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प्रथम विश्व युद्ध में मानवता की जीत के सिरमौर थे भारतीय जवान और उनकी शहादत

प्रथम विश्व युद्ध में मानवता की जीत के सिरमौर थे भारतीय जवान और उनकी शहादत
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राजधानी के बोट क्लब, अमर जवान ज्योति और इंडिया गेट पर भारतीय सैनिकों की शौर्यगाथा और उनके बलिदान को याद करने का रविवार (11 नवम्बर) अपराह्न एक पुनीत अवसर होगा। देशवासी देश की सीमाओं की रक्षा के लिए आत्मोत्सर्ग करने वाले जवानों की स्मृति में दीप प्रज्ज्वलित कर अमर जवान ज्योति के समक्ष नतमस्तक होते हैं, तो वहीं उसके पीछे खड़े भव्य इंडिया गेट पर प्रथम विश्व युद्ध के दौरान मानवता की रक्षा करने वाले भारतीय जवानों की शहादत को भी श्रद्धांजलि देते हैं।

इंडिया गेट की दीवारों पर उन हजारों भारतीय सैनिकों के नाम उत्कीर्ण हैं जिन्होंने ब्रिटेन, फ्रांस और मित्र सेनाओं के साथ मिलकर विश्व शांति के लिए खतरा बने जर्मनी को पराजित किया था। 11 नवम्बर 1918 को फ्रांस के स्थानीय समय पूर्वाह्न 11 बजे विजयी मित्र सेनाओं और पराजित जर्मन सेनाओं के बीच युद्ध विराम हुआ था। रविवार को प्रथम विश्व युद्ध के समापन की एक सदी पूरी होने पर दुनियाभर में समारोह आयोजित किए गए हैं। मुख्य समारोह फ्रांस (पेरिस) में आयोजित है, जिसमें उपराष्ट्रपति एम. वेंकैया नायडू भारतीय दल का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं।

इतिहासकार पहले महायुद्ध को 'सभ्यता की रक्षा के लिए लड़ा गया युद्ध' करार देते हैं। बलिदान के इस महायज्ञ में सैनिकों की भूमिका को लंबे समय तक विस्मृत किया गया, लेकिन आज दुनिया को यह एहसास हो गया है कि भारतीय सैनिकों के बलबूते ही मानवता विरोधी ताकतों को पराजित किया जा सका।

भारत में अंग्रेंजों की दासता से मुक्त होने के लिए आंदोलनरत राष्ट्रवादी नेताओं ने अंग्रेजों के खिलाफ अपनी जद्दोजहद को मानवता की रक्षा के लिए मित्र सेनाओं के युद्ध अभियान में सक्रिय समर्थन दिया था। महात्मा गांधी सहित राष्ट्रीय नेताओं को यह उम्मीद थी कि अंग्रेज हुक्मरान महायुद्ध में अपनी जीत के बाद भारत को अर्द्ध आजादी या स्वायत्तता (डोमिनियन स्टेटस) प्रदान कर देंगे। हालांकि, उस समय भी प्रखर राष्ट्रवादियों और क्रांतिकारियों का एक समूह यह चाहता था कि महायुद्ध में अंग्रेजों का साथ देने की बजाय देश की आजादी के संघर्ष को और तेज किया जाए। महायुद्ध के मुख्य रणस्थल फ्रांस में श्यामजी कृष्ण वर्मा, मैडम भीकाजी कामा और एसआर राणा भारतीय सैनिकों के बीच यह अभियान चलाने का प्रयास कर रहे थे कि वह अंग्रेजों की ओर से लड़ने के बजाय भारत की आजादी के लिए हथियारों का उपयोग करें। अंग्रेज सरकार इन क्रांतिकारियों की गतिविधियों से इतना घबरा गई कि मैडम कामा को गिरफ्तार कर लिया गया और एसआर राणा को देशनिकाला देकर सुदूर द्वीप में भेज दिया गया।

इतिहास इस बात का गवाह है कि महायुद्ध में जीत के बाद अंग्रेजों ने भारत के साथ एहसान फरामोशी की और भारतीयों के बलिदान को भुला दिया गया। जिन भारतीयों के बलबूते अंग्रेजों ने प्रथम विश्व युद्ध जीता था उन्हीं भारतीयों के खिलाफ एक वर्ष बाद 1919 में जलियांवाला बाग का नरसंहार अंजाम दिया गया। इतिहासकारों को अनुसार प्रथम विश्व युद्ध में भारत के 13 लाख सैनिकों ने भाग लिया था तथा 74,187 हजार जवानों ने अपनी कुर्बानी दी थी। भारतीयों ने अपनी वीरता का सिक्का जमाया था तथा महायुद्ध के निर्णायक मोर्चों पर मित्र सेनाओं को जीत दिलाई थी। इसके लिए अनेक भारतीय सैनिकों को विक्टोरिया क्रॉस सहित कई युद्ध सम्मानों से विभूषित किया गया था।

प्रथम विश्व युद्ध में भारतीय सैनिकों के योगदान का किस तरह स्मरण किया जाए यह एक दुविधापूर्ण सवाल है। एक नजरिया यह हो सकता है कि भारतीय जवान भाड़े के सैनिक थे जो उन लोगों की ओर से लड़ रहे थे जिन्होंने उनके देश को गुलाम बनाकर रखा था। दूसरी ओर इतिहास की एक विहंगम दृष्टि यह हो सकती है कि मानवता के पक्ष में विश्वव्यापी लड़ाई में भारतीय जवानों ने बुराई के खिलाफ सच्चाई का साथ दिया।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपनी विश्व कूटनीति के तहत महायुद्धों में भारतीय जवानों के योगदान का दुनिया को नए सिरे से भान कराया है। अपनी पिछली फ्रांस यात्रा के दौरान मोदी वहां भारतीय सैनिकों की स्मृति में बनाए गए स्मारक पर श्रद्धांजलि देने गए थे। मोदी ने विश्व नेताओं को यह बताया था कि भारतीय जवान केवल देश की सीमाओं की ही रक्षा नहीं करते बल्कि मानवता पर जब भी संकट आता है तो वह बलिदान देने में भी अग्रणी रहते हैं। यूरोप, मिस्र और पश्चिम एशिया में निर्णायक मोर्चों पर मित्र सेनाओं की जीत पर बनाए गए स्मारक भारतीय जवानों की शहादत की भी निशानदेही कराते हैं।

Updated : 11 Nov 2018 4:26 PM GMT
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Swadesh Digital

स्वदेश वेब डेस्क www.swadeshnews.in


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