पंचायतों के विकास में अड़ंगा लगा रहा राजस्व विभाग, पंचायत मंत्रालय तक पहुँच रही हैं शिकायतें

प्रदेश सरकार राजधानी में त्रि-स्तरीय पंचायतों के विकास के लिए मंथन में जुटी है। भोपाल स्थित कुशाभाऊ ठाकरे भवन में पंचायतों को विकसित करने से लेकर उन्हें आत्मनिर्भर बनाने तक पर विभाग के कर्ताधर्ताओं से लेकर पंचायत विशेषज्ञों ने अपने अनुभव और सुझाव साझा किए। इसी बीच एक बड़ा तथ्य सामने आया है कि जमीनी स्तर पर पंचायतों के विकास में राजस्व अमला अड़ंगा लगा रहा है।
केंद्र और राज्य सरकार से पंचायतों के लिए स्वीकृत होने वाले निर्माण कार्यों के सीमांकन में राजस्व विभाग के कर्मचारी टालमटोल कर रहे हैं। प्रदेश के अलग-अलग हिस्सों से ऐसी शिकायतें भोपाल तक पहुँच रही हैं। राजधानी के कुशाभाऊ ठाकरे भवन में आयोजित पंचायत विभाग की कार्यशाला में राज्य के विभिन्न जिलों से आए त्रि-स्तरीय (ग्राम, जनपद और जिला) पंचायत प्रतिनिधियों ने भी सरकार के सामने यह आपत्ति दर्ज कराई कि पंचायत में बनने वाले भवनों आदि के लिए जमीन का सीमांकन करने में राजस्व विभाग रुचि नहीं लेता। प्रस्ताव स्वीकृति के बाद भी कई महीनों तक सीमांकन से जुड़े आवेदन तहसील कार्यालय से अनुविभागीय अधिकारी कार्यालय तक अटके रहते हैं।
इन कामों में लगा रहे रोड़े
दरअसल पंचायतों में पंचायत भवन, सामुदायिक भवन एवं अन्य विभागों के प्रस्तावित निर्माण कार्य, विशेषकर भवन निर्माण, के लिए राजस्व विभाग का सीमांकन अनिवार्य होता है। कुछ वर्ष पहले तक गाँवों में राजस्व विभाग की काफी जमीन खाली रहती थी, जिससे पंचायतें अपने स्तर पर बिना सीमांकन के ही निर्माण कर लेती थीं। लेकिन अब बिना सीमांकन के निर्माण कार्य शुरू करना संभव नहीं है।
कुछ पंचायत प्रतिनिधियों का कहना है कि सीमांकन के बदले राजस्व अमला अब अनैतिक मांगें भी करने लगा है। यदि मांगें पूरी न हों तो सीमांकन संबंधी प्रकरणों को किसी न किसी बहाने महीनों तक लटकाया जाता है। इस तरह की शिकायतें पंचायत मंत्री प्रहलाद पटेल, मुख्यमंत्री कार्यालय और पंचायत विभाग के अधिकारियों तक पहुँचाई गई हैं।
ऐसे मामलों में गंभीर नहीं कलेक्टर
आमतौर पर सरकारी तंत्र में यह धारणा है कि ग्राम पंचायतों में ज्यादातर कार्यों में भ्रष्टाचार होता है। पंचायतों के भ्रष्टाचार को लेकर पूर्व में विधानसभा में कई बार विधायकों द्वारा प्रश्न उठाए जा चुके हैं। निर्माण कार्यों की मंजूरी से लेकर भुगतान तक कमीशनखोरी के आरोप भी विधानसभा में लग चुके हैं। इसी कारण अन्य विभागों के अधिकारी भी पंचायतों को लेकर शंकालु रहते हैं।
पंचायत प्रतिनिधियों का कहना है कि सीमांकन संबंधी प्रकरणों को जिला कलेक्टर भी गंभीरता से नहीं लेते। जनपद पंचायत और जिला पंचायत के मुख्य कार्यपालन अधिकारी इसे राजस्व विभाग का मामला बताकर कोई दखल नहीं देते।
इनका कहना है
“मेरी जानकारी में ऐसा कोई मामला नहीं है। यदि कोई जानकारी हो कि किसी राजस्व अधिकारी ने जानबूझकर पंचायतों का काम रोका है, तो बताइए-उसके खिलाफ कार्रवाई करेंगे।”
- करण सिंह वर्मा, मंत्री, राजस्व विभाग
