गंगा दशहरा पर काशी के घाटों पर उमड़ा जनसैलाब: भक्तों ने लगाई आस्था की डुबकी, जानिये क्या है महत्व

Ganga Dussehra 2025 : वाराणसी, उत्तर प्रदेश। धर्मनगरी काशी में आज गंगा दशहरा मौके पर घाट पर आस्था का जनसैलाब उमड़ा हुआ दिखाई दे रहा है। गंगा दशहरा के अवसर पर काशी के घाटों, खासकर दशाश्वमेध घाटों पर हजारों की संख्या में श्रद्धालु गंगा में पवित्र डुबकी लगाने के लिए पहुंचे हैं। इस दौरान श्रद्धालुओं ने दीपदान, गंगा आरती की और मंत्रोच्चार किया। आइये जानते हैं क्या है इस ख़ास दिन का पौराणिक महत्त्व ...।
दशाश्वमेध घाट के पुजारी विवेकानंद ने बताया कि, "आज ज्येष्ठ मास का शुक्ल पक्ष है, जिसे हम गंगा दशहरा के रूप में मनाते हैं। यह दिन इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि भागीरथ ने गंगा मां को धरती पर लाने के लिए घोर तपस्या की थी। वहीँ गुजरात के एक श्रद्धालु विजय महाराज ने कहा कि, "सनातन धर्म में गंगा दशहरा का बहुत महत्व है। ऐसा माना जाता है कि इसी दिन गंगा प्रकट हुई थीं, इसलिए हम इसे गंगा दशहरा के रूप में मनाते हैं।
गंगा का पौराणिक महत्व
हिन्दू धर्म में गंगा को पवित्रता और मोक्ष का प्रतीक माना जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, गंगा का उद्भव भगवान विष्णु (Lord Vishnu) के चरणों से हुआ। यह नदी भगवान शिव (Lord Shiva) की जटाओं में निवास करती है। शिव ने अपनी जटाओं को सात धाराओं में विभाजित किया, जिनके नाम हैं: नलिनी , हृदिनी , पावनी , सीता , चक्षुष , सिंधु और भागीरथी। इनमें से भागीरथी को ही गंगा के रूप में जाना जाता है, जो आत्मा को मुक्ति प्रदान करती है।
गंगा दशहरा पर क्या करें?
गंगा दशहरा (Ganga Dussehra 2025) के दिन पवित्र नदी, विशेषकर गंगा में स्नान करना अत्यंत शुभ माना जाता है। इस अवसर पर तिल और गुड़ में घी मिलाकर जल में प्रवाहित करें या पीपल के पेड़ के नीचे अर्पित करें। मां गंगा की पूजा करें और उनके मंत्रों का जाप करें। पूजा में उपयोग होने वाली सामग्री की संख्या दस होनी चाहिए, जैसे दस दीपक जलाना। दान-पुण्य में दस ब्राह्मणों को भोजन कराएं और सोलह मुट्ठी अनाज दान करें।
कैसे हुआ गंगा का अवतरण?
पौराणिक कथा के अनुसार, महाराज सगर ने एक विशाल यज्ञ का आयोजन किया। उनके पौत्र अंशुमान को यज्ञीय अश्व की रक्षा का दायित्व मिला। इंद्र ने अश्व का अपहरण कर लिया, जिससे यज्ञ में व्यवधान उत्पन्न हुआ। अंशुमान ने सगर की साठ हजार प्रजा के साथ अश्व की खोज शुरू की।
पूरी पृथ्वी छानने के बाद भी अश्व नहीं मिला। तब पाताल लोक में खोज के लिए पृथ्वी की खुदाई की गई। वहां उन्होंने देखा कि महर्षि कपिल तपस्या में लीन थे और उनके पास सगर का अश्व चर रहा था। प्रजा ने महर्षि को चोर समझकर शोर मचाया, जिससे उनकी समाधि भंग हो गई। क्रोधित महर्षि ने अपने आग्नेय नेत्रों से प्रजा को भस्म कर दिया।
इन मृत आत्माओं के उद्धार के लिए महाराज दिलीप के पुत्र भगीरथ ने कठोर तपस्या की। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्मा ने वर मांगने को कहा। भगीरथ ने गंगा को पृथ्वी पर लाने की प्रार्थना की। ब्रह्मा ने बताया कि गंगा का वेग केवल भगवान शिव ही संभाल सकते हैं। भगीरथ ने शिव की तपस्या की, और शिव ने गंगा की धारा को अपनी जटाओं में समेट लिया। जब गंगा को बाहर निकलने का मार्ग नहीं मिला, तो भगीरथ ने पुनः तप किया।
अंततः शिव ने गंगा को मुक्त किया और यह हिमालय की घाटियों से मैदानों की ओर बही। भगीरथ ने गंगा को पृथ्वी पर लाकर मानवजाति को कृतार्थ किया। गंगा जीवनदायिनी और मोक्षदायिनी है, और इसकी महिमा विश्वभर में गाई जाती है।
