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भिण्ड-दतिया संसदीय क्षेत्र में प्रत्याशी बदलने वाले राजनैतिक दलों को मिलती रही है सफलता

भिण्ड-दतिया संसदीय क्षेत्र में प्रत्याशी बदलने वाले राजनैतिक दलों को मिलती रही है सफलता
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भिण्ड/अनिल शर्मा। लोकसभा चुनाव के इतिहास के पन्नों में भिण्ड-दतिया संसदीय क्षेत्र का अपना अलग स्थान है। इस संसदीय क्षेत्र से भाजपा की आधार स्तंभ कही जाने वालीं राजमाता विजयाराज सिंधिया सांसद रह चुकी हैं, तो उनकी बेटी बसुंधरा राजे को यहां के मतदाताओं में पराजित भी किया है। यही नहीं लगातार दूसरी बार किसी भी दल के उम्मीदवार को यहां की जनता ने चुना नहीं है। यदि भाजपा के उम्मीदवार रहे डॉ. रामलखन सिंह को अपवाद मान लें तो किसी भी दल का नेता दोबारा सांसद नहीं चुना गया है।

1962 में भिण्ड-दतिया पृथक संसदीय क्षेत्र बनने के बाद हुए चुनाव में उन्हीं राजनैतिक दलों को जीत की कामियाबी मिली, जिनके द्वारा उम्मीदवार को पुन: मैदान में नहीं उतारा गया। जिस किसी दल ने इस मिथक को तोडऩे का प्रयास किया, उसे करारी शिकस्त भी मिली है। जिसके उदाहरण 1977 में सर्वाधिक मत एक लाख 60 हजार 894 मतों के अंतर से जीतने वाले रघुवीर सिंह मछण्ड को दोवारा मैदान में उतरने पर बुरी हार मिली थी। इस करारी हार के बाद रघुवीर सिंह मछण्ड राजनीति में पुन: पनप नहीं पाए। 1984 में चुने गए कांग्रेस सांसद किशन सिंह जूदेव 1989 में बुरी तरह पराजित होकर तीसरे स्थान पर चले गए और बसपा के रामबिहारी भाजपा के निकटतम प्रतिद्वंदी बने। 1991 में कांग्रेस ने प्रत्याशी बदला तो उसे जीत तो नहीं मिली, लेकिन कांग्रेस के बोटों मे भारी इजाफा हुआ, वह बसपा को पीछे धकेलकर मुख्य मुकबाले में आ गई।

यदि अब तक के चुनाव परिणामों पर नजर डालें तो 1967 में जनसंघ का खाता खुला था, जनसंघ के सांसद के रूप में यशवंत कुशवाह पहलीवार चुने गए, जो कांग्रेस के उम्मीदवार बीरेन्द्र सिंह को दुगुने मतों से हराकर विजयी हुए थे। जनसंघ को एक लाख 37 हजार 586 मत मिले थे, जबकि उनके निकटतम प्रतिद्वंदी को मात्र 66 हजार 377 बोट हांसिल हुए थे, जनसंघ प्रत्याशी को 71 हजार 209 की लीड मिली थी फिर भी तब के शीर्ष नेतृत्व ने जोखिम न उठाते हुए 1971 में प्रत्याशी बदल दिया, जिसका पूरा फायदा जनसंघ को बोटों के इजाफा के रूप में मिला। यहां से राजमाता विजयराजे सिंधिया दो लाख 13 हजार 771 मतों से चुनाव जीतीं। 1977 में राजमाता जैसी मजबूत प्रत्याशी को भी पुन: चुनाव मैदान में नहीं उतारा गया। और सम्मिलित उम्मीदवार लोकदल के रघुवीर सिंह मछण्ड दो लाख 41 हजार 267 मत पाकर विजयी हुए। 1980 में पुन: संयुक्त दल के उम्मीदवार के रूप मे रघुवीर सिंह मछण्ड को चुनाव मैदान में उतारा गया तो नतीजा खिलाफ चला गया, जिसका फायदा कांग्रेस को मिला, यहां से पं. कालीचरण शर्मा चुनाव जीते, जो लोगों की नजर में जीत की परिकल्पना से बाहर थे। उनके बारे में कहा जाता था कि वे पंचायत चुनाव में अपने उम्मीदवार को जिताने में विफल रहे थे। लेकिन लोकसभा में 18 वर्ष बाद कांग्रेस का खाता खोलने में सफल हो गए और कांग्रेस ने उम्मीदवार बदलने के मूल मंत्र को समझा और 1984 में निवर्तमान सांसद का टिकिट काटकर दतिया के किशन सिंह को उम्मीदवार बनाया तो कांग्रेस को दूसरी बार भी सफलता मिल गई, लेकिन 1989 पुन: किशन सिंह जूदेव को उम्मीदवार बनाने की गलती का खामियाजा भुगतना पड़ा। कांग्रेस 1984 के बाद जीत की सफलता से अब तक दूर है।

आयात करने की जुगत में लगी कांग्रेस

कांग्रेस पार्टी लंबे समय तक सत्तासीन रहने के बावजूद लोकसभा के लिए मजबूत उम्मीदवार तैयार नहीं कर पाई है। स्वतंत्रता के बाद से ही बाहर से उम्मीदवार आयात करती रही है, लेकिन 1980 व 1884 अपवाद है जिसमें उसे सफलता भी मिली, कमजोर माने जाने वाले 1980 में कालीचरन शर्मा ने धुरंधर नेता रमाशंकर सिंह को व 1984 में किशन सिंह जूदेव ने राजमाता की बेटी बसुंधरा राजे को धूल चटा दी थी। 1999 व 2004 में स्थानीय उम्मीदवार सत्यदेव कटारे को मैदान में उतारा तो कांग्रेस जीती तो नहीं, लेकिन कांग्रेस मुकबाले में आ गई। 2019 के चुनाव में कांग्रेस अब तक की हार का बदला लेने की पूरी तयारी में है, वह विधानसभा की जीत को लोकसभा में दोहराने की पूरी जुगत में है। लेकिन शायद उसे अपने कार्यकर्ताओं में जीत का कोई नया चेहरा नजर नहीं आ रहा है, सिंधिया के प्रभाव वाले क्षेत्र में दिग्विजय सिंह गुट अच्छा खासा दखल रखता है, यदि दोनों नेताओं की पसंद का चेहरा नहीं हुआ तो कांग्रेस के लिए सफलता की डगर आसान नहीं है। इसलिए कांग्रेस उम्मीदवार को आयात करने पर विचार कर रही है, वह बसपा को कमजोर करने की दृष्टि से फूलसिंह बरैया को लाने की फिराक में है। चर्चा तो यह है वे कांग्रेस के उम्मीदवार भी हो सकते हैं।

चार बार सांसद का डॉ. रामलखन ने बनाया रिकार्ड

फोटो केप्सन 19 बी.एच.डी.5

भिण्ड दतिया संसदीय क्षेत्र से डॉ. रामलखन को छोड़ अब तक कोई भी दोबारा सांसद नहीं चुना गया है। जबकि डॉ. रामलखन 1996 से 2004 तक लगातार भाजपा के सांसद चुने गए। जो ऐसा रिकार्ड बन गया है कि जिसे अब कोई तोड़ नहीं सकता।

इस लोकसभा क्षेत्र में केवल डॉ. रामलखन को चार बार सांसद बनने का अवसर मिला है उसमें पूर्व प्रधानमंत्री स्व. पं. अटल विहारी बाजपई का भी योगदान माना जा सकता है। एनडीए द्वारा पं. अटल बिहारी बाजपेयी को प्रधानमंत्री प्रोजेक्ट का पूरा फायदा डॉ. रामलखन को मिला, अटल जी को प्रधानमंत्री बनाने की लालसा रखने वाले ब्राह्मण मतदाताओं का भरपूर समर्थन मिला, यहां के मतदाताओं ने कांग्रेस के ब्राह्मण उम्मीदवार पं. उदयन शर्मा, पं. विश्वनाथ शर्मा, पं. बालेन्दु शुक्ल को यहां के ब्राह्मण मतदाताओं ने नकार दिया। जिसके फलस्वरूप कांग्रेस मुकाबले से बाहर हुई और बसपा निकटतम प्रतिद्वंदी बन गई।

भिण्ड-दतिया संसदीय क्षेत्र के 1957 से अब तक के चुनाव परिणाम

चुनाव वर्ष दल का नाम विजयी प्रत्याशी दल का नाम निकटतम प्रतिद्वंदी जीत का अंतर

1962 (अजा) कांग्रेस सूरज प्रसाद प्रसोपा आत्मदास 2792

1967 (सामान्य) जनसंघ यशवंत सिंह कुशवाह कांग्रेस वीरेन्द्र सिंह 71209

1971 जनसंघ विजयाराजे सिंधिया कांग्रेस नरसिंह राव दीक्षित 91238

1977 लोकदल रघुवीर सिंह मछड कांग्रेस राघवराम चौधरी 160894

1980 कांग्रेस कालीचरन शर्मा जनता दल (एस) रमाशंकर सिंह 10036

1984 कांग्रेस कृष्ण सिंह जूदेव भाजपा बसुंधरा राजे सिंधया 7403

1989 भाजपा नरसिंह राव दीक्षित कांग्रेस कूष्ण सिंह जूदेव 33530

1991 भाजपा योगानंद सरस्वती कांग्रेस उदयन शर्मा 38834

1996 भाजपा डॉ. रामलखन सिंह बसपा केदार काछी 15732

1998 भाजपा डॉ. रामलखन सिंह बसपा केदार काछी 68022

1999 भाजपा डॉ. रामलखन सिंह कांग्रेस सत्यदेव कटारे 53574

2004 भाजपा डॉ. रामलखन सिंह कांग्रेस सत्यदेव कटारे 6946

2009 भाजपा अशोक अर्गल कांग्रेस डॉ. भागीरथ प्रसाद 18886

2014 भाजपा डॉ. भागीरथ प्रसाद कांग्रेस इमरती देवी 159961

Updated : 21 March 2019 6:41 AM GMT
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