औषधीय प्रजातियों के संरक्षण से बदलेगी आदिवासियों की तकदीर
मोहन दत्त शर्मा
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- देवारण्य योजना में होगी औषधिय एवं सुगंधित पौधों की खेती
- अनुसूचित जनजाति बाहुल्य क्षेत्रों में हितग्राहियों का किया जाएगा चयन
श्योपुर ब्यूरो। आदिवासी विकासखण्ड कराहल के जंगलों में प्रचुर मात्रा में पाई जाने वाली औषधीय जड़ी बूटियों की प्रजाति के संरक्षण और संवर्धन से आदिवासियों की तकदीर बदलने की तैयारी सरकार द्वारा देवारण्य योजना के माध्यम से करने का प्रयास किया जाएगा। देवारण्य योजना के माध्यम से जंगल में तेजी से विलुप्त हो रही औषधीय पौधों की 125 प्रजातियों के संरक्षण, संवर्धन के प्रति आदिवासी जागरूक हो सकेंगे। साथ ही कराहल विकासखण्ड की पहचान एक अति पिछड़े क्षेत्र से बदलकर आर्थिक व सामाजिक रूप से विकसित क्षेत्र की छवि के रूप में उभरेगी।
मालूम हो कि, कराहल के जंगलों में विभिन्न प्रजातियों की बहुमूल्य औषधियां प्रचुर मात्रा में पाई जाती है। लेकिन अंधाधुंध दोहन के चलते 125 प्रजातियों पर विलुप्त होने का खतरा मंडरा रहा है। पूर्व में प्रशासन द्वारा औषधीय पौधों के संरक्षण और संरक्षण के काम से आदिवासियों को सीधे तौर पर जोड़ने की योजना प्रस्तावित की थी, लेकिन क्रियान्वयन के अभाव में यह अमल में नहीं आ सकी। सरकार द्वारा पुनः औषधीय और सुंगधित पौधों की खेती के लिये देवारण्य योजना शुरू की है। योजना से जुड़कर आदिवासी न सिर्फ जंगल में उपलब्ध औषधीय पौधों का संरक्षण करेंगे, बल्कि निजी भूमि एवं एनआरएलएम के माध्यम से शासकीय भूमि पर विभिन्न प्रजातियों के पेड़-पौधे लगाकर औषधीय एवं सुगंधित पौधों की खेती कर सकेंगे।
निजी और शासकीय भूमि पर हो सकेगी खेती
सीईओ जिला पंचायत राजेश शुक्ल ने देवारण्य योजना पर प्रस्तुतीकरण देते हुए बताया कि इस योजना के अतंर्गत मनरेगा एवं अन्य कल्याणकारी योजनाओं के कन्वर्जेन्स से औषधिय तथा सुंगध वाले पौधों की खेती की जायेगी। इस योजना के तहत अनुसूचित जनजाति बाहुल्य क्षेत्रों में हितग्राहियों का चयन किया जायेगा। निजी भूमि होने पर कम से कम 10 किसानों को मिलाकर तथा शासकीय भूमि पर एनआरएलएम के स्वसहायता समूहों के माध्यम से खेती के लिए कार्य योजना तैयार की जायेगी। इसके अंतर्गत मनरेगा के प्रावधानों का पालन किया जायेगा। जिसमें हितग्राही के पास जॉबकार्ड होने के साथ ही लद्यु सीमांत कृषक होना चाहिए। उद्यानिकी विभाग एवं कृषि विभाग के माध्यम से हितग्राहियों का चयन किया जायेगा तथा औषधिय व सुंगधित पौधों एवं फसलों की खेती के लिए तकनीकी सहयोग लिया जायेगा।
इन औषधिय प्रजातियों का हो सकेगी खेती
देवारण्य योजना से जुड़कर कराहल क्षेत्र के आदिवासी परिवार वन भूमि और निजी कृषि भूमि में अचार, सतावर, सफेद मूसली, बेलपत्र, चितावर, चांदीबाजार, आंवला, महुवा, बेहड़ा, सेमरमूसली, नागरमोथा, काकोल मिर्च, कटेरी, शंखपुष्पी, ब्राह्मी, भृंगराज, कालमेघ, पुर्ननवा, अडूसा, मूंगा, सुरजना भूमि आंवला सहित अन्य कई औषधीय प्रजातियों की खेती कर सकेंगे।
कुपोषण मिटाने में लाभदायक हो सकेगी औषधिय खेती
आदिवासियों को औषधीय खेती करने के साथ-साथ इनके सेवन के प्रति भी जागरूक किया जाएगा। जड़ी बूटियां औषधीय गुणों के साथ साथ पोषकतत्वों से भरपूर है। इन्हें दैनिक भोजन में शामिल करने के लिए आदिवासियों को सचेत किया जाएगा। जिससे कुपोषण दूर करने में भी मदद मिलेगी।
इस तरह मिलेगा योजना का लाभ
देवारण्य योजना के तहत बहुतायत में आदिवासी परिवारों को योजना से जोड़कर औषधिय एव सुगंधित पौधों की खेती कराई जाएगी, औषधि तैयार होने के बाद ग्रेडिंग और पैकेजिंग कार्य करने के बाद मल्टीनेशन कंपनियों के माध्यम से औषधि बाजार में विक्रय किया जाएगा, जिसका सीधा लाभ आदिवासी परिवारों को मिल सकेगा।
विकास के खुलेंगे द्वार
आदिवासी परिवारों के देवारण्य योजना से जुड़ने के बाद क्षेत्र के विकास की संभावनाओं के नए द्वार खुलेंगे। औषधिय कारोबार से जुड़कर आदिवासी परिवारों के आर्थिक व सामाजिक स्तर में सुधार आएगा।
शिवम वर्मा, जिलाधीश, श्योपुर
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