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एक धरती मेरे अंदर- काव्य संग्रह- समीक्षा

एक धरती मेरे अंदर- काव्य संग्रह- समीक्षा
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वेबडेस्क/श्याम चौरसिया। सोशल मीडिया, मोबाइल,टीवी में कैद समय से उमेश पंकज के चर्चित काव्य संग्रह एक धरती मेरे अंदर की मानवीय संवेदनाओं से लबरेज कविताओं को आत्मसात करना सारनाथ यात्रा के आनंद तुल्य है। ऊंचे लोगो की बजाय ठेठ झुग्गियों ओर ग्रामीण पथ की दैनंदिनी विषमताओं के बूते 108 कविताओं में कटाक्ष, व्यंग्य का रस घोल इंद्र धनुषी बनाना किसी साहित्यक कौशल से कम नही लगता। उमेश पंकज मौजूदा दुरावस्था के लिए व्यक्ति की कर्महीनता,आलस ओर सरकार के अनुदानों पर जिंदा आदमी ओर जनसंख्या विस्फोट की बजाय सिर्फ सरकार को ही जिम्मेदार बता मनु पर निशाना साध मनु विरोधियों के होसलो को पंख देने का प्रयास करते लगते है।

माँ, पिता,समाज,संगे रिश्तों, मान, मर्यादाओं के कर्तव्यों, धर्म,दायित्वों के मायाजाल को बुनने के फेर में सर्व दलीय,सर्व भोम अधिकारों को घाट पर नही आने देते।जिससे शेवर्लेड चार की जगह एक पहिये पर घसाटी नजर आती है। गतिशीलता जड़ता में बदलती दिखती है। लगता है। डल में अब कभी कमल नही खिलेंगे। डल है तो कमल भी है। जीत नारायण दोहरा चरित्र जी सकता है। पर शुभकरण जामुल की डाल पर नही बैठ सकता। शोषण वर्ग संघर्ष का उद्घोष करता दिखता है। पर शोषण के भी शोषण की अविरल धारा का चरित्र,उसकी लय, ताल शोषण की अर्थी निकाल पूंजीवाद/सामंतवाद/नोकरशाही को बुलन्द करता है।

राजनीतिक कलुषता,के बीच राजनीति को मगरी पर बैठा राजनीति का स्वहित में उपयोग करने से उतपन्न सामाजिक, पारवारिक, धर्मिक,शेक्षणिक,व्यवसायिक विकारों, विषमताओं की बाढ़ को रोकना तो दूर टोकने की हिम्मत नही दिखा पाने की मजबूरी चालाकी, लालच, मक्खीपने पर उंगली उठाती है। कवि उमेश पंकज की ये चूक, चूक नही बल्कि तानाशाही साम्राज्य का डर लगता है।

रोटियों की तासीर पेट की आग-ज्वाला की प्याऊ नही बन सकी।रोटियां लोकतंत्र की ही नही बल्कि सत्ययुग,रामराज्य, द्वापर की भी हकीकत रही। यदि रोटियां न हो तो चुनाव की नोबत ही न आए। जाहिर चुनाव ब्रह्म रक्षास से कम नही है। उमेश पंकज इस कटु धरातल को शिखर नही दे सके।समझौतों ने बाट लगा दी।एक धरती मेरे अंदर, फिर भी अंदर तक बिधती जरूर है। संवेदनाओं का ज्वार उठाती जरूर है।पर धरती अंदर से निकल सिर्फ कटोरे में बदल जाती है। प्रभाव, पकड़ बनाने में कामयाब होना, सोशल मीडिया,टीवी युग की बड़ी उप्लब्दि कही जा सकती है। उमेश पंकज,पंकज से राजा दाहिर सेन में बदल जाते है।

Updated : 12 Oct 2021 10:23 AM GMT
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स्वदेश डेस्क

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