ग्राउंड जीरो से स्वदेश विशेष: आदमी की पीर गूंगी ही सही गाती तो है...उत्कर्ष के 8 वर्ष की नजीर है हवाई पट्टी, गांव को सरकार की नजर की दरकार

पीरू ग्रामसभा के किसानों की जमीन पर बनी हवाई पट्टी
बृजेश 'कबीर', शाहजहांपुर। जलालाबाद सब डिवीजन के जिस गांव पीरू के नाम से गंगा एक्सप्रेसवे की नाइट लैंडिंग हवाई पट्टी पूरे देश में पहचानी जाएगी, उस गांव के हालात बदतर हैं। एक्सप्रेसवे से 500 मीटर दूर पीरू गांव की सड़क उधड़ी पड़ी है, जैसे किसी चर्मकार ने 'ढोर' से खाल खींच ली हो। पीरू गांव की उम्र जो हो, वहां की पीर पुरानी है। सड़क, शिक्षा, स्वास्थ्य, बिजली और पीने लायक पानी से दूरी की चिरंतन कहानी है। दुष्यंत कुमार की दो लाइनों से बात शुरू...एक खंडहर के हृदय सी एक जंगली फूल सी, आदमी की पीर गूंगी ही सही गाती तो है...
हवाई पट्टी, जिस पर लड़ाकू विमान लैंडिंग और टेक ऑफ करेंगे, इसे देश-दुनिया पीरू एयर स्ट्रिप कहेगी। पर पीरू की किस्मत में सूल की सड़क तक नहीं है। बरसों पहले बनी, उधड़ी सड़क कमीशनखोरी की कथा बयां कर रही है। दूसरी ओर, 36 हजार करोड़ लागत से गंगा एक्सप्रेसवे बन रहा है। वहीं, कदम कदम पर रोड़े पीरू गांव की सबसे बड़ी पीर है। यह रोड़े जीवन की डोर कमजोर कर रहे हैं, तरक्की राह रोक रहे हैं, सिस्टम और जनप्रतिनिधियों की नाकामी उघाड़ रहे हैं।
पीरू ग्राम सभा के आवागमन का इकलौता संपर्क मार्ग
गंगा एक्सप्रेसवे पर एयर स्ट्रिप (हवाई पट्टी) जहां बनी है, वहां से पाषाण सा पीरू गांव साफ दिखता है। पीरू गांव से गंगा एक्सप्रेसवे वैभवशाली भारत की चमकती तस्वीर दिखाता है, तो पीरू गांव की दीन दशा भी। जलालाबाद तहसील और मदनापुर विकास क्षेत्र की ग्राम पंचायत चमरपुर कलां का मजरा है पीरू। भीतर पहुंचने पर गांव कृशकाय काया के बुजुर्ग सा है। डामर से बनी सड़क धूल मिट्टी संग कहीं कहीं काली दिखती है। उधड़ी सड़क की गिट्टियां हर कदम पर डामर को छोड़ उछल पड़ती हैं और पूछती हैं, गंगा एक्सप्रेसवे से उतर गांव आना कैसा लगा ? सड़क की उखड़ी गिट्टियां मुख्य मार्ग से गांव के मुहाने तक मुंह चिढ़ाती है, ताने देती है, शिकायत करती है, पोल भी खोलती है सरकार की।
अफसर कितनी मर्तबा पीरू का हाल जानने पहुंचे, ये प्रश्न है। अगर जाते होते तो हालात कुछ तो अच्छे होते। गांव के प्रदीप कुमार खेती-बाड़ी करते हैं। बोल उठे, क्या छिपा है आपसे। हम तो अब भी साढ़े चार दशक पुराना जीवन जी रहे हैं। हालात गांव के बाहर बदले होंगे, दुनिया बदली होगी, पर पीरू की दुनिया ठहरी है, ठिठकी है। बताया, मोबाइल फोन में बदलती दुनिया की तस्वीरें देखते हैं, पीरू कब बदलेगा ?
3 किमी. दूर है शिक्षा का मंदिर :
पीरू गांव में कोई विद्यालय नहीं है। देवेंद्र सिंह ने बताया, बच्चों को तीन किलोमीटर की दूरी तय कर दूसरे गांव जाना पड़ता है। कर्री गर्मी में बच्चों का दूसरे गांव आना-जाना कर्रा काम है, कोई भी समझ सकता है।
8 नल, सबसे दूषित पानी, जल जीवन मिशन बेमानी :
पीरू में आठ इंडिया मार्का हैंडपंप हैं, आठों से दूषित पानी आता है, सब पीते हैं, आदत में आ गया है। जल जीवन मिशन से आधे गांव में ही पाइप लाइन बिछी है। आधे में बिछाना जिम्मेदार भूल गए। जहां पाइप लाइन बिछी है, वहां भी पानी नहीं आता, क्योंकि टंकी का निर्माण दूसरे गांव चांदपुर में हुआ है।
3 किमी पर सरकारी अस्पताल, डॉक्टर बैठते नहीं :
पीरू गांव में हारी-बीमारी में तीन किलोमीटर दूर प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र बुधवाना सहारा है, लेकिन यहां दिक्कत, डॉक्टर नहीं बैठते। फिर तो पांच किमी और आगे मरीज मदनापुर या फिर दूसरी ओर जलालाबाद सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र ले जाना पड़ता है।
बिजली की बंद कर दी पीरू वालों ने प्रतीक्षा :
गांवों में बिजली के तो दर्शन ही होते हैं। आती कम, जाती अधिक है। ऐसा ही हाल पीरू गांव का भी है। बढ़ी गर्मी में बिजली कब आएगी, गांव वालों ने प्रतीक्षा बंद कर दी। सुखदेव बताते हैं, बिजली आए या न आए, हम तो पाषाण काल में जी रहे हैं। बिजली की जरूरत ही नहीं।
खुले में जाते हैं पीरू वाले शौच :
पीरू गांव में शौचालय नहीं हैं। लोग खुले में ही शौच जाते हैं। गांव में छह-छह महीने पर सफाई करने ब्लॉक से टीम आती है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को गंगा एक्सप्रेसवे के निरीक्षण को आना था, तब गांव की सफाई कराई गई थी, बाकी नालियां बीच रोड पर बहती हैं। बाकी बात भी दुष्यंत कुमार के साथ खत्म... इस अंगीठी तक गली से कुछ हवा आने तो दो, जब तलक खिलते नहीं हैं कोयले देंगे धुआँ...
गंगा एक्सप्रेसवे तरक्की की राह, सब भरेंगे रफ्तार
शाहजहांपुर के वरिष्ठ पत्रकार विवेक सेंगर
हालांकि, वरिष्ठ पत्रकार विवेक सेंगर बेहतर भविष्य के प्रति आश्वस्त हैं। कहते हैं, गंगा एक्सप्रेसवे शाहजहांपुर के 41 गांवों के किसानों की नई जिंदगी की शुरुआत है। मेरठ से प्रयागराज तक गंगा एक्सप्रेसवे नवंबर 2025 में तैयार हो जाएगा, लेकिन इस एक्सप्रेसवे के निर्माण की शुरुआत से ही हजारों किसानों की जीवन की डगर आसान हो गई। मुआवजा मिला, तो जितनी जमीन अधिग्रहित की गई किसानों ने उससे कई गुना जमीन दूसरी जगह खरीद। वह तो पक्के मकानों का सपना देखते थे, मुआवजा इतना मिला कि किसानों ने कोठियां बनाई, बैलगाड़ी की जगह स्कार्पियों, बोलेरो खरीद लाए। शहर में भी मकान बनवा कर बच्चों को अच्छी शिक्षा देनी शुरू की। यह मां गंगा का आशीर्वाद उन किसानों को ही नहीं है, जिनकी जमीन इस एक्सप्रेसवे के निर्माण में अधिग्रहित की गईं, बल्कि उन जिलों के लोगों के लिए भी तरक्की की राह पर रफ्तार पकड़ने अवसर है, जो गंगा एक्सप्रेसवे के आसपास भी हैं। शुक्रवार को गंगा एक्सप्रेसवे पर जलालाबाद तहसील क्षेत्र के पीरू में बनी हवाई पट्टी पर जब लड़ाकू विमानों ने गर्जना की तो उन किसानों के सीने और चौड़े हो गए, जिनकी जमीन पर यह हवाई पट्टी और एक्सप्रेसवे बना है। उम्मीद की जानी चाहिए कि पीरू गांव पर भी सरकार की नजर जरूर जाएगी और इसकी तदबीर और तकदीर बदलेगी।
