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बानिकी सह-उद्यानिकी समय की जरूरत

बानिकी सह-उद्यानिकी समय की जरूरत
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वेबडेस्क। हमारे देश की वर्तमान जनसंख्या 1380 005 385 के करीब है। जो विश्व जनसंख्या की 17.70 प्रतिषत है। आज हमारा देष खाद्यान्न के मामले में आत्मनिर्भर है। भारत में प्रतिदिन लगभग 400 ग्राम सब्जी प्रति व्यक्ति प्रतिदिन मिलती है जो जरूरत के हिसाब से ठीक है परन्तु फल की उपलब्धता प्रति व्यक्ति प्रतिदिन 115 ग्राम हैं, जबकि जरूरत 200 ग्राम प्रतिदिन की है। भारत में प्रति व्यक्ति को आवष्यकतानुसार आवष्यक पोषक तत्वों की उपलब्धता नहीं हो पाने से लोग बहुत सारी बीमारियों से ग्रसित हो जाते हैं, क्योंकि व्यक्ति को स्वस्थ रहने के लिए लगभग 17 पोषक तत्वों की जरूरत होती हैं। कृषि योग्य जमीन कुल 159.70 मिलियन हैक्टयर है जो यूनाइटेड स्टेट के बाद सबसे ज्यादा है। कृषि से 16 प्रतिषत जी0डी0पी0 में योगदान होता है, जिससे 10 प्रतिषत निर्यात में योगदान होता है। कुल क्षेत्रफल का 60.43 प्रतिषत क्षेत्रफल कृषि कार्य में उपयोग होता है। कृषि आधारित कार्य जैसे अनाज उत्पादन, फल उत्पादन, सब्जी उत्पादन तथा वानिकी उत्पादन को देखे तो फल एवं सब्जियाँ शरीर को रोग से लड़ने वाली शक्ति देने की विषेष क्षमता रखती हैं। जो विटामिन एवं मिनरल प्रदान करती है अब फल एंव सब्जियों का क्षेत्रफल बढ़ाने की परिस्थितियाँ लगभग नहीं के बराबर है। उत्पादकता अब सिर्फ वर्टिकल बढ़ाई जा सकती है। ऐसी परिस्थिति में कोविड-19 जो पूरे विष्व को दहसत में किये हुए है, उससे भी बचने हेतु व्यक्ति के शरीर में इम्यनिटी अच्छी रहना ही एक विकल्प दिखता है। हमारे देष में अनाज उत्पादन 98008000 हे0 फल 6.66 मिलियन हैक्टर क्षेत्रफल एवं वानिकी 712243 स्क्वायर किलोमीटर क्षेत्रफल में होती है। जिसमें वानिकी 99278 स्क्वायर कि0मी0 में बहुत घना, 308472 स्क्वायर कि0मी0 औसत सघन और 304499 स्क्वायर कि0मी0 खुला जंगल है। खुले और औसत घने क्षेत्र में यदि हम जंगल-वानिकी के साथ फल पौधा (उद्यानिकी) का रोपण करें तो फल उत्पादन क्षेत्रफल को बढ़ाया जा सकता है। इस तरह वानिकी के साथ उद्यानिकी (फलों) की खेती कर हम देष वासियों को फल की उपलब्धता बढ़ाकर उनके शरीर में रोग से लड़ने की क्षमता बढ़ाकर समय-समय पर होने वाली भयानक बीमारियों जैसे कोविड-19, आॅख की रोषनी, दाॅत एवं हडिडयों में मजबूती बनने, सुदृढ शरीर, बनने में सहायक पोषक तत्वों की उपलब्धता बढ़ाकर हम परोक्ष रूप में देष वासियों को स्वस्थ्य बनाकर राष्ट्र को स्वस्थ एवं धनी बना सकते हैं।

प्राकृतिक रूप से बन क्षेत्र में जो फल पौधे स्वतः जमकर तैयार हो जाते हैं उनका वहाॅ की परिस्थिति में संतुलन होने से उन्हें आसानी से उगाया जा सकता है। मूलतः हम उन्हें औषधिय फल पौधे कह सकते है जैसे बेल जो भारत का पौधा है और इसकी पत्तियाॅ और फल औषधीय गुणों से भरपूर है। इनका उपयोग बहुतायत होता है। अन्य वृक्ष जैसे- बबूल, नीम, बरगद, पीपल, अर्जुन, अषोक तथा अमलतास, एलोवेरा, तुलसी, नीम,हल्दी और अदरक आदि स्वस्थ के लिए विषेष लाभप्रद है।

आंवला- विटामिन सी का धनीफल है, पेट खराब होने पर प्रयोग करने से बहुत राहत मिलती है। खून कि कमी, पिलिया और सर्दी जुखाम में विषेष लाभप्रद है।

कटहल- जो ह्दय सम्बंधी समस्याओं में पोटेषियम से धनी होने के कारण विषेष लाभप्रद है। आइरन का धनी होने से एनीमिया में लाभप्रद और अस्थमा में लाभकारी है।

करौंधा- दाॅत को स्वस्थ रखता है। पेट ठीक रखता है, कोलेस्ट्राल का स्तर ठीक रखने के साथ-साथ शरीर की इम्यूनिटि बढ़ाता है।

फिग (गूलर)- जो कैल्सियम एंव पौटेषियम में धनी है, और हंडी की सघनता बढ़ाता है, इसका प्रयोग हडिडयों को मजबूती प्रदान करता है, और जंगल में आसानी से उगता जा सकता है। 2-3 फल का सेवन प्रतिदिन बहुत फायदेंमद है।

चिरौंजी- जो गैस्ट्रिक श्राव को कम कर गैस्ट्रिक अल्सर को रोकने में मदद करता है, और मधुमेह रोगियों के लिए विषेष लाभप्रद है।

जंगली जलेबी- इस मनीला टैमरिंड के नाम से भी जाना जाता है। इसका स्वाद सूखे नारियल फल जैसा होता है इसका प्रयोग वजन घटाने, ग्वाटर समस्या खतम करके सूगर समस्या कम करने हंडी एंव मसल ठीक रखने, इम्यून दुरस्त करने, एनजाइटी एवं डिप्रेसन खतम करने में लाभप्रद है।

मैंगोस्टीन- फल खटमिटठा होता है, और महक आम से मिलती है। इसे फलों की रानी भी कहते है। इसमें बहुत पोषक तत्व पाये जाते हैं, जो बहुत सारी बीमारियों को ठीक करने में कारगर है। रक्त चाप सामान्य करने, कैंसर से बचाव, वनज कम करने, मासिक धर्म से जुडी परेषानियों को कम करने, पाचक ठीक रखने, रक्त सर्करा नियत्रंण करने में उपयोगी है। इसमें विटामिन ए, सी के अलावा, आइरन, पोटैषियम, कैल्सियम, विटामिन बी काम्पलेक्स वसा एंव प्रोटीन अच्छी मात्रा में होने से स्वस्थ रहने में मदद मिलती है।

करमबोला/स्टारफ्रूट- यह एक ट्रापिकल फ्रूट है जो खटटा होने से चटनी, अचार बनाने के काम आता है। यह फैटी लीवर समस्या घटाता है, ब्लड सूगर बनाता है और कार्डियोभैस्कुलर सिस्टम को ठीक रखता है।

करौंदा- यह एक रेषायुक्त फल है, जो पूरे पाचन क्रिया को ठिक रखता है। बुखार में फायदेमंद है मानसिक स्वास्थ ठिक रखता है। कार्डियक मसल्स को मजबूत बनाता है और सूजन को भी सुधारता है।

उड एपिल- इस फल की पत्तियॅा पके एंव कच्चे रेषे तथा खोद/रेसिन दवा के काम आते है। कच्चा फल दस्त लगने पर प्रयोग करने से बहुत उपयोगी है। पके फल का प्रयोग हिचकी को ठीक करता है।

तेंदू फल- यह चीकू से भी मीठा होता है। फल हल्के पीले होते है। इसकी पत्तियों से बीड़ी बनाई जाती है। यह कफ, पित्त दुर करने वाला, अलसर में फायदेमंद होता है। मधुमेहं, रक्त दोष, मोटापा और पित्त दोष को ठीक करने वाला फल है। मुह एवं गले के रोगो को टीक करता है।

महुआ फल- इसके फूल को सूखा कर पाउडर प्रयोग करने से सिर र्दद, अँाखो कि जलन जैसी समस्याओ से छुटकारा मिलता है। फूल का रस आटे के साथ मिला कर मीठी पैकोडी बनाते है। कच्चे फलो से सब्जी बनाते है तथा पकने पर भी यह फल स्वादिष्ठ होते है।

उपरोक्त दषार्ये जंगली फलो वाले वृक्षो को क्षेत्रानुसार सामान्य सघन से बहुत कम सघन क्षेत्र वाले जंगल में वैज्ञानिक, तरिको से जैसे सही-दूरी पर उचित आकर के गढढ़े बनाकर, संतुलित मात्रा में खाद एंव उरवरको का प्रयोग, तथा उचित पौधा सुरक्षा कर, उन्नत किस्मों को लगा कर हम कम देखभाल कर के भी जंगल कि सघनता बढ़ाकर, फलो की उपलब्धता बढ़ा सकते है। जिससे देष के नागरिकों के शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को मजबूत कर सकते है। और कोविड जैसी महामारी के आलावा अन्य बीमारीयों से नागरिकों को मुक्त कर स्वस्थ एंव सम्पन्न भारत की परिकल्पना को साकार कर सकते हैं।

Updated : 2 Feb 2023 7:09 AM GMT
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स्वदेश डेस्क

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