उत्तर प्रदेश में पंचायत चुनाव अप्रैल मई में होने के आसार

अभी कुछ हफ्ते पहले तक गांवों में लोग गेहूँ की कटाई, खाद बीज, या रोजमर्रा की परेशानियों पर बात करते दिख जाते थे। लेकिन अब हालत थोड़ी बदली हुई है। सुबह चाय के ठेले पर कपों की खनखनाहट के साथ एक ही सवाल तैर रहा है-“इस बार पंचायत में कौन बाजी मारेगा?”
क्योंकि उत्तर प्रदेश की ग्राम पंचायतों का कार्यकाल मई में खत्म हो रहा है, और बोर्ड परीक्षाओं के बाद अप्रैल-मई में चुनाव की पूरी उम्मीद है। ग्राम पंचायत का चुनाव अक्सर छोटा माना जाता है, लेकिन हकीकत यह है कि यहीं से बड़े नेता तैयार होते हैं। कई जगह तो विधायक, सांसद, मंत्री-सबके परिवार वाले भी मैदान में उतरते हैं। इसलिए हर दल और हर संभावित उम्मीदवार की नजर इस बार के मुकाबले पर टिकी हुई है।
सबसे गरम सीट, सबसे ज्यादा दावेदार
अमेठी में अगर सबसे ज्यादा चर्चा किसी पद की है, तो वह है जिला पंचायत अध्यक्ष की।मौजूदा अध्यक्ष राजेश मसाला इस बार थोड़े अलग मूड में हैं। वे 2027 की जमीनी तैयारी में लग चुके हैं, लेकिन लोग आज भी 2021 वाला चुनाव याद करके बातें छेड़ देते हैं—जब उन्होंने गौरीगंज के विधायक राकेश प्रताप सिंह की पत्नी शीलम सिंह को हराकर कुर्सी हथिया ली थी।
भाजपा के दावेदारों की भीड़, सपा की भी तैयारी तेज
अमेठी, तिलोई, गौरीगंज और जगदीशपुर-इन चार विधानसभा क्षेत्रों में कुल 36 जिला पंचायत सदस्य होते हैं। भाजपा में इस बार अध्यक्ष पद की चाहत रखने वालों की एक लंबी लिस्ट बताई जा रही है।दूसरी तरफ, सपा थोड़ी मुश्किल में दिख रही है। राकेश प्रताप सिंह सपा छोड़ चुके हैं, और अब पार्टी के पास कोई बहुत मजबूत चेहरा नहीं दिखता। हालांकि, स्थानीय लोग बताते हैं कि विधायक खुद भी फिर से इस पद पर नजर जमाए बैठे हैं।राजेश मसाला को 2022 में टिकट मिलने की चर्चा खूब उड़ी थी, परंतु अंतिम समय में मामला बदल गया और डॉ. संजय सिंह मैदान में उतार दिए गए—जो कांग्रेस छोड़कर भाजपा में आए थे। राजनीति में ऐसे मोड़ अक्सर देखने को मिलते हैं।
कांग्रेस ने भी कसी कमर
कांग्रेस के पूर्व जिला अध्यक्ष बृजेंद्र शुक्ल का कहना है कि पार्टी इस बार पंचायत चुनाव को हल्के में नहीं लेगी।अमेठी में अब कांग्रेस सांसद मौजूद हैं, जिससे कार्यकर्ताओं में एक अलग उत्साह दिखता है। स्थानीय स्तर की रणनीति को अंतिम रूप देने के लिए जल्द ही राहुल गांधी से मुलाकात की बात भी सामने आ रही है।
खेतों में फुसफुसाहट, बाजार में बहसें
इन दिनों गांवों में हल्की-हल्की हलचल साफ महसूस होती है। खेत किनारे खड़े होकर किसान भी अपनी-अपनी पसंद का उम्मीदवार बताते मिल जाते हैं।शाम को चौराहों पर बैठकी होती है, और रात की दवा-दूध की दुकानों पर भी चुनावी चर्चा छिड़ी रहती है।ग्राम पंचायत का चुनाव भले ही स्थानीय हो, लेकिन इसका असर पूरे इलाके की राजनीति पर पड़ता है। यही वजह है कि इस बार हलचल थोड़ा ज्यादा दिखाई दे रही है।अगले कुछ हफ्तों में यह सरगर्मी और बढ़नी तय है। अमेठी हमेशा राजनीति का बड़ा अखाड़ा रहा है-और इस बार भी यहां कोई बड़ा उलटफेर हो जाए तो किसी को हैरानी नहीं होगी।
