परफॉर्मिंग आर्टिस्ट के लिए विश्वविद्यालयों में अकादमिक वातावरण : एक मनो-सामाजिक विश्लेषण

भारत में परफॉर्मिंग आर्ट्स की परंपरा अत्यंत समृद्ध रही है। संगीत, नृत्य एवं नाट्यकला न केवल सांस्कृतिक उत्तराधिकार हैं, अपितु वे समाज के बौद्धिक विकास में भी सहायक हैं। जब परफॉर्मिंग आर्टिस्ट अकादमिक संस्थानों, विशेषकर विश्वविद्यालयों में प्रोफेशनल कैटेगरी में अध्यापन हेतु नियुक्त होते हैं, तो उन्हें अकादमिक वातावरण में कई प्रकार की चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। यह शोध आलेख विश्वविद्यालयों में कार्यरत परफॉर्मिंग आर्टिस्ट्स की समस्याओं, उनके मनो-सामाजिक संघर्ष और समाधान के संभावित उपायों का विश्लेषण प्रस्तुत करता है।
डॉ. अंजना झा
भारतीय विश्वविद्यालयों में परफॉर्मिंग आर्ट्स विभागों की स्थापना का उद्देश्य पारंपरिक कलाओं को अकादमिक विमर्श में स्थान देना और भावी कलाकारों को प्रशिक्षित करना रहा है। इन विभागों में जब अनुभवी परफॉर्मिंग आर्टिस्ट प्रोफेशनल कैटेगरी में नियुक्त होते हैं, तो उनकी कलात्मक पहचान और अकादमिक व्यवस्था के मध्य कई बार अंतर्विरोध उत्पन्न होता है।
अकादमिक संस्थान प्रायः औपचारिकता, पदानुक्रम और सत्ता-संरचना से संचालित होते हैं। वहीं कलाकार का व्यक्तित्व रचनात्मक, संवेदनशील और मुक्त होता है। इस विरोधाभास के कारण अनेक कलाकार-शिक्षकों को मानसिक उत्पीड़न, उपेक्षा और विभागीय राजनीति का सामना करना पड़ता है।
उद्देश्य (Objectives)
इस शोध आलेख के प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित हैं :
1. विश्वविद्यालयों में कार्यरत परफॉर्मिंग आर्टिस्ट्स की समस्याओं का विश्लेषण करना।
2. अकादमिक वातावरण में कलाकार-शिक्षकों के मनो-सामाजिक संघर्ष को रेखांकित करना।
3. विभागीय राजनीति एवं मानसिक उत्पीड़न के कारणों को उजागर करना।
4. संभावित समाधान और नीतिगत सुझाव प्रस्तुत करना।
शोध पद्धति (Research Methodology)
यह शोध आलेख गुणात्मक (Qualitative) शोध पद्धति पर आधारित है। इसमें विभिन्न विश्वविद्यालयों में कार्यरत परफॉर्मिंग आर्टिस्ट्स के व्यक्तिगत अनुभव, साक्षात्कार और केस स्टडी को प्राथमिक स्रोत के रूप में लिया गया है। साथ ही, संबंधित साहित्य, रिपोर्ट एवं अकादमिक लेखों का द्वितीयक स्रोत के रूप में उपयोग किया गया है।
विषय वस्तु (Main Content)
1. कलाकार और अकादमिक संरचना का अंतर्विरोध
परफॉर्मिंग आर्टिस्ट का व्यक्तित्व सृजनशील और भावनात्मक होता है। विश्वविद्यालय का अकादमिक ढांचा प्रायः औपचारिक और कठोर नियमों वाला होता है। इस कारण कई बार कलाकारों को अपनी स्वतंत्र कार्यशैली अपनाने में कठिनाई होती है।
2. विभागीय राजनीति और मानसिक उत्पीड़न
अध्यापन संस्थानों में वर्षों से कार्यरत प्रोफेसरों में वरिष्ठता का अहंकार, पद-प्राप्ति की प्रतिस्पर्धा और ‘बाहरी’ समझकर उपेक्षा करना आम समस्या है। परफॉर्मिंग आर्टिस्ट्स की मंचीय लोकप्रियता और उपलब्धियाँ प्रायः ईर्ष्या का कारण बनती हैं।
3. प्रशासनिक उपेक्षा और अकादमिक अवरोध
कला विभागों में प्रशासनिक अधिकारी भी कई बार कला की प्रकृति को नहीं समझ पाते। कलाकार-शिक्षकों की कार्यप्रणाली को औपचारिक अकादमिक ढांचे में बाँधने का प्रयास होता है, जिससे नवाचार की संभावनाएँ सीमित हो जाती हैं।
4. मनो-सामाजिक प्रभाव
लगातार उपेक्षा, विभागीय राजनीति और मानसिक उत्पीड़न से कलाकार-शिक्षकों में अवसाद, निराशा और आत्म-संयम की समस्या उत्पन्न होती है। उनकी रचनात्मकता बाधित होती है, जो उनके विद्यार्थियों और विश्वविद्यालय की सांस्कृतिक गतिविधियों को प्रभावित करती है।
समाधान और सुझाव (Suggestions and Recommendations)
1. कला विभागों में प्रशासनिक और अकादमिक अधिकारियों को परफॉर्मिंग आर्ट्स की प्रकृति एवं कार्यशैली के प्रति संवेदनशील बनाना।
2. कलाकार-शिक्षकों की उपलब्धियों को अकादमिक क्रेडिट और प्रोन्नति में उचित स्थान देना।
3. कलात्मक गतिविधियों को विभागीय राजनीति से मुक्त रखना।
4. कलाकार-शिक्षकों के लिए मनोवैज्ञानिक काउंसलिंग और सहयोगी वातावरण उपलब्ध कराना।
5. राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय मंचीय प्रस्तुतियों, कार्यशालाओं एवं रिसर्च प्रोजेक्ट्स में कलाकार-शिक्षकों की सक्रिय भागीदारी को प्रोत्साहित करना।
निष्कर्ष (Conclusion)
परफॉर्मिंग आर्टिस्ट्स विश्वविद्यालयों में केवल अध्यापक नहीं, बल्कि संस्कृति, परंपरा और सौंदर्यबोध के संवाहक होते हैं। उन्हें अकादमिक संस्थानों में सम्मान और स्वीकृति मिलना अत्यंत आवश्यक है। उनके अनुभव और प्रतिभा का उपयोग विश्वविद्यालय की वैश्विक पहचान और अकादमिक गुणवत्ता सुधारने में किया जा सकता है।
विश्वविद्यालयों को चाहिए कि वे कलाकार-शिक्षकों के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाकर अकादमिक और सांस्कृतिक गतिविधियों को समन्वित करें।
संदर्भ (References)
1. शर्मा, आर. (2018). भारतीय विश्वविद्यालयों में कला शिक्षा की स्थिति. दिल्ली: साहित्य अकादमी।
2. मिश्रा, एस. (2021). अकादमिक राजनीति और शिक्षक मनोविज्ञान. लखनऊ: नयी सोच पब्लिकेशन।
3. यूजीसी रिपोर्ट (2020). परफॉर्मिंग आर्ट्स इन हायर एजुकेशन: चैलेंजेस एंड अपॉर्च्युनिटीज।
लेखक परिचय
डॉ. अंजना झा
सह प्राध्यापक एवं विभागाध्यक्ष, कथक नृत्य विभाग,
राजा मानसिंह तोमर संगीत एवं कला विश्वविद्यालय, ग्वालियर (म.प्र.)
अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त कत्थक नृत्यांगना एवं टांप ग्रेड दूरदर्शन कलाकार भारत सरकार