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डिजिटल जासूसी का मायाजाल

सोशल साइट ऐसे ठिकाने हैं, जिन्हें व्यक्ति निजी जिज्ञासापूर्ति के लिए उपयोग करता है

डिजिटल जासूसी का मायाजाल
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- प्रमोद भार्गव

देश की नीतियां ऐसी बनाई जा रही हैं कि नागरिक डिजिटल तकनीक का उपयोग करने के लिए बाध्य हों या फिर स्वेच्छा से करें। दूसरी तरफ सोशल साइट ऐसे ठिकाने हैं, जिन्हें व्यक्ति निजी जिज्ञासापूर्ति के लिए उपयोग करता है। केंद्र व राज्य सरकारों की अनेक ऐसी कल्याणकारी योजनाएं हैं, जो सीधे उपभोक्ता के बैंक खाते में धन पहुंचाती हैं। नोटबंदी और जीएसटी इसी मकसद से अमल में लाए गए थे कि सरकारी, व्यावसायिक और निजी लेन-देन में अधिकतम पारदर्शिता आए और देश भ्रष्ट व्यवस्था से मुक्त हो। इन लक्ष्यों को हम कितना हासिल कर पाए हैं, यह तो फिलहाल साफ नहीं है। लेकिन, इन प्लेटफार्मों के जरिये खाताधारकों का धन उड़ाने और जरूरतमंदों की लड़ाई लड़ने वाले कार्यकताओं की जासूसी करने का कुचक्र जरूर सामने आता रहा है। देश के रक्षा संस्थानों की हनीट्रैप के जरिये जासूसी करने के भी कई मामले सामने आ चुके हैं। हैकर्स द्वारा निरंतर की जा रही इस सेंधमारी के ताजा खुलासे हैरानी में डालने वाले हैं। इजरायली प्रौद्योगिकी से वॉट्सएप में सेंध लगाकर 1400 भारतीय सामाजिक कार्यकताओं व पत्रकारों की बातचीत के डेटा हैक कर जासूसी की गई। साथ ही देश के 13 लाख क्रेडिट-डेबिट कार्ड का डेटा लीककर हैकर्स ऑनलाइन बेच रहे हैं। इन डिजिटल लुटेरों से निपटना आसान नहीं है।

दुनियाभर में डेढ़ करोड़ उपभोक्ताओं वाले वॉट्सएप में सेंध लगाकर पत्रकारों, विपक्षी नेताओं व सामाजिक कार्यकर्ताओं की जासूसी मामले ने इन आधुनिक उपकरणों को कठघरे में खड़ा कर दिया है। फेसबुक के स्वामित्व वाली वॉट्सएप ने जानकारी दी है कि इजरायली स्पाईवेयर 'पेगासस' की मार्फत चार महाद्वीपों में करीब 1400 लोगों के मोबाइल फोन में सेंघ लगाई गई है। पेगासस स्पाईवेयर इजराइल की सर्विलांस फर्म एनएसओ ने तैयार किया है। यह निजता का बड़ा उल्लंघन है। पेगासस नाम का यह वायरस इतना ताकतवर है कि लक्षित व्यक्ति के मोबाइल में मिस्ड कॉल के जरिये प्रवेश कर जाता है। इसके बाद यह मोबाइल में मौजूद सभी डिवाइसों को सीज कर देता है। जिन हाथों के नियंत्रण में यह वायरस है, उनके मोबाइल स्क्रीन पर लक्षित व्यक्ति की सभी जानकरियां हस्तांरित होने लगती हैं। लक्षित व्यक्ति की कोई भी जानकारी गोपनीय नहीं रह जाती। इसी साल मई में वॉट्सएप वीडियो कॉलिंग फीचर के जरिये 1400 लोगों के खातों में सेंधमारी की गई है। यह वायरस इतना चालाक है कि निशाना बनाने वाले मोबाइल पर हमले के कोई निशान नहीं छोड़ता। कम से कम बैटरी, मेमोरी और डेटा की खपत करता है। यह महज एक सेल्फ-डिस्ट्रक्ट ऑप्शन (विनाशकारी विकल्प) के रूप में आता है, जिसे किसी भी समय इस्तेमाल किया जा सकता है।

हालांकि वॉट्सएप ने प्रभावित उपभोक्ताओं को संदेश देकर खबरदार कर दिया है। साथ ही वॉट्सएप ने अमेरिका के कैलिफोर्निया में स्थित संघीय न्यायालय में एनएसओ समूह के विरुद्ध मुकदमा भी दायर कर दिया है। इस एफआईआर में वॉट्सएप ने कहा है कि '1400 फोन में स्पाईवेयर पेगासस डालकर उपभोक्ताओं की महत्वपूर्ण जानकारी चुराई गई हैं।' हालांकि वॉट्सएप ने कुटिलता बरतते हुए प्रभावितों की संख्या सही नहीं बताई है। यह जानकारी तब चुराई गई जब भारत में अप्रैल-मई-2019 में लोकसभा के चुनाव चल रहे थे। इसलिए कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने यह आशंका भी जताई है कि इस स्पाईवेयर के जरिये विपक्षी नेताओं और केंद्र सरकार के खिलाफ संघर्षरत लोगों की अपराधियों की तरह जासूसी कराई गई। दरअसल इस शंका को बल इसलिए मिला, क्योंकि वॉट्सएप ने जिन लोगों को संदेश भेजकर हमले की सूचना दी, वे भीमा कोरेगांव के मामले से भी जुड़े हैं। इसीलिए सर्वोच्च न्यायालय के मशहूर वकील प्रशांत भूषण इस मामले को जनहित याचिका के जरिए न्यायालय ले जाने की तैयारी में जुट गए हैं।

इस अनहोनी जासूसी का शोर नहीं थमने पर केंद्रीय दूरसंचार मंत्री रविशंकर प्रसाद ने वॉट्सएप के भारत में मौजूद वरिष्ठ अधिकारियों को तलब भी किया, लेकिन उन्होंने क्या जासूसी हुई, इसकी कोई पुख्ता जानकारी नहीं दी। इतना जरूर कहा कि फोन कॉल्स और अन्य सूचनाएं ट्रैकिंग की गई हैं। इनमें विभिन्न क्षेत्रों से जुड़े 18 भारतीय भी शामिल हैं। वैसे आईटी कानून के तहत भारत में कार्यरत कोई भी सोशल साइट या साइबर कंपनी यदि व्यक्ति विशेष या संस्था की कोई गोपनीय जानकारी जुटाना चाहती है तो केंद्र व राज्य सरकार से लिखित अनुमति लेना आवश्यक है। ये नियम इसलिए बनाए गए हैं, जिससे व्यक्ति की निजता का हनन न हो। लेकिन सरकारें राजनीतिक लाभ के लिए विपक्षी नेताओं या अन्य किस्म के विरोधियों की जासूसी गैर कानूनी ढंग से ही कराती हैं। भारत में संचार उपकरण से जुड़ा, पहला बड़ा मामला पूर्व राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह की जासूसी से जुड़ा है। उस फोन टैपिंग के समय राजीव गांधी प्रधानमंत्री थे। इसी तरह पूर्व वित्त मंत्री (बाद में राष्ट्रपति बनाये गए थे) प्रणव मुखर्जी के सरकारी दफ्तर में भी जासूसी यंत्र 'बग' मिलने की घटना सामने आई थी। उस समय डॉ. मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री थे। साफ है, सरकार चाहे तो इस एजेंसी का उपयोग अपने प्रतिद्धियों की जासूसी के लिए कर सकती है।

इस जासूसी के साथ ही करीब 12-13 लाख डेबिट-क्रेडिट कार्ड की जानकारी लीक होने का भी खुलासा हुआ है। इनके विवरण ऑनलाइन बेचे जा रहे हैं। साइबर विशेषज्ञ पवन दुग्गल का कहना है कि यह इस साल की सबसे बड़ी हैकिंग है। कार्डों की यह बिक्री उन करोड़ों लोगों के लिए चिंता का कारण है, जो अपने पैसे का लेन-देन इलेक्ट्रोनिक कार्डों से करते हैं। नोटबंदी के बाद यह चलन देशव्यापी हो गया है। नई पीढ़ी तो डिजिटल पेमेंट को उपलब्धि मानकर अति उत्साहित है। एमेजोन व फ्ल्पिकार्ड से तो शत-प्रतिशत खरीद ऑनलाइन ही होती है। कार्डों की आसान उपलब्धता ने साइबर लुटेरों के पौ-बारह कर दिए हैं। साइबर डेटा एनालिसिस करने वाली संस्था गुप्र आईबी का दावा है कि हैकर्स की वेबसाइट 'जोकर स्टैश' पर ही 13 लाख बैंक कार्डों की दुकान सजी है। प्रति कार्ड करीब 100 डॉलर यानी 7000 रुपये में बेचा जा रहा है। इस संबंध में आशंका यह भी है कि इन हैकरों ने क्रेडिट-डेबिट कार्डों के अलावा एटीएम डेटा भी चुराए हैं। शायद इसीलिए देश में रोजाना करीब एक हजार लोगों के खातों से बार-बार पैसा निकल जाता है। खाताधारक को यह जानकारी मोबाइल पर आने वाले संदेश से मिलती है। ऐसे मामलों में धन की वापसी लगभग शून्य है।

इन रहस्यों के उजागर होने से इलेक्ट्रोनिक प्रौद्योगिकी के प्रयोग को लेकर ग्राहकों के मन में संदेह स्वाभाविक है। लिहाजा सरकार को अपनी जवाबदेही स्पष्ट करने की जरूरत है। क्योंकि, सरकार ने लोक-कल्याणकारी योजनाओं को तो आधार से जोड़ ही दिया है, अब अचल संपत्ति को भी जोड़ने जा रही है। इस जासूसी मामले में सरकार व सेना के लोग भी पीड़ितों के रूप में सामने आए हैं। इससे इस आशंका का उठना लाजिमी है कि यह जासूसी देश की सुरक्षा के लिए भी खतरा बनती जा रही है।

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

Submitted By: Radha Raman Edited By: Radha Raman Published By: Radha Raman at Nov 3 2019 1:31PM

Updated : 4 Nov 2019 12:09 PM GMT
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