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मुस्लिम तुष्टीकरण के फेर में फंसती कांग्रेस

पिछले हफ्ते उर्दू अखबार इंकलाब ने एक रिपोर्ट प्रकाशित की थी, जिसमें स्पष्ट रुप से बताया गया था कि राहुल गांधी ने कांग्रेस को मुसलमानों की पार्टी बताया था।

मुस्लिम तुष्टीकरण के फेर में फंसती कांग्रेस
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- अनुराग साहू

कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी द्वारा मुस्लिम बुद्धिजीवियों के बीच कथित तौर पर अपनी पार्टी को मुस्लिमों की पार्टी बताने को लेकर शुरू हुआ विवाद लगातार बढ़ता ही जा रहा है। कांग्रेस ने हालांकि उर्दू अखबार इंकलाब की उस रिपोर्ट को सिरे से खारिज कर दिया है, जिसमें दावा किया गया था कि राहुल गांधी ने कांग्रेस को मुस्लिमों की पार्टी बताया है। लेकिन अब उसी अखबार को दिये साक्षात्कार में कांग्रेस के अल्पसंख्यक मोर्चे के प्रमुख नदीम जावेद ने कहा है कि राहुल गांधी की टिप्पणी में कुछ भी गलत नहीं है, अखबार में जो छपा है, वो पूरी तरह से सच है।

पिछले हफ्ते उर्दू अखबार इंकलाब ने एक रिपोर्ट प्रकाशित की थी, जिसमें स्पष्ट रुप से बताया गया था कि राहुल गांधी ने कांग्रेस को मुसलमानों की पार्टी बताया था। अब कांग्रेस अल्पसंख्यक मोर्चे के प्रमुख नावेद जावेद ने अपने साक्षात्कार में कहा है कि राहुल गांधी ने मुसलमानों को लेकर न तो कोई गलत बात कही है और न ही अखबार में कोई गलत खबर छपी है। वहीं इस विवाद को बढ़ता देख कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने ट्वीट करके यह बताने की कोशिश की है कि 'मैं पंक्ति में सबसे आखिर में खड़े शख्स के साथ हूं...शोषित, हाशिये पर खड़े और सताये गये लोगों के साथ हूं। उनका धर्म, उनकी जाति, आस्था मेरे लिए खास मायने नहीं रखती। जिन्हें भी दर्द है, पीड़ा है, मैं उन्हें गले लगाना चाहता हूं। मैं नफरत और भय को मिटाना चाहता हूं। मुझे सभी जीवों से प्यार है। मैं कांग्रेस हूं।' दार्शनिक अंदाज में की गयी इस ट्वीट को माना जा रहा है कि ये मुस्लिम पार्टी वाले विवाद पर उनका जवाब है।

अब भले ही कांग्रेस राहुल गांधी की मुस्लिम पार्टी वाली बात से पीछे हट रही है, लेकिन इसमें कोई शक नहीं है कि राहुल गांधी ने ये बयान काफी सोच समझ कर दिया था। गुजरात चुनाव के दौरान कांग्रेस के सामने अपनी छवि बदलने की मजबूरी थी। हिंदूवादी मतों को बीजेपी के पक्ष में जाने से रोकने के लिए राहुल गांधी को मजबूरन न केवल चुनाव प्रचार के दौरान मंदिर-मंदिर और मठों का का दौरा करना पड़ा था, बल्कि गले में रुद्राक्ष की माला पहनकर भी तस्वीरें जारी करनी पड़ी थी। कांग्रेस प्रवक्ता ने तो बाकायदा उन्हें जनेऊधारी ब्राह्मण बताया था और जनेऊ पहने उनकी तस्वीर भी जारी की थी। लेकिन राहुल गांधी की इस छवि की वजह से गुजरात के बाद हुए कर्नाटक विधानसभा चुनाव में मुस्लिम वोटर कांग्रेस से बिदक गये। इसका खमियाजा चुनाव परिणाम में कांग्रेस को साफ साफ नजर आया। यही कारण है कि अब मुस्लिम वोटों को फिर से अपने पक्ष में गोलबंद करने के लिए कांग्रेस कोशिश कर रही है और इसी रणनीति के तहत राहुल गांधी ने मुस्लिम बुद्धिजीवियों के बीच कांग्रेस को मुसलमानों की पार्टी बताया था।

हालांकि जब विवाद बढ़ा और कांग्रेस को इस बात का अहसास हुआ कि इस बयान की वजह से हिंदू वोट उससे पूरी तरह से बिदक सकता है और छत्तीसगढ़, राजस्थान तथा मध्यप्रदेश के विधानसभा चुनाव में पार्टी को नुकसान उठाना पड़ सकता है। इतना ही नहीं आगे चलकर लोकसभा चुनाव के समय थी पार्टी को नुकसान हो सकता है, तो इस विवाद को थामने की कोशिश की जाने लगी। कांग्रेस प्रवक्ता ने सबसे पहले इस बयान को खारिज किया और अब राहुल गांधी भी अपने ट्वीट से ऐसी ही कोशिश कर रहे हैं।

लेकिन देखा जाए तो कांग्रेस पूरा चरित्र शुरू से ही सांप्रदायिक रहा है। मुस्लिमों को रिझाने में ये पार्टी हमेशा ही लगी रही है। इसी रणनीति के तहत कुछ दिन पहले ही शशि थरूर ने बयान दिया था कि अगर 2019 में बीजेपी दोबारा जीती तो भारत हिंदू पाकिस्तान बन जायेगा। पार्टी का इतिहास भी कुछ ऐसा ही है। दिसंबर 2005 को राष्ट्रीय विकास परिषद की बैठक में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने खुलेआम ऐलान किया था कि देश के संसाधनों पर मुसलमानों का पहला हक है। कांग्रेस के शासनकाल में ही 2005 में और 2011 में सांप्रदायिक और लक्षित हिंसा निवारण कानून बनाने की कोशिश की गयी थी। इस कानून में किसी भी सांप्रदायिक हिंसा होने की स्थिति में आरोपी हिन्दू की सारी संपत्ति जब्त कर उसे जेल भेजने और जब तक वह खुद को निर्दोष साबित न कर ले तबतक उसकी जमानत भी नहीं होने देने का प्रावधान था। ये कानून सिर्फ हिंदुओं पर ही लागू होने वाला था। इसके अंतर्गत मुसलमानों के खिलाफ कोई कार्रवाई का प्रावधान नहीं था। हालांकि तीव्र विरोध की वजह से यूपीए की सरकार न तो 2005 में और न ही 2011 में इसे पारित करा सकी। इसी तरह कांग्रेस की ही सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा देकर हिन्दुओं के आराध्य भगवान राम एक काल्पनिक पात्र बताया था। कांग्रेस अतीत में सुप्रीम कोर्ट द्वारा शाहबानो केस में मुस्लिम महिलाओं के पक्ष में आये फैसले को मुस्लिम मौलानाओं के दबाव में कानून बनाकर बदलने का काम भी कर चुकी है। यूपीए शासनकाल में मंत्री रहे सुशील कुमार शिंदे ने भी राज्यों को पत्र लिखकर आतंकवाद के आरोप में पकड़े गए मुस्लिम युवाओं को रिहा करने की वकालत की थी।

इसलिए अगर आज बीजेपी कह रही है कि कांग्रेस की विचारधारा शुरू से ही मुस्लिमपरस्त रही है, तो इसे पूरी तरह गलत भी नहीं कहा जा सकता है। बीजेपी नेता प्रकाश जावड़ेकर ने तो बाकायदा एक बयान जारी करके कांग्रेस एक घोर सांप्रदायिक पार्टी बताया है। बीजेपी का कहना है कि कांग्रेस की इसी सोच ने इस देश का विभाजन किया था और इसी कारण देश में कई संकट पैदा हुए। बीजेपी के आरोप को पूरी तरह से नकारा भी नहीं जा सकता। कांग्रेस का इतिहास खुद इस बात का गवाह है कि उसने अपनी पूरी राजनीति तुष्टीकरण को आधार बनाकर ही की है। अल्पसंख्यकों में भी उसने सबसे अधिक मुस्लिम वोटों पर अपना ध्यान केंद्रित किया है, क्योंकि मुस्लिम वोट देश के कई हिस्सों में निर्णायक साबित होते हैं। बहरहाल, कांग्रेस को मुसलमानों की पार्टी कहने वाला विवाद अभी भी खत्म होता हुआ नजर नहीं आता है। बीजेपी खुद भी इस विवाद को लंबा खींचने की कोशिश में है ताकि इसके बल पर चुनावों में हिंदू वोटों का ध्रुवीकरण किया जा सके।

Updated : 18 July 2018 4:05 PM GMT
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Swadesh Digital

स्वदेश वेब डेस्क www.swadeshnews.in


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