गुरु गोविन्द सिंह जयंती विशेष : दशमेश शिरोमणि के अमूल्य एकादश उपदेश
प्रकाश पर्व के उपलक्ष्य में प्रेरक पुण्य प्रसंग
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"सत श्री अकाल" पौष शुक्ल सप्तमी संवत् 1723 (ई सन 1666) के दिन अवतरित, देश, धर्म, संस्कृति एवं मानवता की रक्षा के लिए, भक्ति-शक्ति तथा आस्था एवं शौर्य के शिरोमणि, खालसा पंथ के संस्थापक, दशमेश पिता परम पूज्य श्री गुरु गोविन्द सिंह महाराज जी ने मुग़ल तथा अफगान सुलतान के अत्याचारों के विरुद्ध संघर्ष में लगभग 05 वर्ष से 17 वर्ष की आयु के अपनेचार शूरवीर सुपुत्रों सहित अपने प्राणों का भी अमर बलिदान दियाथा | उनके इस अदम्य साहसिक गौरवशाली सम्पूर्ण वंश के बलिदान के सम्मान में उनका पुण्य स्मरण "सर्व वंश दानी" केअलौकिक स्वरूप में भी किया जता है। गुरुमुखी- पंजाबी, संस्कृत तथा फारसी भाषा-लिपि में पारंगत. वीर रस एवं आध्यात्म साहित्य के मनीषी, शास्त्र एवं शस्त्र विद्या के परम विद्वान, सामजिक समरसता के संत सिपाही, राष्ट्रीय अस्मिता के संरक्षक द्वारा जन जन के सफल सम्मानित जीवन यापन केलिए ग्यारह सूत्री उपदेश संहिता प्रदान की थी जो वर्तमान युग की चुनौतियों का सामना करने हेतु भी प्रसांगिक हैं। पंजाबी भाषा से अनुवादित उक्त पुण्य उपदेशों का सार सन्देश निम्नानुसार है:
(1) धर्म निहित कर्म:धर्म निहित आदर्शों का पालन करते हुए जीवन निर्वाह
(2) दशमांश दान : आय के दसवें अंश का दान समर्पण
(3) गुरुवाणी जाप : गुरुवाणी के माध्यम से ईश्वर का ध्यान
(4) निरंतर श्रम :निष्ठा पूर्ण कार्य
(5) घमंड, अहंकार का त्याग
(6) परनिंदा त्याग, परपीड़ा से परहेज
(7) मानव सेवा: दिव्यांग, निराश्रित जन की सेवा
(8) शारीरिक दक्षता, आत्म रक्षा में कुशलता
(9) वचन, प्रतिज्ञा का पालन
(10) व्यसन मुक्त जीवन: तम्बाकू, शराब, मादक पदार्थों का त्याग
(11) अत्याचार के विरुद्ध योजना पूर्ण समर एवं संघर्ष
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श्रदान्वत, कोटिश: नमन
डॉ. सुखदेव माखीजा
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