राहुल से निराश कांग्रेसियों को अब प्रियंका से आस

राहुल से निराश कांग्रेसियों को अब प्रियंका से आस
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कांग्रेस की अंदरूनी राजनीति की कड़ियों को जोड़ें तो साफ़ नजर आने लगा है कि राहुल गांधी और प्रियंका गांधी के खेमे खुलकर आमने-सामने आने को आतुर हैं। कांग्रेस की हार-दर-हार से परेशान नेताओं का विश्वास राहुल से उठने लगा है। महाराष्ट्र, हरियाणा, दिल्ली और बिहार में लगातार चुनावी हार के बाद कांग्रेस के भीतर एक जानी-पहचानी फुसफुसाहट सुनाई दे रही थी। कांग्रेस के कुछ नेताओं के बयानों के बाद इस फुसफुसाहट को आवाज भी मिल गई है।

कांग्रेस के भीतर प्रियंका के लिए राष्ट्रीय नेतृत्व में निर्णायक भूमिका की बात सामने आई है। कांग्रेस के तीन नेताओं ने खुले तौर पर प्रियंका के लिए एक बड़ी केंद्रीय भूमिका की मांग कर दी है। कांग्रेस का एक खेमा राहुल को भविष्य के प्रधानमंत्री के रूप में प्रोजेक्ट करने में लगा है, तो प्रियंका के समर्थकों का मानना है कि राहुल कभी प्रधानमंत्री नहीं बन सकते। इसलिए 2029 में होने वाले लोकसभा चुनाव में प्रियंका को कांग्रेस की ओर से प्रधानमंत्री चेहरा बनाया जाना चाहिए।

ऐसे में सवाल है कि क्या कांग्रेस राहुल बनाम प्रियंका की स्थिति की ओर बढ़ रही है। इन सुर्खियों को खुद प्रियंका ने भी प्रशांत किशोर से मुलाकात कर हवा दी है, जो बिहार विधानसभा चुनाव के दौरान राहुल के खिलाफ लगातार बयानबाजी करते रहे हैं। वह राहुल गांधी के सबसे अहम मुद्दे ‘वोट चोरी’ की भी आलोचना कर चुके हैं।

इसी बीच उत्तर प्रदेश के सहारनपुर से कांग्रेस सांसद इमरान मसूद ने हाल ही में कहा कि बांग्लादेश में पिछली बार जब हिंदुओं पर अत्याचार हुआ था, तो उसके विरुद्ध सबसे ज्यादा बोलने का काम प्रियंका गांधी ने ही किया था। उन्होंने कहा, “प्रियंका को प्रधानमंत्री बनाइए, फिर देखिए वे इंदिरा गांधी की तरह कैसे जवाब देती हैं। इंदिरा गांधी ने जैसे पाकिस्तान से अलग कर बांग्लादेश को स्वतंत्र देश बनाया था, उसी तरह प्रियंका ऐसा इलाज करेंगी कि बांग्लादेश कभी भारत-विरोधी अच्छा नहीं बन पाएगा।”

इस मुहिम में प्रियंका के पति रॉबर्ट वाड्रा भी जुटे हुए हैं। वाड्रा ने कहा कि प्रियंका की पूरे देश में डिमांड है। देश की यह मांग है कि अब प्रियंका आगे आएं और पार्टी का नेतृत्व संभालें।

इससे पहले ओडिशा से कांग्रेस के पूर्व विधायक मोहम्मद मुकीम ने सोनिया गांधी को पत्र लिखकर राहुल की जगह प्रियंका सहित युवा नेताओं को महत्व देने की बात कही थी। हालांकि इसके बाद कांग्रेस ने मुकीम को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया।

दरअसल प्रियंका के लिए आवाजें तब और मजबूत हो गईं जब उन्होंने संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान अपने भाषण से सबका ध्यान खींचा। प्रियंका को एक आसान, सुलभ और सुनने वाली नेता के रूप में देखा जा रहा है, जो कठिन मुद्दों पर भी हल्की भाषा में सटीक बात कहने की क्षमता रखती हैं। प्रियंका खेमे के नेता संसद के शीतकालीन सत्र में उनके भाषण को राहुल से कहीं ज्यादा प्रभावी मानते हैं।

शीतकालीन सत्र में भाई-बहन दोनों ने सदन में अपनी बात रखी, लेकिन प्रियंका के भाषण ने खूब सुर्खियां बटोरीं, जबकि राहुल ने वही पुरानी घिसी-पिटी बातें दोहराईं। कांग्रेस के भीतर बढ़ती इस बहस और हाल के बयानों ने साफ कर दिया है कि राहुल की तुलना में प्रियंका का कद तेजी से उभरा है।

कांग्रेस की ओर से प्रधानमंत्री चेहरे के रूप में प्रियंका को देखने वाले पार्टी नेताओं की संख्या तेजी से बढ़ी है। यह उभार किसी करिश्मे की वजह से नहीं, बल्कि संगठन, संसद और आमजन में राहुल गांधी के लगातार फेल होने से बदलते समीकरणों का परिणाम है।

कांग्रेस लंबे समय से राहुल को विचारधारा और नेतृत्व का केंद्रीय चेहरा बनाकर चल रही है, लेकिन राहुल ने जब से पहला चुनाव लड़ा है और कांग्रेस का नेतृत्व संभाला है, तब से कांग्रेस लोकसभा और विधानसभा के लगभग 96 चुनाव हार चुकी है। चुनावों में लगातार पराजय, पार्टी में बढ़ती निराशा और आंतरिक असंतोष ने राहुल के नेतृत्व के प्रति भरोसे में खतरनाक दरार डाल दी है। यह दरार हर चुनावी हार के बाद और चौड़ी होती जा रही है।

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