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अटूट रिश्ते की डोर से बंधे 'फिजी और हिंदी'

अनिल जोशी, उपाध्यक्ष, केंद्रीय हिंदी संस्थान

अटूट रिश्ते की डोर से बंधे फिजी और हिंदी
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वेबडेस्क। फिजी में आयोजित 12वें विश्व हिंदी सम्मेलन से फीजी ने हिंदी विश्व में एक महत्वपूर्ण स्थान बनाया है। 12वें विश्व हिंदी सम्मेलन की एक विशेषता यह रही कि यह प्रशांत क्षेत्र याने फीजी , न्यूजीलैंड, आस्ट्रेलिया क्षेत्र में आयोजित पहला विश्व हिंदी सम्मेलन था। इस सम्मेलन का एक महत्वपूर्ण आयाम यह था कि अन्य गिरमिटिया देशों जैसे मॉरीशस , त्रिनि़डाड , सूरीनाम, दक्षिण अफ्रीका आदि में विश्व हिंदी सम्मेलनों का आयोजन पहले किया जा चुका है, परंतु फीजी में विश्व हिंदी सम्मेलन का आयोजन पहली बार हुआ। भारत फीजी संबंधों में हिंदी का संदर्भ लेकर जब हम बात करते हैं तो कुछ महत्वपूर्ण आयाम उभर कर आते हैं। पहला, यह कि भारत से बाहर फिजी एक ऐसा देश है जिसकी राजभाषा हिंदी है । इसे 'फीजी हिंदी' कहा गया। दूसरा यह है कि फीजी में हिंदी जीवंत भाषा है यह केवल साहित्य और संग्रहालय में नहीं रह गई है । यह आज भी गांव, हाट, बाजार में प्रयोग हो रही है । इस दृष्टि से फिजी में 12वें विश्व हिंदी सम्मेलन का आयोजन एक अविस्मरणीय घटना थी।

अनिल जोशी, उपाध्यक्ष, केंद्रीय हिंदी संस्थान

सम्मेलन इस दृष्टि से भी महत्वपूर्ण रहा कि सम्मेलन में फीजी के राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, तीनों उप -प्रधानमंत्री व कई मंत्रियों का आगमन और भागीदारी रही। इसमें भी जब हम देखते हैं कि फीजी के प्रधानमंत्री श्री सितवेनी रांबुका के वक्तव्य में प्रमुख मुद्दे क्या थे तो हम पाते हैं कि फीजी में हिंदी के विकास और फीजी में आदिवासियों और भारतीय मूल के लोगों के संबंधों को लेकर उनके वक्तव्य में बहुत सी महत्वपूर्ण बातें कही गई। एक समानता जो आज दुनिया के सभी अंग्रेजी से इतर भाषा बोलने वाले देशों में देखी जा सकती है, वह है अपनी भाषा का यथोचित सम्मान और यथोचित प्रयोग ना हो पाने का दंश। फिजी के प्रधानमंत्री ने अपने वक्तव्य में कहा कि भाषा केवल अभिव्यक्ति का माध्यम नहीं है अपितु यह हमारे मन, दिमाग, दिल में रहती है। हमारी बातचीत की लय का इससे निर्धारण होता है और उस नाते से फिजी में 30% से अधिक लोगों द्वारा बोले जाने वाली भाषा हिंदी और आदिवासियों की भाषा ई -तोकई का संरक्षण, संवर्धन और प्रयोग उनकी सरकार की प्राथमिकता है। उनकी दूसरी महत्वपूर्ण घोषणा गिरमिटिया दिवस को लेकर थी। उन्होंने कहा कि इस वर्ष से गिरमिटिया दिवस पर सार्वजनिक अवकाश होगा और इस देश के विकास में गिरमिटिया समाज के योगदान को देखते हुए उसे भव्यता के साथ मनाया जाएगा। उन्होंने डायस्पोरा के प्रसिद्ध लेखक प्रोफेसर बृजलाल के देश से निकाले जाने और उनकी अस्थि विसर्जन ना होने देने पर दुख प्रकट किया और पूरी गरिमा के साथ फिजी में उनके अस्थि विसर्जन के प्रस्ताव के संबंध में जानकारी दी । यह दोनों विषय सांकेतिक भी हैं और नई सरकार हिंदी और डायसपोरा को कितना महत्व देती है यह भी स्पष्ट करते हैं। फीजी के वर्तमान प्रधानमंत्री ने अतीत की घटनाओं पर दुख भी प्रकट किया । संदर्भ उनके द्वारा वर्ष 1987 में किए गए सैनिक विद्रोह का था । उन्होंने कहा कि वे इस देश के निर्माण और विकास में गिरमिटिया समाज के महत्वपूर्ण योगदान को समझते हैं ।फीजी के उप प्रधानमंत्री प्रोफेसर बिमान प्रसाद ने यह भी बताया कि अब संसद में हिंदी और ई -तोकेई इस्तेमाल की जा सकती है और बहुत वर्षों के बाद वे पहले वक्ता बने जिन्होंने अपना भाषण हिंदी में दिया ।भारत फीजी संबंधों को लेकर यह सम्मेलन ऐतिहासिक था और इसमें उनकी स्वयं की और उनके और सरकार के राष्ट्रपति और विभिन्न मंत्रियों की भागीदारी भारत और फीजी के घनिष्ठ होते संबंधों की गवाही दे रहे थे।

फिजी की सशक्त भागीदारी


फीजी का विश्व हिंदी सम्मेलन से संबंध बहुत पुराना है । आइए बात शुरू करते हैं 1975 से, जब पहला विश्व हिंदी सम्मेलन नागपुर में आयोजित किया गया। इस सम्मेलन में फिजी की सशक्त भागीदारी थी और फीजी से जिन दो महत्वपूर्ण व्यक्तियों ने इसमें भाग लिया वे थे, प्रसिद्ध कवि कमला प्रसाद मिश्र और सामाजिक- राजनीतिक व्यक्तित्व के धनी डॉक्टर विवेकानंद शर्मा। डॉक्टर विवेकानंद शर्मा ने इस सम्मेलन में हिंदी को संयुक्त राष्ट्रसंघ की भाषा बनाए जाने के संबंध में प्रस्ताव को भी प्रस्तुत किया था। भारत में तीसरा विश्व हिंदी सम्मेलन वर्ष 1983 में दिल्ली में आयोजित किया गया था। इस सम्मेलन में फीजी के राष्ट्रकवि कहलाए जाने वाले कमला प्रसाद मिश्र जी को सम्मानित किया गया। इस सम्मेलन में फीजी के प्रसिद्ध लेखक जोगिंदर सिंह कँवल जी ने भी भाग लिया था और सम्मेलन के साथ फिक्की सभागार आयोजित की गई गोष्ठी में भी अपना वक्तव्य दिया था । गोष्ठी के संयोजन में भारत के प्रसिद्ध लेखक डॉ महीप सिंह की महत्वपूर्ण भूमिका थी।डॉ जोगिंदर सिंह कँवल उस यात्रा को बड़ी भावुकता से याद किया करते थे।

फिजी लेखक सम्मानित -

वर्ष 1999 के ब्रिटेन में आयोजित छठे विश्व हिंदी सम्मेलन में पहली बार फीजी की तरफ से डॉ विवेकानंद शर्मा ने अगला विश्व हिंदी सम्मेलन फीजी में आयोजित करने का प्रस्ताव रखा। ऐसा लग रहा था कि राजनीतिक परिस्थितियां आयोजन के अनुकूल हैं। परंतु अगले ही वर्ष फीजी में सैनिक विद्रोह हो गया और परिस्थितियां आयोजन के अनुकूल नहीं रहीं। वर्ष 2002 में फिजी के प्रसिद्ध लेखक प्रोफेसर सुब्रमणि को सूरीनाम में आयोजित 7वें विश्व हिंदी सम्मेलन में विश्व हिंदी सम्मान से सम्मानित किया गया। वर्ष 2007 में फीजी के दूसरे प्रसिद्ध लेखक डॉ जोगिंदर सिँह कँवल को विश्व हिंदी सम्मान से सम्मानित किया गया । परंतु यह सम्मान लेने वे अमेरिका न जा सके। उन्होंने फीजी में यह सम्मान ग्रहण किया। वर्ष 2012 का विश्व हिंदी सम्मेलन आयोजित करने के लिए जिन देशों में प्रस्तावित था उनमें से एक नाम फीजी का था , इसको लेकर फीजी में भारत के तत्कालीन उच्चायुक्त श्री विनोद कुमार ने आर्य समाज के प्रमुख श्री भुवन मोहन व अन्य हिंदी सहयोगियों से बात भी की थी। परंतु यह संभव नहीं हो सका।


वर्ष 2015 मई में मुझे द्वितीय सचिव (हिंदी और संस्कृति) के रूप में फिजी के उच्चायोग में कार्य करने का मौका मिला ।हमारे सामने प्राथमिकता फीजी में नए और युवा नेतृत्व को विकसित करने की थी। आज जो हिंदी की टीम दिखाई देती है वह निरंतर कार्यक्रमोें और विश्व हिंदी सम्मेलनों से निकली है। इस कड़ी में हमने प्रयासपूर्वक फीजी से 15 लोगों को भोपाल में होने वाले विश्व हिंदी सम्मेलन में भेजा । इसमें शिक्षा विभाग और तत्कालीन शिक्षा मंत्री श्री महेन्द्र रेड्डी की महत्वपूर्ण भूमिका थी । भोपाल के विश्व हिंदी सम्मेलन की एक विशेषता यह थी कि फीजी के सभी प्रतिनिधि बुला पोशाक यानि पारंपरिक परिधान में थे। भोपाल के पश्चात प्रतिनिधियों का दिल्ली, आगरा और अयोध्या का भी भ्रमण हुआ। दिल्ली का कवि सम्मेलन उन्हें आज तक याद है। भोपाल के विश्व हिंदी सम्मेलन में 85 वर्षों से प्रकाशित हो रहे शांतिदूत साप्ताहिक पत्र की संपादक श्रीमती नीलम कुमार को सम्मानित किया गया।

वर्ष 2018 में मॉरीशस में विश्व हिंदी सम्मेलन आयोजित हुआ । इस सम्मेलन में भी शिक्षा मंत्रालय से अच्छी संख्या में प्रतिनिधियों ने भाग लिया। व्यक्तिगत प्रयासों से देश के महत्वपूर्ण लोगों ने भागीदारी की । इस सम्मेलन में भी फिजी से 15 प्रतिनिधियों ने भाग लिया। हम लोग लगातार प्रयत्न कर रहे थे कि अगला विश्व हिंदी सम्मेलन फीजी में आयोजित हो । वर्ष 2016 में श्री विश्वास सपकाल के उच्चायुक्त पद पर कार्यभार ग्रहण करने के पश्चात एक टीम के रूप में फीजी में भाषा और संस्कृति की जो लहर चली वह असाधारण थी। वर्ष 2016 में हमने अंतरराष्ट्रीय रामायण सम्मेलन का आयोजन किया गया ।इसमें प्रख्यात लेखक नरेन्द्र कोहली , श्रीमती सरोज बाला , श्री नारायण कुमार , डॉ सीतेश आलोक, जवाहर कर्नावट आदि ने रामायण सम्मेलन में प्रतिभागिता की । सम्मेलन का उद्घाटन तत्कालीन उप प्रधानमंत्री ने किया। वर्ष 2017 में फीजी में भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद के सहयोग से नमस्ते पैसेफिका फेस्टिवल का आयोजन किया गया। इस उत्सव में 6 महीने तक भारतीय सांस्कृतिक दलों ने फिजी और अन्य निकटवर्ती देशों का दौरा किया और दक्षिणी प्रशांत में भारतीय भाषाओं और संस्कृति का महाअनुष्ठान हुआ। इस दौरान भाषा और संस्कृति को लेकर अनेक कार्यक्रमों की रचना की गई । इन कार्यक्रमों में फीजी के तत्कालीन राष्ट्रपति , प्रधानमंत्री सहित सभी प्रमुख मंत्रियों ने भाग लिया ।

अब हमारे सामने सबसे बड़ी चुनौती फीजी में विश्व हिंदी सम्मेलन को लाने की थी। उस समय मेरे पास फीजी में चांसरी प्रमुख, सांस्कृतिक केंद्र के निदेशक और द्वितीय सचिव, हिंदी और संस्कृति का दायित्व था । तत्कालीन उच्चायुक्त श्री विश्वास सपकाल से चर्चा, परामर्श और मार्गदर्शन से यह तय हुआ कि मरीशस में मेरी व्यक्तिगत उपस्थिति और प्रयासों के बिना अगले विश्व हिंदी सम्मेलन के फीजी में किए जाने के प्रस्ताव को पारित करवाना कठिन है। फीजी में अगले विश्व हिंदी सम्मेलन के आयोजन के एजेंडे के साथ मैं मारीशस पहुंचा। मारिशस में फीजी के हिंदी से जुड़े प्रमुख आदिवासी श्री नेमानी को विश्व हिंदी सम्मान से सम्मानित किया गया । मॉरीशस के प्रवासी साहित्य संबंधी सत्र में डॉक्टर कमल किशोर गोयनका, नारायण कुमार जी और प्रेम जनमेजय जी की गरिमामयी उपस्थिति थी । आप लोगों के सहयोग से मुझे न केवल इस सत्र में बोलने का मौका मिला बल्कि संपूर्ण श्रोता वर्ग ने उसे बहुत पसंद किया । सम्मेलन के इस सत्र में यह प्रस्ताव पारित किया गया कि अगला विश्व हिंदी सम्मेलन फीजी में हो। इस प्रस्ताव को सलाहकार समिति द्वारा स्वीकार किया गया और इस प्रस्ताव का तत्कालीन विदेश मंत्री श्रीमती सुषमा स्वराज ने अनुमोदन किया और इसकी घोषणा समापन सत्र में प्रेम जनमेजय ने अपने वक्तव्य में की।

धीरे - धीरे फीजी में हिंदी का नया वैचारिक नेतृत्व तैयार हो गया था - शिक्षा विभाग से रमेश चंद, श्रीमती श्यामला चंद, श्रीमती रोहिणी , सुश्री श्वेता , सुश्री शेरीन , आर्य समाज से श्री भुवन मोहन, श्री कमलेश , फीजी सेवाश्रम संघ के स्वामी संयुक्तानंद जी , विश्वविद्यालयों से डॉ इंदु चंद्रा, श्रीमती सुकेश बली, श्रीमती मनीषा रामरखा , श्रीमती सुभाषिणी लता ,श्री राजेन , रचनाधर्मी श्री अखिलेश प्रसाद , लेखक श्री जैनेन प्रसाद, श्रीमती उत्तरा गुरदयाल, श्री लोकेश , श्री सुमन्त , श्री अशोक बालगोविंद , श्री रवि कुमार । लोकेश और सुमन्त तो हर कदम पर हमें सहयोग देने को तत्पर। विभिन्न प्रकार की योग्यताओं वाले लोगों के जुड़ते- जुड़ते हिंदी का नया कारवाँ तैयार हो गया ।

वर्षों तक कोरोना के कारण संशय बना रहा कि सम्मेलन कब होगा? इस बीच फीजी में फिजी फर्स्ट की सरकार का कार्यकाल भी समाप्त हो रहा था। सम्मेलन की घोषणा तो की गई परंतु साथ ही फीजी में चुनाव की घोषणा भी कर दी गई। भारत में नवंबर में जब फिजी का एक प्रतिनिधिमंडल विश्व हिंदी सम्मेलन के सिलसिले में दिल्ली आया तो मैंने उनके स्वागत में एक रात्रि भोज का आयोजन किया। विभिन्न मुद्दों पर बात होते हुए बात इस बात पर आ गई कि यदि सरकार बदल जाती है तो विश्व हिंदी सम्मेलन पर उसका प्रभाव कैसा पड़ेगा? संयोग ऐसा हुआ कि फिजी में सरकार बदल गई और प्रोफेसर विमान प्रसाद ने उप प्रधानमंत्री का पद ग्रहण किया। प्रोफेसर विमान प्रसाद हिंदी के कट्टर समर्थक हैं । इधर नए उच्चायुक्त श्री कार्तिकेयन के नेतृत्व मैं फिजी विश्व हिंदी सम्मेलन की तैयारियां जोरों पर थी । चांसरी प्रमुख , अशोक सिंह, आशुतोष द्विवेदी, शिव कुमार निगम , रोजलीन , प्रणील , सेरेमा आदि निष्ठा से लगे हुए थे। अच्छा यह हुआ कि सरकार में बदल के बाद भी विश्व हिंदी सम्मेलन की तैयारियों पर कोई नकारात्मक प्रभाव नहीं हुआ। बल्कि उसे और मजबूती ही मिली। भारत और फीजी के संबंध पिछले दशकों में निरंतर मजबूत होते चले आए हैं। वर्ष 2014 से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सम्मेलन कर पैसिफिक देशों को जोड़ने और उनसे एक घनिष्ठता विकसित करने का क्रम खड़ा कर दिया। इसी काम को तब मजबूती मिली जब भारत सरकार ने घोषणा की कि पैसिफिक का कोई भी ऐसा देश नहीं रहेगा जिसमें कभी भी भारत का कोई मंत्री स्तर का प्रतिनिधि न गया हो । यानि पैसेफिक और भारत सरकार के संबंधों में गहनता और आत्मीयता विकसित हुई ।

यह विश्व हिंदी सम्मेलन भाषा की दृष्टि से महत्वपूर्ण है उतना तो है ही परंतु फीजी और भारत के संबंधों की दृष्टि से ऐतिहासिक है। आज भारत एक महाशक्ति बन चुका है तो फीजी के लोग और फीजी की सरकार उसके नेतृत्व की ओर देख रहे हैं। यही बात फीजी के उप प्रधान मंत्री प्रोफेसर विमान प्रसाद ने अपने समापन वक्तव्य में भी कही । भारत के नेतृत्व भारत की सॉफ्ट डिप्लोमेसी यानी भाषा और संस्कृति का इन संबंधों में विशेष महत्व रहेगा और इस दृष्टि से हिंदी का एक वैश्विक भाषा के रूप में उभरना और फीजी और भारत के संबंधों में प्रगाढ़ता नई विश्व व्यवस्था के सही दिशा की ओर जाने का संकेत कर रहा है ।

Updated : 26 Feb 2023 7:23 PM GMT
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