तानसेन समारोह: उस्ताद अमजद अली के सरोद ने गाया ‘वंदे मातरम्’, सुरों में डूबी ग्वालियर की शाम

तानसेन संगीत समारोह के दूसरे दिन की सायंकालीन सभा में शास्त्रीय संगीत के विविध रंग देखने को मिले। विख्यात सरोद वादक पद्म विभूषण उस्ताद अमजद अली खां और उनके सुपुत्र अमान अली व अयान अली के सरोद वादन ने समारोह को यादगार बना दिया। देशभक्ति से ओतप्रोत ‘वंदे मातरम्’ की मधुर धुन पर श्रोता भावविभोर हो उठे, वहीं खयाल गायन और ध्रुपद की प्रस्तुतियों ने संगीत प्रेमियों को रस में डुबो दिया।
ध्रुपद से सजी सायंकालीन सभा की शुरुआत
सायंकालीन सभा का शुभारंभ ध्रुपद केंद्र, ग्वालियर के विद्यार्थियों द्वारा राग पूरिया धनाश्री की प्रस्तुति से हुआ। सुरताल की बंदिश “ऐसी छवि तोड़ी समझत नाही” को आलाप, मध्यलय और द्रुत लय में प्रस्तुत करते हुए विद्यार्थियों ने डागरवाणी परंपरा की झलक दिखाई। बंदिश की रचना गुरु अभिजीत सुखदाने की थी, जबकि पखावज पर जगत नारायण शर्मा ने सशक्त संगत की।
राग श्री में अमान–अयान का प्रभावी सरोद वादन
इसके बाद मंच पर आए अमान अली और अयान अली ने राग श्री की प्रस्तुति से श्रोताओं को बांध लिया। पूर्वी ठाट के इस गंभीर और आध्यात्मिक राग को उन्होंने विस्तृत आलाप से साकार किया। झपताल में विलंबित गत और तीनताल में झाला ने उनकी तकनीकी दक्षता और संगीत पर पकड़ को दर्शाया। उनकी जुगलबंदी में परंपरा और नवीनता का सुंदर संगम दिखाई दिया।
अमजद अली खां की धुनों में देशभक्ति का रंग
इसके पश्चात उस्ताद अमजद अली खां ने मंच संभालते हुए सरोद पर मनोहारी धुनें प्रस्तुत कीं। महात्मा गांधी के प्रिय भजन “वैष्णव जन तो तेने कहिए”, “रघुपति राघव राजा राम” और अंत में “वंदे मातरम्” की प्रस्तुति ने वातावरण को देशभक्ति और भावनाओं से भर दिया। उनकी वादन शैली में स्वर की स्पष्टता, मींड और गमक की कोमलता तथा भावपूर्ण अभिव्यक्ति ने श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया। तबले पर रामेंद्र सोलंकी ने संगत की।
ध्रुपद से शुरू हुई सुबह की सभा
इससे पूर्व सुबह की सभा में भारतीय संगीत महाविद्यालय, ग्वालियर के विद्यार्थियों ने राग भटियार में चौताल की बंदिश प्रस्तुत की। संगीत गुरु संजय देवले की रचना को विद्यार्थियों ने मनोयोग से निभाया। पखावज पर संजय आफले, हारमोनियम पर वर्षा मित्रा और संगत में अनुव्रत चटर्जी ने सराहनीय भूमिका निभाई।
