‘पटोल बाबू’ ने छुआ दिल: माखनलाल विवि में गुमनाम स्टार की मार्मिक कहानी का मंचन

माखनलाल विवि में सत्यजीत रे की प्रसिद्ध कहानी ‘फिल्म स्टार पटोल बाबू’ पर आधारित नाटक का मंचन हुआ। नाट्य रूपांतरण दिनेश नायर ने किया है। सवा घंटे का यह नाटक एक ऐसे अभिनेता की मार्मिक कथा है, जो साठ के दशक में सुपरहिट रहा, लेकिन लोकप्रियता और कमाई संभाल न सका। मुंबई सिनेमा में भगवान दादा और भारत भूषण जैसे कलाकारों की कहानियाँ इसी हकीकत की याद दिलाती हैं।
गुमनामी में जी रहा पुराना सुपरस्टार
केंद्रीय पात्र पटोल बाबू अब साठ पार के हैं। घर की दीवार पर लगी स्वर्गीय पत्नी से बातें करते-करते वे कभी अतीत में लौट जाते हैं और अपनी जवानी की यादों के साथ जीवंत हो उठते हैं। गुजारे के लिए वे छोटे-छोटे रोल करते हैं और अपने पुराने दृश्यों को पूरे जोश से दोहराते हैं।
नया मौका और एक शब्द का डायलॉग
नाटक में दो नौजवान भी हैं, जिनमें से एक को अपने निर्देशक की फिल्म के लिए थिएटर जानने वाले वरिष्ठ कलाकार की तलाश है। यह तलाश पटोल बाबू पर आकर ठहरती है। उन्हें सीन दिया जाता है कि मशहूर अभिनेत्री चंचलकुमारी सड़क पार कर रही हैं और उनसे टकराती हैं। डायलॉग सिर्फ एक शब्द का है- “ओह!”
अंतिम दृश्य और भावुक अंत
लेकिन पटोल बाबू सुझाव देते हैं कि अखबार पढ़ते हुए टकराना अधिक स्वाभाविक लगेगा। निर्देशक को बात जँच जाती है और सीन एक ही टेक में पूरा हो जाता है। बाद में वे एक लंबा संवाद वाला दृश्य भी सहजता से निभा लेते हैं। कैमरा-लाइट-क्लैप... और पूरा संवाद बोलते-बोलते वे गिर पड़ते हैं। डॉक्टर की चेतावनी सच साबित होती है और मंच पर ही उनकी जीवन-यात्रा समाप्त हो जाती है।
