बदलाव का साल साबित हुआ साल 2018
किसान आंदोलन, एट्रोसिटी एक्ट, विधानसभा चुनाव और कर्जमाफी का मुद्दा रहा साल 2018 की मुख्य घटना
प्रदीप भटनागर
भोपाल । अपने साथ तमाम अच्छी बुरी यादों को समेटे अंग्रेजी कलेंडर का साल 2018 वक्त की दहलीज पर चढ़कर वर्तमान से इतिहास बन गया। साल तो खत्म हो गया, लेकिन अपने पीछे ऐसी कई तस्वीरों को छोड़ गया, जो समय के पटल पर अमर हो गईं और लंबे समय तक उनको याद रखा जाएगा। कभी उदाहरण के तौर पर, कभी नसीहत के तौर पर तो कभी एक सामान्य से उदाहरण के रूप में। इस सिलसिले में अगर हम मध्यप्रदेश की बात करें, तो साल 2018 एक बदलाव के साल के तौर पर हमेशा ही हमारे मन-मस्तिष्क में ताजा रहेगा। फिर बात चाहे, राजनीति के बारे में करें या समाज के बारे में। वैसे मध्यप्रदेश के परिपेक्ष्य में साल 2018 के केंद्र के तौर पर सिर्फ विधानसभा चुनाव ही नजर आते हैं। इन चुनावों में 15 साल से मध्यप्रदेश पर सत्तासीन भाजपा जहां इस बार सत्ता से बेदखल हो गई, तो एक अर्से से सत्ता का सूखा झेल रही कांग्रेस जोड़तोड़ करके ही सही लेकिन सरकार बनाने में सफल हो गई। कमलनाथ प्रदेश के पटल पर प्रभावी नेता बनकर उभरे, जिन्होंने अपनी रणनीति और बेहतरीन सूझबूझ के जरिए भाजपा के अपेक्षा कम मत हासिल करने वाली कांग्रेस को भी सत्ता के सिंहासन तक पहुंचा दिया। मध्यप्रदेश कांग्रेस की कमान संभालने के बाद अलग अलग गुटों में बंटी काग्रेस को एक साथ लाना और चुनावों में मजबूत सत्तापक्ष को करारी चुनौती देने संबंधी पहलुओं का आंकलन कमलनाथ की सफलता के तौर पर ही किया गया। इसी सफलता के इनाम के तौर पर ही कमलनाथ को मुख्यमंत्री पद से नवाजा गया, और उन्होंने प्रदेश के 18वें मुख्यमंत्री के तौर पर पद और गोपनीयता की शपथ ली। सत्ता के सिंहासन पर बैठते ही कमलनाथ ने किसानों के कर्ज माफ कर आगामी लोकसभा चुनाव से पहले किसानों को साधने का अस्त्र छोड़ा।
शपथ लेने के बाद मुख्यमंत्री कमलनाथ का सक्रिय होना भी मध्यप्रदेश के साथ देशभर में सुर्खियां बटोरता नजर आया। फिर बात चाहे किसानों के कर्ज माफी की करें या फिर पुलिसकर्मियों को साप्ताहिक अवकाश की। कमलनाथ के अलावा भी प्रदेश कांग्रेस की राजनीति कई यादगार पल को अपने पीछे छोड़ गई, खासकर इस साल 2003 में राजनीतिक सन्यास ले चुके दिग्विजय सिंह की राजनीतिक वापसी भी देखने को मिली। वहीं राहुल गांधी की अगुवाई में मध्यप्रदेश को कांग्रेस ने नरम हिंदुत्व की प्रयोगशाला भी बनाया, जिसका उसे काफी हद तक फायदा भी मिला। मुख्यमंत्री चयन के वक्त कांग्रेस में भोपाल से दिल्ली तक सामने आया घमासान भी भविष्य में यकीनन कई बार दोहराया जाएगा।
वहीं बात अगर भाजपा के बारे में करें, तो वह साल 2018 को उसकी सत्ता के सूर्यास्त के तौर पर याद रखा जाएगा। जो विधानसभा चुनाव में 109 सीटें हासिल कर सकी, और बहुमत के आंकड़े से सिर्फ 7 सीटें दूर रह गई। हालांकि इस चुनाव में 15 साल से शासन कर रही भाजपा के खिलाफ कहीं भी जनाक्रोश देखने को नहीं मिला, लेकिन कई सीटों पर नोटा के मुकाबले कम मतों से मिली हार और 13 मंत्रियों के चुनाव हारने के मसले ने पार्टी के गलत प्रबंधन को सामने रखने का काम जरूर किया। वो प्रबंधन, जिसे भाजपा की सबसे बड़ी मजबूती के तौर पर देखा जाता रहा है। मध्यप्रदेश की राजनीति के बारे में बात करें, तो भला पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को कैसे दूर रखा जा सकता है। डेढ दशक से जो नाम प्रदेश की राजनीति और भाजपा का पर्याय बन चुका था, उस नाम को साल 2018 ने भी एक बीता हुआ कल साबित कर दिया।
हालांकि खुद को जिंदा टाईगर बताकर शिवराज सिंह चौहान अभी भी खुद को मुख्यधारा में शामिल किए हुए हैं, शायद उन्हें उम्मीद है कि आने वाला साल बीते साल में हुए नुकसान की भरपाई करने वाला साबित होगा।
राजनीतिक घमासान के इतर मध्यप्रदेश में सामाजिक स्तर पर भी बहुत कुछ ऐसा हुआ, जिसने हर किसी का ध्यान अपनी तरफ खींचा। खासकर केंद्र सरकार द्वारा पारित किए गए अनुसूचित जाति-अनुसूचित जनजाति के बाद प्रदेश में बने बेकाबू हालात एक बार के लिए देशभर में चर्चा का केंद्र बन गए। प्रदेश के ग्वालियर चंबल अंचल में दलित आंदोलन के दौरान भड़की हिंसा खासे बवाल की वजह बनी, जिसका असर विधानसभा चुनाव में भी देखने को मिला। समय-समय पर आंदोलन के तौर पर सामने आई किसानों की नाराजगी और चुनावी साल में अपनी मांगों को पूरा करने का दबाव बनाने के लिए अलग-अलग वर्गोंं का विद्रोह भी चर्चाओं में बना रहा। कुल मिलाकर बीते साल में बहुत कुछ ऐसा देखने को मिला, जो कभी-कभी ही नजर आता है। लिहाजा अगर हम 2018 को बदलाव का साल करार दें, तो इसमें कोई बेमानी नहीं होगी।
खैर 2018 अब बीत गया है, एक नई उम्मीद के तौर पर 2019 ने भी अपनी दस्तक दे दी है। यकीनन हर कोई अपने आने वाले दिन को अपने आज या बीते हुए दिन से बेहतर देखना चाहता है, मध्यप्रदेश को भी उम्मीद है, कि नया साल उसके लिए कुछ नया लेकर आए। यहां की राजनीति और यहां के समाज के साथ प्रदेश के वासी होने के तौर पर हम सबका उम्मीद पालना भी जरुरी है, कि नए साल में जो कुछ भी हो, वह हम सबके भले के हों। इसी शुभेच्छा के साथ आइए स्वागत करते हैं नए साल का।
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