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आरक्षण के लिए हिंसक आंदोलन आखिर कब तक

लोग कहते हैं कि भारत में आरक्षण डॉ. भीमराव रामजी आंबेडकर की देन है, जबकि भारत में आरक्षण की व्यवस्था दरअसल अंग्रेजों ने शुरू की थी।

आरक्षण के लिए हिंसक आंदोलन आखिर कब तक
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- सियाराम पांडेय 'शांत'

मुफ्त पाना, मुफ्त खाना हम भारतीयों का स्वभाव बनता जा रहा है। इस स्वाभिमानी देश को न जाने किसकी नजर लग गई है। बिना कुछ किए मुफ्त में सब कुछ पा लेने की आदत से यह प्रमाणित हो गया है कि हम भारतीयों का आत्मविश्वास मर गया है। इस देश के नेता भी हमें इसी ओर ले जा रहे हैं। कांग्रेस अपने फायदे के लिए देश की नसों में नफरत का जहर घोल रही है। आरक्षण को लेकर महाराष्ट्र में हुई हालिया हिंसा को इसी रूप में देखा जा सकता है। सत्ता से पैदल हो चुकी कांग्रेस से इसके अधिक यह देश अपेक्षा भी नहीं कर सकता।

लोग कहते हैं कि भारत में आरक्षण डॉ. भीमराव रामजी आंबेडकर की देन है, जबकि भारत में आरक्षण की व्यवस्था दरअसल अंग्रेजों ने शुरू की थी। अंग्रेजों की आरक्षण व्यवस्था को लेकर किसी को भी ऐतराज नहीं था लेकिन भारतीय हुक्मरानों की आरक्षण व्यवस्था पर हर किसी को ऐतराज है। अंग्रेजों के लिए आरक्षण अगर फूट डालने का तरीका था तो भारतीय राजनीतिज्ञों का उद्देश्य भी इससे जुदा नहीं है। आरक्षण के नाम पर सियासत की रोटी सेंकने का खेल राजनीतिक दल यहां करते ही रहते हैं। डॉ. भीमराव रामजी आंबेडकर ने संविधान में दलितों और आदिवासियों के लिए केवल दस साल आरक्षण देकर उन्हें विकास की मुख्यधारा में शामिल करने का काम किया था लेकिन भारतीय राजनीतिज्ञों ने इस परंपरा को ताजिंदगी चलाते रखने का मन बना रखा है। देश को आजाद हुए 70 साल से ज्यादा हो चुके हैं लेकिन आज तक इस देश को आरक्षण से निजात नहीं मिल सकी है।

आरक्षण की आग में महाराष्ट्र भी जल रहा है। मराठा आरक्षण की मांग बलवती हो गई है। इस क्रम में एक युवक की मौत के बाद माहौल गरमा गया है। राज्य में हिंसा भड़क गई है। वाहनों में तोड़-फोड़ की जा रही है। 9 अगस्त 2016 को जब औरंगाबाद में आरक्षण के लिए पहली बार आंदोलन हुआ था तो उसमें हर व्यक्ति मौन था। यह आंदोलन सोशल मीडिया के जरिये संचालित हुआ था। न नारेबाजी हुई, न ही मंच लगाया गया। भाषण भी नहीं दिए गए। लोग बैनर पोस्टर तक अपने घर से नहीं लाए, आयोजकों ने जिसे जो दिया, आंदोलनकारी वही लेकर चले। बेहद अनुशासित और कतारबद्ध आंदोलन था। यह अलग बात है कि इस शांतिपूर्ण आंदोलन को मीडिया में कोई खास तवज्जो नहीं मिली। इसी तरह की रैली जब अहमदनगर में निकली और औरंगाबाद से भी अधिक भीड़ उमड़ी, तब यह आंदोलन चर्चा के केंद्र में आया। इस आंदोलन के लिए जो संगठन बनाया गया, उसका नाम भी मूक क्रांति मोर्चा रखा गया लेकिन मूक क्रांति इतनी जल्दी आक्रोश क्रांति में, तोड़-फोड़ और आग क्रांति में तब्दील हो जाएगी, इसकी शायद ही किसी को कोई कल्पना रही होगी। शांति के दीपक में जब राजनीति की माचिस जलती है तो ऐसा ही होता है। अब तो मराठा क्रांति मोर्चा ने तो महाराष्ट्र बंद का ऐलान कर दिया है। औरंगाबाद, कोल्हापुर, सतारा, सोलापुर, पुणे और मुंबई में अशांति का माहौल है। इंटरनेट सेवा बंद कर दी गई है। मृत युवक काकासाहेब शिंदे के अंतिम संस्कार में पहुंचे शिवसेना सांसद से भी भीड़ ने बदसलूकी की। एक और युवक आरक्षण आंदोलन के दौरान नदी में कूद गया। यह अलग बात है कि लोगों ने समय रहते उसे नदी से निकालकर बचा लिया। मराठा क्रांति मोर्चा के लोग मुख्यमंत्री देवेंद्र फडनवीस से इस्तीफा मांग रहे हैं। कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह का आरोप है कि मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने खुद आरक्षण देने का वादा किया था, लेकिन आज वे अपनी ही बात से मुकर रहे हैं। मतलब महाराष्ट्र में आरक्षण की आग कांग्रेस की ही लगाई हुई है। देश के जिस किसी भी राज्य में भाजपा की सरकारें हैं, वहां आरक्षण आंदोलन की झंडाबरदार कांग्रेस ही है।

एक मराठा- लाख मराठा का उद्घोष कर मराठा क्रांति मोर्चा आखिरकार किसका हित साध रहा है। दो साल पहले एमएनएस अध्यक्ष राज ठाकरे में मराठों की आरक्षण की मांग को गलत ठहराया था। उन्होंने आर्थिक आधार पर आरक्षण देने की मांग की थी और इस तरह के आंदोलन को समाज को बांटने की राजनीति बताया था। राष्ट्रवादी कांग्रेस के प्रमुख शरद पवार की भी आलोचना की। उन पर मराठा समाज के साथ धोखा करने का आरोप लगाया था। इस बदले हुए हालात में ठाकरे परिवार का क्या स्टैंड है क्योंकि उनकी भी राजनीति का आधार मराठा मानुष ही रहा है। अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लोगों को केंद्र सरकार ने उच्च शिक्षा में 27 प्रतिशत आरक्षण दे रखा है। सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के मुताबिक 50 प्रतिशत से अधिक आरक्षण नहीं दिया जा सकता, लेकिन तमिलनाडु में तो आरक्षण का प्रतिशत और भी ज्यादा कर रखा है। संविधान में पहले सरकारी और सार्वजनिक क्षेत्र की नौकरियों में एससी-एसटी के लिए 15 प्रतिशत और 7.5 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान था। बाद में अन्य वर्गों के लिए भी आरक्षण शुरू किया गया।

1882 में हंटर आयोग की नियुक्ति हुई। महात्मा ज्योतिराव फुले ने निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा के साथ सरकारी नौकरियों में सभी के लिए आनुपातिक आरक्षण की मांग की। त्रावणकोर के सामंती रियासत में 1891 के आरंभ में सार्वजनिक सेवा में योग्य मूल निवासियों की अनदेखी करके विदेशियों को भर्ती करने के खिलाफ प्रदर्शन के साथ सरकारी नौकरियों में आरक्षण के लिए मांग की गयी। 1901 में महाराष्ट्र के सामंती रियासत कोल्हापुर में शाहू महाराज द्वारा आरक्षण शुरू किया गया। सामंती बड़ौदा और मैसूर की रियासतों में आरक्षण पहले से लागू थे। 1908 में अंग्रेजों द्वारा बहुत सारी जातियों और समुदायों के पक्ष में, प्रशासन में जिनका थोड़ा-बहुत हिस्सा था, के लिए आरक्षण शुरू किया गया था। 1909 में भारत सरकार अधिनियम 1909 में आरक्षण का प्रावधान किया गया। 1919 में भारत सरकार अधिनियम 1919 में आरक्षण का प्रावधान किया गया। 1921 में मद्रास प्रेसीडेंसी ने जातिगत सरकारी आज्ञापत्र जारी किया, जिसमें गैर-ब्राह्मणों के लिए 44 प्रतिशत, ब्राह्मणों के लिए 16 प्रतिशत, मुसलमानों के लिए 16 प्रतिशत, भारतीय-एंग्लो/ईसाइयों के लिए 16 प्रतिशत और अनुसूचित जातियों के लिए आठ प्रतिशत आरक्षण दिया गया था। कालेलकर आयोग ने ओबीसी की 52 प्रतिशत आबादी का मूल्यांकन करने के लिए 1930 की जनगणना के आंकड़े का इस्तेमाल करते हुए पिछड़े वर्ग के रूप में 1,257 समुदायों का वर्गीकरण किया। 1980 में मंडल आयोग ने एक रिपोर्ट पेश की और मौजूदा कोटा में बदलाव करते हुए 22 प्रतिशत से 49.5 प्रतिशत वृद्धि करने की सिफारिश की। 2006 के वर्गीकरण के अनुसार पिछड़ी जातियों की सूची में जातियों की संख्या 2297 तक पहुंच गयी, जो मंडल आयोग द्वारा तैयार समुदाय सूची में 60 प्रतिशत की वृद्धि है। 1990 में मंडल आयोग की सिफारिशों को विश्वनाथ प्रताप सिंह द्वारा सरकारी नौकरियों में लागू किया गया। उसके समर्थन और विरोध में देश तब भी जला और आज भी जला। बस स्थान बदल रहा है। चेहरे बदल रहे हैं लेकिन आंदोलन का स्वरूप वही है। अगर कांग्रेस वाकई आरक्षण के प्रति गंभीर रही होती तो वह सभी पिछड़ी जातियों को आरक्षण सूची में शामिल कराती लेकिन अब वह जिस तरह की राजनीति कर रही है, उससे एक देश में कभी एकता का माहौल नहीं बन सकता।

Updated : 25 July 2018 8:16 PM GMT
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Naveen Savita

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