मथुरा: श्री कृष्ण जन्मभूमि विवाद में हिंदू पक्ष की अर्जी खारिज, अदालत ने ईदगाह को विवादित ढांचा घोषित करने से किया इंकार

Shri Krishna Janmabhoomi dispute
Shri Krishna Janmabhoomi Dispute : मथुरा, उत्तरप्रदेश। श्री कृष्ण जन्मभूमि-शाही ईदगाह विवाद मामले में बड़ा अपडेट सामने आया है। हिंदू पक्ष की एक अर्जी इलाहाबाद हाईकोर्ट से खारिज हो गई है। अदालत ने शाही ईदगाह को विवादित ढांचा घोषित करने से इंकार कर दिया है।
यह फैसला जस्टिस राम मनोहर मिश्रा की सिंगल बेंच ने सुनाया है। शाही ईदगाह को विवादित परिसर मानने से इनकार करते हुए कोर्ट ने कहा कि, मौजूदा तथ्यों और याचिका के आधार पर ईदगाह को फिलहाल विवादित ढांचा घोषित नहीं किया जा सकता। हिंदू पक्ष की ओर से दावा किया गया था कि, ईदगाह का निर्माण श्रीकृष्ण की जन्मभूमि पर स्थित प्राचीन मंदिर को तोड़कर किया गया है।
श्री कृष्ण जन्मभूमि से जुड़े मामले में याचिकाकर्ता महेंद्र प्रताप सिंह ने बताया था कि, "पिछली सुनवाई में हमने माननीय न्यायालय से शाही ईदगाह मस्जिद को विवादित ढांचा घोषित करने का अनुरोध करते हुए एक आवेदन प्रस्तुत किया था। हमने श्री राम जन्मभूमि मामले की मिसाल भी पेश की, जहां ढांचे को विवादित घोषित किया गया था और संभल मामले का भी हवाला दिया था। हमने माननीय न्यायालय से शाही ईदगाह को विवादित ढांचा घोषित करने का आग्रह किया था।"
क्या है कृष्ण जन्मभूमि विवाद :
मथुरा में लंबे समय से चल रहा कानूनी और धार्मिक विवाद शाही ईदगाह मस्जिद के इर्द-गिर्द केंद्रित है। माना जाता है कि, इसका निर्माण मुगल बादशाह औरंगजेब के शासनकाल में हुआ था। याचिकाकर्ताओं का तर्क है कि मस्जिद भगवान कृष्ण के मूल जन्मस्थान पर है, उनका आरोप है कि इसे पहले से मौजूद हिंदू मंदिर को ध्वस्त करने के बाद बनाया गया था।
साल 1968 में श्री कृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान - मंदिर के प्रबंधन निकाय - और ट्रस्ट शाही मस्जिद ईदगाह के बीच समझौता हुआ था। इस समझौते ने दोनों धार्मिक स्थलों को एक ही परिसर में सह-अस्तित्व और कार्य करने की अनुमति दी। हालांकि, यह दशकों पुरानी व्यवस्था अब न्यायिक जांच के दायरे में आ गई है।
कई वादियों ने 1968 के समझौते की वैधता को चुनौती देते हुए नए मुकदमे दायर किए हैं। उनका आरोप है कि इसे धोखाधड़ी से निष्पादित किया गया था और इसमें कानूनी आधार नहीं है। इन याचिकाओं में विभिन्न प्रकार की न्यायिक राहत की मांग की गई है, जिसमें स्थल पर अप्रतिबंधित पूजा का अधिकार और शाही ईदगाह मस्जिद को हटाने का अधिकार शामिल है, जिसके बारे में उनका दावा है कि यह पवित्र जन्मभूमि भूमि पर अतिक्रमण कर रही है।
