उज्जयिनी में आकार ले रहा है वीर भारत संग्रहालय: शिवाजी के रणकक्ष से चंद्रगुप्त के दरबार तक त्रि-आयामी यात्रा

इतिहास होगा सजीव और परंपरा आलोकित
भोपाल। क्या आपने कभी मन में कल्पना की है कि छत्रपति शिवाजी महाराज का रणकक्ष कैसा रहा होगा, जहाँ रणनीति और पराक्रम एक साथ गूंजते थे ? अथवा चंद्रगुप्त मौर्य का राजसभा मंडप, जहाँ नीति, न्याय और वैभव का संगम होता था ? शीघ्र ही आपको यह सब प्रत्यक्ष अनुभव करने का अवसर मिलेगा – त्रि-आयामी दृश्य और संवर्धित वास्तविकता के साथ भारत की सभ्यता, संस्कृति और शौर्य की यह शाश्वत यात्रा आप जल्द ही देख पाएंगे उज्जयिनी में निर्मित हो रहे ‘वीर भारत संग्रहालय’ में। यह अनूठा संग्रहालय सिंहस्थ–2028 से पूर्व बनकर तैयार हो जायेगा।
सिंहस्थ और सांस्कृतिक पुनरुत्थान
प्रत्येक 12 वर्ष पश्चात् सम्पन्न होने वाला सिंहस्थ महाकुंभ विश्व का विराटतम आध्यात्मिक आयोजन माना जाता है। अनुमान है कि मांस पर्यंत चलने वाले इस पर्व में 12 करोड़ से अधिक श्रद्धालु उज्जयिनी में स्नान एवं साधना हेतु आएंगे। इसी पावन पृष्ठभूमि में मध्य प्रदेश शासन उज्जयिनी को एक नवीन सांस्कृतिक आकर्षण प्रदान कर रहा है- एक ऐसा संग्रहालय जहाँ इतिहास सजीव होगा और परंपरा आधुनिक तकनीक से आलोकित।
इतिहास का डिजिटल पुनर्जागरण
इस महायोजना का दायित्व ‘वीर भारत न्यास’ को सौंपा गया है- एक ट्रस्ट जो भारत के गौरवपूर्ण अध्यायों को बहु-माध्यमीय प्रस्तुति के माध्यम से पुनर्जीवित करने का संकल्प लिए है। संग्रहालय का निवास-स्थान होगा ऐतिहासिक कोठी पैलेस, जिसे मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने इस परियोजना हेतु समर्पित किया है। मार्च में भूमि-पूजन सम्पन्न हो चुका है, और अब भवन के पुनरुद्धार का कार्य तीव्र गति से प्रगति पर है।
प्राचीन शिल्प, आधुनिक तकनीक
करीब 40 एकड़ क्षेत्र में विस्तृत इस संग्रहालय का प्रथम चरण दिसंबर 2027 तक पूर्ण करने का लक्ष्य है। इसकी अनुमानित लागत 25 से 30 करोड़ रुपये के मध्य है। उज्जैन स्मार्ट सिटी के अधीक्षण अभियंता नीरज पांडे बताते हैं- “हम कोठी पैलेस की मूल स्थापत्य-परंपरा को अक्षुण्ण रखते हुए चूने, गुड़, बेल और टेराकोटा जैसी पारंपरिक सामग्रियों से मरम्मत कर रहे हैं।”
शैल कला से लेकर नदी सभ्यता तक
यहाँ भारत की प्राचीनतम शैल चित्रकला मंदसौर की दारकी चट्टान और भीमबेटका के 30 ,000 वर्ष प्राचीन चित्र- डिजिटल रूप में जीवंत होंगे। संग्रहालय में केवल कलाकृतियाँ या अस्त्र–शस्त्र ही नहीं, बल्कि त्रि–आयामी प्रदर्शनी, संवादात्मक स्क्रीनें और श्रव्य–दृश्य कथाएँ होंगी। प्रदर्शन भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, नासा तथा ऑस्ट्रेलिया के मोनाश विश्वविद्यालय जैसे संस्थानों के अनुसंधानों पर आधारित होंगे।
नदियों पर विकसित सभ्यताओं- जैसे क्षिप्रा तट पर फली-फूली 4,000 वर्ष पुरानी काय-अथ संस्कृति- और नर्मदा तट की जनजातीय जीवनधारा का भी वैज्ञानिक व सांस्कृतिक पुनर्निर्माण किया जाएगा। साथ ही धोलावीरा जैसे अल्पज्ञात किंतु ऐतिहासिक स्थलों को भी समुचित स्थान मिलेगा।
2026 तक संरचना पूर्ण
वर्तमान में कोठी पैलेस की शुद्धि एवं मरम्मत का कार्य प्रगति पर है। मार्च 2026 तक यह भवन न्यास को सुपुर्द किया जाएगा। तत्पश्चात कलाकारों, डिज़ाइनरों एवं तकनीकी विशेषज्ञों की टीम त्रि–आयामी कक्षों, थीम–गैलरियों तथा अंतःक्रियात्मक अनुभवों की रचना करेगी।
भारत की आत्मा का दृश्य आख्यान होगा संग्रहालय
न्यास के सचिव एवं मुख्यमंत्री के सांस्कृतिक सलाहकार श्रीराम तिवारी कहते हैं- “हम केवल संग्रहालय नहीं बना रहे, यह भारत की आत्मा का दृश्य आख्यान होगा, जहाँ आगंतुक सहस्राब्दियों की यात्रा करेंगे- नदियों, ऋषियों, सम्राटों और महाकाव्यों के मध्य।” वे कहते हैं “यह संग्रहालय हमारे अतीत को भावी पीढ़ियों के लिए सहेजेग ताकि भारत की सभ्यता केवल ग्रंथों में नहीं, अनुभवों में भी सजीव रहे।” उन्होंने बताया की संग्रहालय का काम जोर शोर से चल रहा है भवन के अलावा इससे जुड़े दूसरे काम भी निरन्तर जारी हैं।
