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सिन्ध नदी के तट पर स्थित धूमेश्वर महादेव मन्दिर

पूर्वकाल में इसे खड़ी बोली में धूम कहा जाता था। इस स्थान के समीप ही पठार पर स्थित है धूमेश्वर महादेव मन्दिर

सिन्ध नदी के तट पर स्थित धूमेश्वर महादेव मन्दिर
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लेखक :- डॉ. ईश्वरचन्द्र रामचन्द्र करकरे

शोधकर्ता : पं. नीलेश ईश्वरचन्द्र करकरे

सिन्ध नदी मध्य प्रदेश के सिरोंज नामक नगर के उत्तर में स्थित हिनोतिया गाँव से निकलती है । अटल सागर मड़ीखेड़ा बाँध और मोहिनी रिज़र्वायर जैसे दो बड़े बाँधों को जीवनरेखा, यह नदी बिजौर गोकंदा कल्याणपुर पवाया मदनपुरा होते हुए उत्तरपूर्व दिशा की तरफ अपनी यात्रा करती है, सिंध नदी में आगे चलकर उसकी सहायक पहूज एवं कुंवारी नामक दो नदियाँ मिलती हैं । वहाँ से कुछ ही दूरी पर आगे जा कर यमुनाजी में मिल जाती है । सिन्ध नदी अपने प्रवास में डबरा - भितरवार मार्ग के पास से हो कर गुजरती है। यह चट्टानी क्षेत्र होने के कारण नदी का पानी सँकरे मार्ग से होकर बड़ी तेजी से जलप्रपात के रूप में निचे गिरता है। इस कारण तुषार उठता है (तेजी से पानी चट्टान पर गिरने से उत्पन्न जलकण) , पूर्वकाल में इसे खड़ी बोली में धूम कहा जाता था। इस स्थान के समीप ही पठार पर स्थित है धूमेश्वर महादेव मन्दिर । (वहीं महर्षि धौम्य नामक काल्पनिक पात्र की भी जनश्रुतियाँ इस मन्दिर के नामकरण से जुडी हुई हैं)

कहा जाता है कि, धूमेश्वर महादेव मन्दिर पहले कालप्रियनाथ के नाम से नागवंशी शासकों द्वारा बनवाया गया था । तेरहवीं शताब्दी के उत्तरार्ध में दुष्ट इस्लामी आक्रान्ता , दिल्ली सल्तनत के नायब-ए-मामलिकत बहाउद्दीन गयासुद्दीन बलबन ने ग्वालियर एवं नरवर पर किये गए आक्रमण के दौरान इसे ध्वस्त कर दिया। ओरछा नरेश वीरसिंह जूदेव ने उसके शासनकाल ( सन 1605 से 1627 ) में धूमेश्वर महादेव मंदिर का पुनर्निर्माण कराया परन्तु सत्रहवीं शती के अन्तिम दशक में औरंग़ज़ेब के आक्रमण में यह मन्दिर इस्लामी विध्वंस्ता का शिकार हुआ । कुछ वर्षों तक यह भग्नावस्था में पड़ा रहा परन्तु अट्ठारहवीं शती में मराठा सैन्याधिपति महायोद्धा श्रीनाथ माधवराव (उपाख्य महादजी शिन्दे) महाराज के प्रखर नेत्तृत्व में, बुझे हुए हिन्दू समाज में हिन्दुत्त्व की ज्ज्वाला पुनः प्रदीप्त हुई, हिन्दुत्त्व का पुनर्रुद्धार हुआ और हिन्दूमानस में नवीन जनचेतना प्रस्फुटित हुई । तदोपरान्त इस खण्डित धूमेश्वर महादेव मन्दिर का पुनर्निर्माण हुआ ।

उन्नीसवीं शताब्दी के उत्तरार्ध में ग्वालियर नृप श्रीमन्त जयाजीराव सिन्धिया ने इस मन्दिर को भव्यरूप प्रदान किया । तत्पश्चात श्रीमन्त माधौ महाराज और श्रीमन्त जीवाजीराव सिन्धिया के राज्यकाल में ग्वालियर दरबार से इस मन्दिर को यथोचित संरक्षण प्राप्त हुआ । ग्वालियर रियासत के अन्तिम महाराज जीवाजीराव सिन्धिया ने सन 1936 में शासनसूत्र सम्हालते ही धूमेश्वर महादेव मन्दिर का जीर्णोद्धार कराया।

यह मन्दिर आसपास के क्षेत्रों में सरलता से उपलब्ध पत्थरों से तात्कालिक अन्तर्ग्रथन तकनीक द्वारा निर्मित किया गया है। साथ ही बीसवीं शताब्दी में मन्दिर निर्माकन हेतु चूना और बजरी का उपयोग भी किया गया है । भूमि से इसकी ऊँचाई लगभग 35 फ़ीट है , चौड़ाई लगभग 20 फ़ीट और लम्बाई लगभग 50 फीट है । इस मन्दिर का उल्लेख संस्कृत के महान विद्वान् भवभूति ने भी किया है , बाद के कल में श्रीमन्त माधौमहराज सिन्धिया के शासनकाल में सन 1901 में इसकी सेंसस रिपोर्ट बनवाई गई थी, तब यहाँ की जनसंख्या मात्र 16 लोगों की थी जिसमें 11 पुरुष और 5 महिलाएँ थी। मन्दिर का उल्लेख ग्वालियर रियासत के 1908 में प्रकाशित हुए राजपत्र (गज़ेट ) में भी है ।

यह एक सुंदर और विशाल मंदिर तो है ही साथ में नदी का किनारा होने तथा प्रदूषण मुक्त होने के कारण , परिसर रमणीय बन जाता है । यह स्थान ग्वालियर से लगभग 75 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है जहाँ डबरा के रास्ते सालबाई के आगे, भितरवार को जाने वाले रास्ते से होकर पहुँचा जा सकता है । परिजनों व मित्रों के साथ यहाँ पर सहल / गोट हेतु जाया जा सकता है । सुरक्षा कारणों से सूर्यास्त से पूर्व अपने गन्तव्य को रवानगी उचित होगी ।

Updated : 12 July 2018 2:31 PM GMT
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