जान से खिलवाड़: 3 साल से बिना लाइसेंस के चल रहा ब्लड बैंक

जान से खिलवाड़: 3 साल से बिना लाइसेंस के चल रहा ब्लड बैंक
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अव्यवस्थाओं का गढ़ बना ग्वालियर का मुरार जिला अस्पताल, धूल खा रही 30 लाख की मशीन

ग्वालियर के मुरार जिला अस्पताल बीते कई वर्षों से अव्यवस्थाओं का गढ़ बना हुआ है, लेकिन इस बार मामला अत्यंत गंभीर है। अस्पताल का ब्लड बैंक न केवल बदहाल है, बल्कि पिछले तीन वर्षों से बिना लाइसेंस के संचालित हो रहा है। जिम्मेदारों की लापरवाही का आलम यह है कि 2022 में लाइसेंस समाप्त होने के बाद भी इसे नवीनीकृत नहीं कराया गया और उसी स्थिति में रक्त का वितरण लगातार जारी है। बड़ा सवाल यह है कि बिना वैध अनुमति के ब्लड बैंक कैसे चल रहा है और इस जोखिम की जवाबदेही कौन लेगा।

जानकारी के अनुसार, मुरार जिला अस्पताल के ब्लड बैंक का लाइसेंस वर्ष 2022 में ही समाप्त हो गया था। लाइसेंस खत्म होने के बाद इसके नवीनीकरण के लिए आवेदन तो किया गया, लेकिन विभागीय खामियों और अधूरी व्यवस्थाओं के कारण आवेदन बार–बार खारिज होता रहा। परिणामस्वरूप पिछले तीन वर्षों से यह ब्लड बैंक बिना लाइसेंस के ही संचालित हो रहा है, जो स्वास्थ्य मानकों के साथ सीधा खिलवाड़ है। हैरानी की बात यह है कि लाइसेंस न होने के बावजूद ब्लड बैंक से रोजाना ब्लड की आपूर्ति जारी है।

उधर, अस्पताल प्रशासन ने करीब तीन महीने पहले ब्लड बैंक को नए भवन में शिफ्ट किया था, लेकिन शिफ्टिंग के बाद भी हालात जस के तस हैं। ब्लड कंपोनेंट सेपरेटर मशीन, जिसकी कीमत 30 लाख रुपये से अधिक बताई जा रही है, आज भी बंद पड़ी धूल खा रही है। मशीन चालू न होने के कारण मरीजों को केवल होल ब्लड ही उपलब्ध कराया जा रहा है, जबकि पैक्ड सेल, प्लेटलेट्स और प्लाज्मा जैसी सुविधाओं की सबसे अधिक जरूरत प्रसूता महिलाओं, बच्चों, थैलेसीमिया, हृदय रोगियों और गंभीर मरीजों को होती है।

मशीन शुरू होने से यह मिलेगी सुविधा

मुरार जिला अस्पताल और जच्चा घर में रोजाना 1,000 से अधिक मरीज आते हैं।

गर्भवती महिलाओं, बच्चों, हृदय रोगियों, एनीमिया और थैलेसीमिया के मरीजों को अक्सर पैक्ड सेल की जरूरत पड़ती है।

मशीन चालू होने से होल ब्लड के साथ पैक्ड सेल, प्लेटलेट्स, प्लाज्मा आदि उपलब्ध हो सकेंगे।

मरीजों को अन्य अस्पतालों की दौड़ नहीं लगानी पड़ेगी।

हजार से अधिक मरीज पहुँचते हैं उपचार के लिए

जिला अस्पताल और इससे जुड़े जच्चा घर में प्रतिदिन 1,000 से अधिक मरीज उपचार के लिए आते हैं। ऐसे में ब्लड कंपोनेंट की सुविधा का न होना एक गंभीर कमी है।

जयारोग्य अस्पताल की लगानी पड़ती है दौड़

वर्तमान में पैक्ड सेल की सुविधा केवल जयारोग्य अस्पताल के ब्लड बैंक में उपलब्ध है। पैक्ड सेल की जरूरत पड़ने पर मरीजों को मजबूरन जयारोग्य अस्पताल जाना पड़ता है। कई बार दूरी और समय की देरी के कारण मरीजों की स्थिति गंभीर हो जाती है।

इनका कहना है

“ब्लड बैंक के लाइसेंस के लिए हाल ही में टीम ने निरीक्षण किया है। जल्द ही लाइसेंस मिल जाएगा, जिसके बाद ब्लड बैंक में सारी सुविधाएँ शुरू कर दी जाएँगी।”

- डॉ. आर.के. शर्मा, सिविल सर्जन, जिला अस्पताल

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