Home > स्वदेश विशेष > 84 के दंगे, कमलनाथ और भारत जोड़ो यात्रा!

84 के दंगे, कमलनाथ और भारत जोड़ो यात्रा!

सार्वजनिक रूप से भले ही कांग्रेसी नेता स्वयं को सिख विरोधी ना मानते हों, लेकिन उनकी अंतरात्मा यह जानती है कि 84 के दंगों में कांग्रेस जनों हाथों भारी पाप हुआ

84 के दंगे, कमलनाथ और भारत जोड़ो यात्रा!
X

  • डॉ राघवेंद्र शर्मा

19 84 के सिख नरसंहार में कांग्रेस का हाथ था। देशभर में जहां-जहां सिखों की हत्याएं हुईं, उन हत्यारों की भीड़ का नेतृत्व कांग्रेसी ही कर रहे थे। सिखों की हत्यारी एक ऐसी ही भीड़ का नेतृत्व जिस व्यक्ति ने किया, उसका सिख समाज द्वारा सम्मानित किया जाना मेरे हृदय को विदीर्ण कर गया। मैं अपने ही बंधु बांधवों द्वारा किए गए इस कृत्य से बेहद दुखी हूं और हो सकता है अब कभी इंदौर आने का साहस न जुटा पाऊं। श्री गुरु नानक देव के प्रकाश पर्व पर जैसे ही यह ओजस्वी आवाज सिख समाज के बीच गूंजी, वैसे ही पूरे माहौल में कुछ देर के लिए सन्नाटा सा खिंच गया। सब के सब आवाक थे और एक दूसरे की ओर देखकर मानो आंखों ही आंखों में परस्पर सवाल कर रहे थे- हमारे हाथों यह क्या हो गया! यह आवाज थी देशभर के सिख समाज द्वारा सम्मानित, पंजाब से आए कीर्तनकार श्री मनप्रीत सिंह कानपुरी की। बेला थी श्री गुरु नानक देव के प्रकाश पर्व की और स्थान था श्री गुरु सिंह सभा गुरुद्वारा इंदौर। स्तब्ध कर देनें वाले यह शब्द उन्होंने क्यों कहे, इस पर बेहद गंभीरता से विचार करने की आवश्यकता है। दरअसल मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ गुरु नानक देव के प्रकाश पर्व पर कीर्तन दीवान में मत्था टेकने इंदौर पहुंचे थे। वहां पर श्री गुरु सिंह सभा के पदाधिकारियों ने सरोपा भेंट कर उनका सम्मान किया। भारी संख्या में मौजूद सिख बंधुओं को यह बात बेहद नागवार लगी। लेकिन सौजन्यवश किसी ने कुछ नही कहा । सभी के हृदयों को विचलित किंतु जिव्हा को मौन देखकर प्रसिद्ध कीर्तनकार श्री मनप्रीत सिंह कानपुरी का हृदय व्याकुल हो उठा और उन्होंने समग्र सिख समाज की भावनाओं को अपने व्यथित मन से व्यक्त कर दिया। लंबे सन्नाटे के बाद जब लोगों की तंद्रा भंग हुई तो वहां तेजी से कानाफूसी होने लगी। मौके की नजाकत को भांपकर कांग्रेस नेता कमलनाथ अपने लाव लश्कर के साथ चुपचाप वहां से खिसक लिए। वहां मौजूद सिखों में शायद ही कोई ऐसा होगा, जिसके हृदय पर कीर्तनकार श्री मनप्रीत सिंह कानपुरी की सत्यवादिता ने प्रभाव ना छोड़ा हो। सभी के बीच चर्चा का एक ही विषय था - हमारे हाथों यह सब क्या हो गया और हम ऐसा कैसे कर बैठे? ऐसे सैकड़ों और हजारों सिखों की ही तरह मध्य प्रदेश कांग्रेस के मीडिया समन्वयक सरदार नरेंद्र सिंह सलूजा भी व्यथित दिखाई दिए। श्री मनप्रीत सिंह कानपुरी के मुख से प्रस्फुटित सिख समाज की भावनाओं को जानकर उनका मन भी विचलित हो उठा। उन्होंने अपने अनेक सजातीय बंधुओं और मित्रों के बीच इस भाव को प्रकट भी किया - अब तक मैं यह बात क्यों नहीं समझ पाया कि मैं एक ऐसे व्यक्ति के साथ कार्य कर रहा हूं जो 84 के सिख विरोधी दंगों में उस भीड़ का नेतृत्व कर रहा था, जिसने मेरे अनगिनत सिख भाइयों को बेहद निर्दयता के साथ मौत के घाट उतारने के कृत्य में भागीदारी की । इस अपराध बोध का नरेंद्र सिंह सलूजा पर यह असर हुआ कि उन्होंने तत् समय से ही कमलनाथ का साथ छोड़ दिया। जैसा कि उन्होंने खुद भी उद्घाटित किया - मैं बरसों से कमलनाथ के जन्मदिन पर उन्हें सबसे पहले शुभकामनाएं देते और सदैव ही जन्मदिन पर उन्हें तलवार भेंट करता आया हूं। लेकिन इस बार मैं ना तो कमलनाथ के जन्मदिन पर उन्हें शुभकामनाएं देने पहुंचा और ना ही उन्हें तलवार भेंट की। चित्त शांत होने पर और भली-भांति यह वास्तविकता समझ लेने पर कि एकमात्र भाजपा ही ऐसी पार्टी है जो 84 के सिख विरोधी नरसंहार का खुलकर विरोध कर रही थी, कर रही है और करती रहेगी, उन्होंने मध्य प्रदेश के यशस्वी मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी की सदस्यता ग्रहण कर ली। उनके इस हृदय परिवर्तन का ना केवल भाजपा नेताओं व कार्यकर्ताओं ने स्वागत किया, बल्कि सिख समाज में भी उनके इस कदम को व्यापक स्तर पर सराहा जा रहा है। एक और घटनाक्रम जो तेजी से हम सबकी आंखों के सामने से होकर गुजर गया। वह भी इस सत्यता को प्रतिपादित करता है कि सार्वजनिक रूप से भले ही कांग्रेसी नेता स्वयं को सिख विरोधी ना मानते हों, लेकिन उनकी अंतरात्मा यह भली-भांति जानती है कि 84 के दंगों में कांग्रेस जनों हाथों भारी पाप हुआ था, जिसके दाग कभी धोए ना जा सकेंगे। यही वजह रही कि उनके नेता राहुल गांधी की कथित भारत जोड़ो यात्रा जो पहले खालसा स्टेडियम में डेरा जमाने वाली थी, अब उसका वहां पहुंचना ही नहीं बल्कि वहां से गुजरना भी निरस्त किया जा चुका है। बता दें कि श्री गुरु नानक देव के प्रकाश पर्व पर सिख समाज की आहत भावनाएं सामने आने के बाद कांग्रेस की कथित भारत जोड़ो यात्रा का मार्ग बदल दिया गया। इन दोनों घटनाओं से यह बात स्पष्ट हो जाती है कि देश का सिख समाज ही नहीं बल्कि सर्व जातीय जनता जनार्दन भी 84 के दंगों को भूली नहीं है। अब तक प्राप्त विभिन्न जांचों के निष्कर्ष और अदालतों में तयशुदा आरोपों की रोशनी में यह बात दिन के उजाले की तरह साफ है कि 84 के सिखों के नरसंहार में कांग्रेस का केवल हाथ ही नहीं था, बल्कि वह उक्त अमानुषिक कृत्य में एक शातिर षड्यंत्रकारी की तरह सिखों के नरसंहार के ताने-बाने बुन रही थी। यह भी किसी से छुपा नहीं है कि कमलनाथ भी तत्समय उपद्रवियों की भीड़ का नेतृत्व कर रहे थे, इस आशय के आरोप उन पर अदालत में तय किए जा चुके हैं। कुल मिलाकर हाल ही में घटित इन दो घटनाक्रमों ने एक बार फिर कांग्रेस के सिख विरोधी चेहरे को बेनकाब करके रख दिया है।

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)

Updated : 26 Nov 2022 3:30 PM GMT
Tags:    
author-thhumb

Swadesh News

Swadesh Digital contributor help bring you the latest article around you


Next Story
Top