शहद के स्वाद में सामने खड़ी मौत को भूल गया समाजः अशोक पांडेय

भोपाल। शहद के स्वाद में सामने खड़ी मौत को हमारा समाज भूल गया है। देश व समाज के लिये समस्या बने कन्वर्जन को लेकर यह टिप्पणी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ मध्य भारत प्रांत संघ चालक अशोक पांडेय की है। वह बतौर मुख्यअतिथि जनजातीय सुरक्षा मंच द्वारा आयोजित संगोष्ठी को संबोधित कर रहे थे। धर्म स्वतंत्रता विधेयक एवं जनजातीय समाज विषय पर यह आयोजन संविधान दिवस के उपलक्ष्य में किया गया था। यहां कन्वर्जन को वर्षों से चल रहा सुनियोजित षडयंत्र बताते हुए उन्होंने उदाहरण रखते हुए इसके लिये मुस्लिम और इसाई समुदाय को जिम्मेदार ठहराया। साथ ही कहा कि पुर्तगाली वास्को-डि-गामा की भारत यात्रा का उद्देश्य व्यापारिक नहीं कन्वर्जन का था।
उन्होंने बताया कि मुस्लिम आक्रांताओं ने जहां शहरी जनता को कन्वर्जन के लिये बाध्य किया। वहीं इसाईयों ने जंगल में रहने वाले वनवासियों को अपने दुष्चक्र का शिकार बनाया है। भारत में होने वाले कन्वर्जन का खर्चा भी ब्रिटिशकाल में भारतीयों से ही वसूल किया गया है। आजादी के बाद कानूनी प्रावधान भी इसे बंद नहीं करा पाये हैं। इसीलिये बाद में सरकार को इसमें संशोधन करना पड़ा है। इन सबके बीच समाज की स्थिति जंगल से गुजर रहे उस राहगीर से की, जो पीछे पड़े शेर से बचने कुएं में तो गिरा, लेकिन नीचे उसका भूखा शेर इंतजार कर रहा है। जिस पेड़ पर उलझा उसे चूहे काट रहे हैं। बावजूद इसके वह मुंह भी में गिर रही शहद के स्वाद में अपनी मौत को भूल रहा है। वनवासी कल्याण परिषद मध्य भारत प्रांत कार्यालय सभाकक्ष में हुए इस कार्यक्रम में मुख्य वक्ता राजगढ़ ब्यावरा जिला न्यायधीश रजनी प्रकाश उइके रहीं। जबकि इसकी अध्यक्षता स्टेट जीएसटी कमिश्नर प्रतिभा नरवरिया द्वारा की गई।
लालच या जबरन कन्वर्जन की अनुमति नहीं देता कानून
मुख्य वक्ता रजनी प्रकाश ने कहा कि लालच या जबरन कन्वर्जन की अनुमति हमारा कानून नहीं देता है। विधेयक के कानूनी प्रावधानों का विस्तृत विश्लेषण प्रस्तुत करते हुए बताया कि यह कानून जनजाति समुदाय की सांस्कृतिक और धार्मिक अस्मिता को मजबूती प्रदान करता है। वहीं अध्यक्षता कर रहीं उन्होंने कहा कि जनजाति समाज के उत्थान के लिए आवश्यक है कि उन्हें धर्म की स्वतंत्रता और उससे जुड़े कानूनी अधिकारों के प्रति पूर्ण जागरूक किया जाए। उन्होंने विधिक जागरूकता को जनजाति समाज के सशक्तिकरण का आधार बताया।
