Nag Panchami: अद्भुत है नागचंद्रेश्वर मंदिर की कथा, हर साल नागपंचमी पर उमड़ती है भक्तों की भीड़

अद्भुत है नागचंद्रेश्वर मंदिर की कथा, हर साल नागपंचमी पर उमड़ती है भक्तों की भीड़
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Nag Panchami Nagchandreshwar Mandir Ki Kahani : मध्यप्रदेश। उज्जैन का महाकाल मंदिर विश्व में प्रसिद्ध है यहां भक्त साल के 365 दिन बाबा महाकाल के दर्शन कर सकते हैं। इसी उज्जैन में एक मंदिर ऐसा है जहां साल में सिर्फ एक दिन भक्तों को अपने भगवान के दर्शन करने का सौभाग्य प्राप्त होगा है। यह मंदिर है नागचंद्रेश्वर मंदिर, जो सिर्फ एक मंदिर नहीं बल्कि श्रद्धा, परंपरा, ऊर्जा और रहस्य का अद्वितीय संगम है।

नागपंचमी के अवसर पर सोमवार रात 12 बजे से मंदिर के पट खुल गए हैं। श्रद्धालु मंगलवार रात 12 बजे तक यहां दर्शन कर पाएंगे। महाकालेश्वर मंदिर की ऊपरी मंजिल पर स्थित नागचंद्रेश्वर मंदिर में दर्शन के लिए श्रद्धालु सोमवार रात 11 बजे से कतार में लग गए थे।

नागचंद्रेश्वर मंदिर के अद्भुत रहस्य

महाकालेश्वर मंदिर की ऊपरी मंजिल पर नागचंद्रेश्वर मंदिर, साल में सिर्फ एक बार नाग पंचमी के दिन खुलता है। बाकी के 364 दिन यह मंदिर पूरी तरह बंद रहता है। न कोई प्रवेश, न कोई दर्शन।

मंदिर सिर्फ एक दिन ही क्यों खुलता है?

इसका जवाब परंपरा, ऊर्जा और आध्यात्मिकता में छिपा है। यहां भगवान शिव, माता पार्वती और शेषनाग की दुर्लभ मूर्ति है। भगवान शिव शेषनाग के फनों पर विराजमान हैं और उनके मस्तक पर चंद्रमा सुशोभित है। इसे अत्यंत जागृत और ऊर्जावान मूर्ति माना जाता है।

नागचंद्रेश्वर मंदिर से जुड़ी पौराणिक कथा :

इस मंदिर से जुड़ी पौराणिक कथा बेहद रोचक है। माना जाता है कि, सर्प राज तक्षक ने भगवान शिव को मनाने के लिए तपस्या की थी। सर्प राज तक्षक की कड़ी तपस्या से भगवान शिव प्रसन्न हुए। उन्होंने सर्प राज तक्षक को अमरत्व का वरदान दिया। इसके बाद से सर्प राज तक्षक भगवान के शिव के सानिध्य में रहने लगे। भगवान शिव जब वन में वापस चले गए तब से वे एकांत में रहने लगे। सर्प राज की इसी मंशा के अनुसार, सिर्फ नागपंचमी पर नागचंद्रेश्वर मंदिर के द्वार खोले जाते हैं।

11 वीं शताब्दी की अद्भुत प्रतिमा :

नागचंद्रेश्वर मंदिर अद्भुत प्रतिमा 11 वीं शताब्दी की है। उज्जैन के अलावा ऐसी प्रतिमा और कहीं नहीं है। इसे नेपाल से उज्जैन लाया गया था। इस प्रतिमा की सबसे रोचक बात यह है कि, अक्सर भगवान विष्णु सर्पशैय्या पर विराजमान होते हैं लेकिन इसमें भगवान शिव और पार्वती सर्पशैय्या पर विराजमान हैं।

ऐसा भी माना जाता है कि, मंदिर में दर्शन के बाद व्यक्ति सर्पदोष से मुक्त हो जाता है। इसी के चलते मंदिर में नागपंचमी के अवसर पर भक्तों की लंबी कतार लगी होती है। परमार राजा भोज द्वारा 1050 ईस्वी में मंदिर का निर्माण कार्य करवाया गया था। सिंधिया घराने के महाराजा राणोजी सिंधिया द्वारा साल 1732 में इसका जीर्णोद्धार किया गया।

नागपंचमी पर यहां विशेष पूजा, सुरक्षा और सीमित समय के लिए दर्शन कराए जाते हैं। यह परंपरा उज्जैन में सैकड़ों सालों से चलती आ रही है।

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