इंदौर में 3 साल की बच्ची का संथारा: धार्मिक प्रक्रिया के कुछ ही देर बाद मौत, गोल्डन बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में दर्ज हुआ मामला

इंदौर में 3 साल की बच्ची का संथारा
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इंदौर में 3 साल की बच्ची का संथारा

मध्यप्रदेश। इंदौर में ब्रेन ट्यूमर की बीमारी से पीड़ित 3 साल की बच्ची को संथारा दिलाया गया है। बच्ची के माता - पिता ने जैन मुनि श्री के सुझाव पर इस प्रक्रिया के लिए सहमति दी। इतनी कम उम्र में संथारा लेने का यह पहला मामला है और इसी कारण यह देश भर में चर्चा का विषय बन गया है। इस मामले को गोल्डन बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में दर्ज किया गया है।

जानकारी के अनुसार बच्ची का मुंबई में इलाज चल रहा था। बच्ची के माता - पिता उसे जैन मुनि श्री के पास लेकर गए थे। इसके बाद उन्होंने संथारा का सुझाव दिया। क्योंकि बच्ची के माता - पिता लम्बे समय से मुनि श्री के अनुयायी थे इसलिए उन्होंने मुनि श्री की बात मान ली।

धार्मिक प्रक्रिया शुरू होने के कुछ मिनट बाद ही बच्ची का निधन हो गया। दावा किया जा रहा है कि, इतनी कम उम्र में संथारा लेने वाला यह पहला मामला है इसी कारण जैन समाज के लोगों ने बच्ची के माता - पिता का सम्मान किया। बच्ची का नाम वियाना है और वो अपने माता - पिता की एकलौती औलाद थी।

वियाना को ब्रेन ट्यूमर है, इस बात की जानकारी उसके माता - पिता को एक साल पहले ही लगी। इंदौर और मुंबई में बच्ची का इलाज करवाया गया। जब इलाज का कोई असर नहीं दिखा तो बच्ची के माता - पिता उसे लेकर आध्यात्मिक संकल्प अभिग्रह-धारी राजेश मुनि महाराज के पास ले गए।

जैन मुनि इसके पहले 107 संथारा करवा चुके हैं। इसी के चलते परिजनों ने संथारा की सहमति दी। संथारा की धार्मिक प्रक्रिया शुरू होने के कुछ मिनट बाद बच्ची ने प्राण त्याग दिए। इस बारे में बच्ची के परिजनों ने अपने करीबियों को ही जानकारी दी।

क्या होता है संथारा :

जैन धर्म में, संथारा, जिसे सल्लेखना के नाम से भी जाना जाता है, मृत्यु तक उपवास करने की स्वैच्छिक प्रथा है। इसे आत्महत्या नहीं बल्कि धार्मिक कृत्य माना जाता है और आमतौर पर इसे तब किया जाता है जब मृत्यु निकट होती है ताकि आत्मा को पुनर्जन्म के चक्र से मुक्त किया जा सके। जैन मानते हैं कि यह आत्मा को शुद्ध करने और कर्म ऋण को कम करने का एक तरीका है।

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