संघ कार्य के 100 वर्ष:आठ वर्ष की आयु में गया था संघ की शाखा शेष जीवन अब संघ कार्य के लिए समर्पित है

वन संचार में सीखा आपदा में सामूहिक दायित्व
श्री शर्मा एक अनुभव को स्मरण करते हुए कहते हैं कि मैं संघ के स्वयंसेवकों के साथ वनसंचार कार्यक्रम के लिए झुमरी तलैया बाँध गया था, जहाँ संघ विचार को आत्मसात करने का शुभ अवसर मिला। जब हम वनसंचार कार्यक्रम के दौरान बाँध पर खेल रहे थे, तभी एक बच्चा फिसलकर बाँध में गिर गया। इसके बाद संघ के चार स्वयंसेवकों ने तत्काल पानी में छलांग लगा दी और बच्चे को पानी से बाहर निकाल लिया। इससे यही सीख मिलती है कि संघ के स्वयंसेवक हर आपदा में समाज के सहयोग के लिए सदैव तैयार रहते हैं।
मेरा जीवन अब संघ कार्य के लिए समर्पित है। वेदप्रकाश शर्मा गौरव के साथ बताते हैं कि मैं आज संघ के अनुषांगिक क्षेत्र में जुड़कर समाज के बीच कार्य कर रहा हूँ। जम्मू-कश्मीर अध्ययन केंद्र के जागरण आयाम की प्रांत टोली में हूँ। इसके साथ ही विवेकानंद केंद्र में विभाग संचालक का दायित्व भी निभा रहा हूँ। संघ ने जो दिशा दी है, उसका पालन आज भी कर रहा हूँ।
पूर्व आईएएस एवं समाजसेवा के क्षेत्र में सक्रिय वेदप्रकाश शर्मा आठ वर्ष की अवस्था में झारखंड के बरही में पहली बार संघ की शाखा गए। बरही शाखा पर जो संस्कार और समझ मिली, वह अतुलनीय है। जीवन भर शाखा से मिली समझ और संस्कार मुझे हर परिस्थिति में भीतर से स्पंदित करते रहे हैं। सच कहूँ तो शाखा के कारण ही मेरे भीतर भारतीयता के संस्कार प्रस्फुटित हुए, जो आज भी मेरा मार्गदर्शन कर रहे हैं।
मैं बाद में प्रशासनिक सेवा में आ गया। एक लंबे समय तक शासन और प्रशासन में संघ को लेकर एक दुराग्रह हावी रहा। इस दुराग्रह के कारण प्रशासन में कई ऐसे अवसर आए, जब संघ को केवल राजनीतिक मतभेदों के चलते अनावश्यक रूप से परेशान किया गया। समाज और राष्ट्र निर्माण से जुड़े अनेक प्रयास केवल इसलिए संदेह की दृष्टि से देखे जाते थे, क्योंकि वे संघ-प्रेरित होते थे। आज यह सुखद स्थिति है कि समाज और तंत्र में संघ को लेकर सकारात्मक वातावरण बना है।
जब सिस्टम फेल हो रहा था, संघ प्रेरणा दे रहा था
कोरोना काल के दौरान मैं नरसिंहपुर में कलेक्टर के रूप में पदस्थ था। उस समय जब पूरा सिस्टम असफल हो रहा था, तब संघ के स्वयंसेवक आगे आए। मैंने भी प्रशासनिक दृष्टि से पूरा सहयोग किया। चूँकि वैचारिक रूप से मैं स्वयंसेवक ही रहा हूँ, इसलिए समाजसेवा के इस अभियान में सक्रिय रूप से शामिल रहा।
किसी भी संगठन का 100 वर्षों की यात्रा तय करना और निरंतर प्रभावी होते जाना, उसकी स्वीकार्यता और जनमानस से जुड़ाव को दर्शाता है। यह सौ वर्ष संघ के स्वयंसेवकों के निस्वार्थ समर्पण और अदम्य साहस की कहानी हैं। मुझे गर्व है कि मैं भारत का गौरव जगाने वाले इस संगठन का स्वयंसेवक हूँ।
संघ का विचार ही भारत का विचार
मैं मानता हूँ कि संघ के विचार के बिना भारत अधूरा है, क्योंकि संघ का विचार ही भारत का विचार है। यही विचार भारत राष्ट्र की शिराओं में अनंत काल से प्रवाहित होता रहा है और आने वाले समय में भी प्रभावी रहेगा। संघ में विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञों को अधिक से अधिक जोड़ने और उनकी क्षमताओं का उपयोग करने की आवश्यकता है।
संघ की प्रेरणा से जबलपुर के ग्वारीघाट पर वर्ष प्रतिपदा के आयोजन में वेदप्रकाश शर्मा व अन्य।
ग्वालियर में संघ के समारोह से मिली प्रेरणा
श्री शर्मा बताते हैं कि जब मैं ग्वालियर में एडीएम और बाद में नगर निगम आयुक्त रहा, तब जलविहार में होने वाले वर्ष प्रतिपदा के कार्यक्रम ने मुझे अत्यंत प्रभावित किया। वहीं मैंने तय कर लिया कि ऐसा ही कार्यक्रम अपने स्तर पर प्रारंभ करूँगा। इसी प्रेरणा से पिछले तीन वर्षों से वर्ष प्रतिपदा पर नर्मदा किनारे ग्वारीघाट में सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित कर रहे हैं। इस कार्यक्रम में सैकड़ों परिवार भारतीय वेशभूषा में शामिल होते हैं।
संघ जैसा अपनापन कहीं नहीं मिलता
श्री शर्मा बताते हैं कि मैं संघ के अनेक कार्यक्रमों में शामिल रहा हूँ। यहाँ जो स्नेह और अपनापन मिला, वैसा किसी अन्य संगठन में नहीं मिलता। संघ के अधिकारियों का व्यवहार पूर्णतः पारिवारिक होता है। एक-दूसरे का ध्यान रखना और सहयोग करना संघ ही सिखाता है। आज मेरे और मेरे परिवार के जो संस्कार हैं, वे संघ की ही देन हैं। संघ की प्रेरणा से हम एक सामाजिक संगठन भी चला रहे हैं, जिसके माध्यम से यथासंभव समाजसेवा करते हैं।
संघ का विरोध राजनीतिक प्रपंच ही है
श्री शर्मा कहते हैं कि संघ सदैव भारत के हित में कार्य करता है। यह बात कुछ लोगों को अच्छी नहीं लगती। उनका राष्ट्रहित से कोई लेना-देना नहीं है, फिर भी वे निरंतर संघ का विरोध करते रहते हैं। उनके आरोप राजनीतिक प्रपंच के अलावा कुछ नहीं हैं।
कठिनाइयाँ सभी को हैं। यदि सभी अपनी कठिनाइयों का रोना रोने लगेंगे, तो हम दूसरों के भक्ष्य बनने से बच नहीं सकेंगे। संघ कार्य के लिए यदि हम अपने आपको प्राणपण से लगा दें, तो कल हमारी संतान हिंदू के रूप में जीवित रह सकेगी।
- डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार
