के प्रति कितने 'संवेदनशील' हैं।

प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव को चाहिए कि वह अपने उन मंत्रियों को, जो अवैध रेत उत्खनन, बिजली चोरी, शराब और परिवहन की काली कमाई और निर्माण कार्यों में भ्रष्टाचार आदि में आँख बंद कर बैठें हैं, उन्हें श्री पटेल का उदाहरण दें, जो विधानसभा अध्यक्ष नरेन्द्र सिंह तोमर के पुत्र के विवाह समारोह का भोजन छोड़कर शहर के एक होटल में खाना खाने, सिर्फ इसलिए चले गये क्योंकि उन्हें छापा मारना था।

पूछा जाना चाहिए कि क्या श्री पटेल के लिए भाजपा के वरिष्ठतम नेताओं से सौजन्य भेंट और वहीं आत्मीयता से समय व्यतीत करने के बजाय खुद छापा मारने जाना इतना आवश्यक था?

अब यह खबर आम हो चुकी है कि मंत्री महोदय को शहर के क्वालिटी रेस्टोरेंट में सीट नहीं मिली। स्टाफ उन्हें पहचान नहीं पाया और 'सरकार' को गुस्सा आ गया। मंत्री, जन सेवक होता है। प्रधानमंत्री ख़ुद को प्रधान सेवक कहते हैं। पर श्री पटेल संभवत: इससे सहमत नहीं हैं। इसलिए उन्होंने मीडिया से ही यह पूछ लिया कि क्या आपको लगता है, मंत्री को सीट नहीं मिलेगी?

बेशक, भारतीय जनता पार्टी के शीर्ष नेतृत्व ने तत्काल हस्तक्षेप कर न केवल मंत्री से सवाल किए, बल्कि रेस्टोरेंट के मालिक से भी संवाद स्थापित कर उनकी पीड़ा को समझा। पर एक बार फिर यह सामने आ गया कि सत्ता का मद किस प्रकार कतिपय नेताओं के सिर चढ़ कर बोल रहा है।

मंत्री नरेंद्र शिवाजी पटेल के सुरक्षा अधिकारियों ने होटल स्टाफ के साथ अभद्रता की और मंत्री ने गुणवत्ता को लेकर छापामार कार्रवाई भी कर दी। सरकार, प्रशासन औचक निरीक्षण कर सकते हैं। यह भी संभव है कि क्वालिटी रेस्टोरेंट में क्वालिटी, मानक न हो। पर हालात कुछ और ही कहानी कह रहे हैं, जो वाकई गंभीर है।

क्या आपको लगता है मंत्री को सीट नहीं मिलेगी? यह पूछकर शिवाजी पटेल क्या कहना चाहते हैं? मुख्यमंत्री मोहन यादव, अभी भी कई बार राजधानी में रहते हुए भी विलंब होने पर सुशासन भवन में ही रात्रि विश्राम कर लेते हैं। प्रदेश संगठन भी कई अवसरों पर कार्यकर्ताओं के बीच सहजता के उदाहरण प्रस्तुत कर रहा है। वहीं खाने के लिए रेस्टोरेंट में सीट कुछ देरी से मिलने पर यह हंगामा दुर्भाग्यपूर्ण है। श्री पटेल को यह विचार भी करना ही चाहिए था कि शहर में उन्हीं की पार्टी के एक राष्ट्रीय नेता के पुत्र का विवाह प्रसंग था। देश भर के अति विशिष्टजन ग्वालियर में थे। एक मंत्री होने के नाते उनकी अतिरिक्त जिम्मेदारी थी। ऐसे में विवाह समारोह में भोजन न कर, बाहर भोजन करने का निर्णय भी समझ से परे है। रविवार को ग्वालियर में अति विशिष्ट जनों की उपस्थिति से विवाह प्रसंग एक उत्सवी वातावरण लिए था। प्रशासन भी सुखद अनुभूति में था। पर मंत्री महोदय की 'कर्तव्य परायणता' ने अनावश्यक तनाव का वातावरण निर्मित कर दिया।

और यह पहला अवसर नहीं है। मंत्री पुत्र भी राजधानी में अपने 'पुरुषार्थ' का प्रदर्शन कर चुके हैं। विचार करने वाली बात यह है कि भाजपा की रीति नीति और उसके पारदर्शी आचरण से व्यापारी समाज भी उससे सहानुभूति रखता है। लेकिन ऐसे प्रसंग पार्टी की छवि को नुकसान ही पहुँचाते हैं। शीर्ष नेतृत्व ने हस्तक्षेप कर मामले को शांत करने की कोशिश की है। लेकिन ऐसी घटनाएं फिर न हों यह तो सुनिश्चित करना ही होगा।

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