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हिन्दुत्व समावेशी भी और प्रतिरोधी संस्कृति का परिचायक भी

डॉ. आनंद पाटील

हिन्दुत्व समावेशी भी और प्रतिरोधी संस्कृति का परिचायक भी
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वेबडेस्क। हिन्दी में एक कविता है – 'बात बोलेगी'। पंक्तियाँ हैं, "बात बोलेगी, हम नहीं। भेद खोलेगी, बात ही।" अतः बात-बेबात बेसिर पैर की बात करनेवाले बड़बोले नेता और बुद्धिवादी-अतिबुद्धिवादी बकताओं की बातों का विश्लेषण उनकी बातों को दृष्टिगत रखते हुए ही किया जाना चाहिए। वे बातों ही बातों में अनर्गल बातें कर जाते हैं। सुन कर लगता है कि या तो मदहोशी में बोल रहे हैं, या बेहोशी में! यह मामला परवरिश का भी है। सुविधापरस्ती में पालन-पोषण की अनेकानेक दुविधाएँ होती हैं। चाहें जितनी सुविधाएँ दीजिए, मेन्टोरिंग कीजिए, बच्चे मंदबुद्धि रह ही जाते हैं। ऐसे बच्चे बहुत बार अनियंत्रित कुछ भी बोल जाते हैं। अनियंत्रित (अपसंस्कारी) कृत्य कर जाते हैं। उदाहरणार्थ, जिस विषय का बोध न हो, उस पर बयान दे देना ; अध्यादेश फाड़कर फेंकना इत्यादि। ऐसे बिगड़ैल बच्चों में एक बड़ा गुण होता है - 'बेडौल गुणवत्ता'। इसी गुणवत्ता से वे सबका ध्यान अपनी ओर आकर्षित करना चाहते हैं। इसी गुणवत्ता का परिणाम है कि वे सबके ध्यानाकर्षण के लिए कोई-न-कोई बेसिर पैर की बात करते हैं। कभी-कभार अनपेक्षित और अचम्भित करनेवाले कृत्य करते हैं। संयोग से ये सारी बातें राहुल गांधी के आचरण-व्यवहार पर 'फिट' बैठती हैं।

इधर, एक भाषण में राहुल गांधी ने 'हिन्दू बनाम हिन्दुत्ववादी' का अनर्गल राग अलापा है। कुछ समय पूर्व अपनी जड़ों से बेखबर राहुल अपना गोत्र खोजने निकले थे। हिन्दू होने का प्रमाण खोजने निकले थे। अब हिन्दू बनकर अपना अस्तित्व बचाने निकले हैं। हिन्दू बनाम हिन्दुत्ववादी वाले बयान में उनकी 'बेडौल गुणवत्ता' स्पष्ट दिखाई देती है। उन्होंने गांधीजी के 'सत्य के प्रयोग' का उल्लेख किया और फिर राजनीतिक दृष्टि से 'गांधी' नाम से लाभ उठाने के लिए उन्हें फिर मार दिया। नाथुराम गोडसे ने गांधी की हत्या की और क्यों की, इस पर वाद-विवाद होते रहे हैं। परंतु, गांधी के नाम पर राजनीतिक रोटियाँ सेंकनेवाले कांग्रेसी तथा राजनीतिक गांधी परिवार ने बातों ही बातों में गांधीजी की अनेकों बार हत्या की है। भारतीय जनमानस भलीभाँति परिचित है कि राजनीतिक गांधी परिवार गांधीजी की नीति-मीमांसा का किस क़दर और किस हद तक अनुसरण करता है। गांधीजी ने 'हृदय परिवर्तन' का सिद्धांत प्रतिपादित किया था। अकूत संपत्ति के मालिक राजनीतिक गांधी परिवार को उस सिद्धांत का अनुसरण करते हुए गरीबी हटाने का कार्य करना चाहिए। वाल्मिकि मंदिर में एक दिन झाडू लगाने से क्या होता है? भारतीय लोकमन स्पष्ट है कि जब-जब राजनीतिक गांधी परिवार का अस्तित्व ख]तरे में आता है, गांधीजी का सहारा लिया जाता है। सब जान रहे हैं कि जिस दल में लोकतंत्र को ताक़ पर रख दिया गया हो, उसे बड़ी-बड़ी बातें नहीं करनी चाहिए।

राहुल ने अपने भाषण में कहा कि "हिन्दुत्ववादी अपनी पूरी ज़िंदगी सत्ता खोजने में डाल देता है। लगा देता है। उसको सत्य से कुछ लेना-देना नहीं। उसे सिर्फ़ सत्ता चाहिए और सत्ता के लिए वो कुछ भी कर डालेगा। किसी को मार देगा, कुछ भी बोल देगा, जला देगा, काट देगा, पीट देगा, मार देगा। उसे सत्ता चाहिए। उसका रास्ता सत्याग्रह नहीं, सत्ताग्रह है।... हिन्दुत्ववादी और हिन्दू के बीच फर्क़ है। आप सब हिन्दू हो, हिन्दुत्ववादी नहीं। यह देश हिन्दुओं का देश है। हिन्दुत्ववादियों का नहीं।"

इस पूरे बयान से राहुल के बौद्धिक मूल्यांकन और विश्लेषण किया जा सकता है। पहली विशेष बात, राहुल ने यह मान लिया कि यह देश 'हिन्दुओं का देश' है। इससे हिन्दुओं के संबंध में गढ़े गए तमाम भ्रामक तथ्य खारिज़ हो जाते हैं। वे और उनकी पार्टी तो यह मानती रही है उन्होंने अर्थात् भारत की सत्ता हस्तगत करनेवाले(ओं) ने 'भारत की खोज' की है। इनके साथ गठजोड़ करने वाले, जनवाद की बात करनेवाले मानते (रहे) हैं कि यह देश एक देश है ही नहीं। कभी था ही नहीं। इनके दल का संयोग से प्रतिनिधित्व करने वाले देश के अतिमितभाषी प्रधानमंत्री ने यहाँ तक कहा था कि इस देश के "संसाधनों पर पहला हक अल्‍पसंख्‍यको का है।" ऐसे अल्पसंख्यक, जो वास्तव में किसी भी दृष्टि से अल्पसंख्यक नहीं हैं। बल्कि बहुत सारे राज्यों और जिलों में घनघोर रूप में बहुसंख्यक हैं। फिर भी डंके की चोट पर इस देश पर उनके अधिकार को बताया जाता रहा। अस्तु, अंततः राहुल यह मान रहे हैं कि यह 'हिन्दुओं का देश है'। कहना न होगा कि या तो वे पहले झूठ बोल रहे थे, या फिर अब झूठ बोल रहे हैं।

फिर एक और बात रेखांकनीय है, "पूरी ज़िंदगी सत्ता खोजने में डाल देता है। लगा देता है। उसको सत्य से कुछ लेना-देना नहीं। उसे सिर्फ़ सत्ता चाहिए और सत्ता के लिए वो कुछ भी कर डालेगा।" हिन्दू (हिन्दुत्ववादी/ भारतीय) समझ रहे हैं कि जो व्यक्ति केवल 'गांधी' नाम के कारण सुख भोग रहा हो, उसका सत्य और सत्याग्रह पर कुछ भी बोलना कितना युक्तियुक्त है। आखिर वह क्या खोज रहा है? वैसे भी, सब जान-समझ रहे हैं कि सत्ता के लिए कौन कितना आतुर हैं? इन्हें अब भी विश्वास नहीं हो रहा है कि एक साधारण परिवार का प्रचारक तथा भारतमाता का सच्चा सेवक एवं निष्काम योगी प्रधानमंत्री बन सकता है। सत्ता पर तो तथाकथित गांधी परिवार का 'ट्रेडमार्क' सा हो चुका था। सब जानते हैं कि तथाकथित गांधी परिवार से बाहर का कोई नेता कांग्रेस का अध्यक्ष नहीं बन सकता। लोकतंत्र का मज़ाक बनानेवाले पारिवारिक दल, कांग्रेस और राहुल को जानना-समझना चाहिए कि सच्चे हिन्दू जाग गये हैं।

दो राय नहीं कि राहुल अत्यल्प 'ज्ञानी' हैं। 'लेना-देना' में 'लेने' और 'देने' का भाव है, अर्थात् सरोकार है। यदि यह देश हिन्दुओं का है, तो हिन्दुत्ववादियों को इसकी हर बात से सरोकार है/ होगा। अनर्गल बकबक सुनकर गाँव का स्मरण हो आया है। गाँव में 'अनपेक्षित' प्रतिभावालों को एक प्रश्न अकारण ही नहीं किया जाता - "तेरी माँ ने क्या खाके पैदा किया है?"

राहुल को सबसे पहले, अफ़लातून बोलना छोड़ देना चाहिए। थोड़ा-बहुत 'गृहकार्य', शोधकार्य करना चाहिए। नकल के लिए भी अकल की आवश्यकता होती है। 'हिन्दुत्व' को समझने के लिए 'हिंदू' होना (बनना?) आवश्यक है। अल्पसंख्यकवाद और सेक्यूलरवाद की नाँव में बैठकर हिन्दुत्व को समझना दुष्कर कार्य है। इधर, कुछ लोग इस्लाम त्यागकर हिन्दू बन रहे हैं। 'ऑसम विदाउट अल्लाह' के प्लैकार्डवाले चित्र हवाओं, फिज़ाओं में लहरा रहे हैं। राहुल को गोत्रधारी, जनेउधारी हिन्दू का चोला त्यागकर सच्चे अर्थों में हिन्दू (हिन्दुत्ववादी) बनना होगा। यदि ऐसा करते भी हैं, तो उनकी स्वीकार्यता संदेहास्पद ही है। क्योंकि सनातन में 'कर्मफल' का सिद्धांत काम करता है।

'हिन्दुत्व' निस्सार विचारों की दुहाई देनेवाले बुद्धिवादी मैकाले पुत्रों की समझ में नहीं आ सकता। वैसे भी, मंदबुद्धि और दुर्बुद्धियों से 'हिन्दुत्व' को समझने की अपेक्षा करना बेमानी है। दो राय नहीं कि राहुल इस सदी के सबसे दुर्लभ और बिहड़ सोच-समझवाले जन्मजात नेता हैं।

यदि राहुल यह मान चुके हैं कि भारत 'हिंदू' भूमि है, तो यह भी जानना-समझना होगा कि यह हिन्दू भूमि 'बहुलतावादी' संस्कृति की भूमि है। अखिल संसृति को 'कुटुंब' माननेवाले उदारवादियों की भूमि है। 'ज्ञान', 'दर्शन', तत्व-चिंतकों की भूमि है। इस भूमि को पदाक्रांत करने हेतु लूटेरे-आक्रांता आते रहे, परंतु इसका अस्तित्व 'हिंदुत्व' की धार और धारा के कारण बना हुआ है। जिस भूमि में शस्त्र और शास्त्र शिक्षा का मूलाधार हों, जहाँ शास्त्रों में 'सदरक्षणाय खलनिग्रहणाय' की संकल्पना वर्णित हो, वह वंदनीय एवं अनुकरणीय भूमि है। विश्वेतिहास में 'हिन्दुत्व' सर्वसमावेशी संस्कृति का परिचायक भी है और 'प्रतिरोधी संस्कृति' की जन्मदाता भी है। समझदारों के लिए इतना ही विश्लेषण पर्याप्त है।


Updated : 20 Dec 2021 8:00 AM GMT
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