खतरे में बाघों का कुनबा: बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व की सीमाओं का जंगल घटा, प्रबंधन को होश नहीं

Bandhavgarh Tiger Reserve
हाइलाइट्स :
- एक जुलाई 2025 के 3-डी उपग्रह चित्रों से हुआ खुलासा।
- टाइगर रिजर्व के प्रबंधन को होश नहीं।
- सिमटता कोर जोन बन रहा बाघों में आपसी संघर्ष का कारण।
Bandhavgarh Tiger Reserve : सदानंद जोशी उमरिया। देश के सबसे घने बाघ आवास क्षेत्र बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व के जंगल अब सिमटते जा रहे हैं। इसका खुलासा एक जुलाई 2025 को गूगल से निकाली गई ताजा 3-डी उपग्रह इमेज ने किया है। गंभीर बात यह है कि, सिमटते जंगल से आने वाले खतरों को लेकर टाइगर रिजर्व प्रबंधन अब भी बेपरवाह है।
गूगल इमेज में साफ दिखाई दे रहा है कि इस टाइगर रिजर्व के बफर जोन में जंगलों का तेजी से दोहन हुआ है। कई इलाकों में अब जंगल का नामोनिशान तक नहीं बचा। यह स्थिति केवल पारिस्थितिकी नहीं, बल्कि वन प्रशासन की नीयत और नीति पर भी बड़ा सवाल खड़ा कर रही है। हालांकि उपग्रह चित्रों में कुछ क्षेत्र अब भी सघन हरियाली से भरे नजर आ रहे हैं।
उपग्रह चित्र बता रहे कोर व बफर जोन में अंतर :
गूगल 3-डी इमेज इमेज के अनुसार, जिन क्षेत्रों में अब भी अपेक्षाकृत घना जंगल मौजूद है, उनमे मल्हारा, समर, कैनी, चैचपुर, जोहिला फॉल, बागदरी, बड़वाही, मेनवाह, मिली, खुसरवाह, बदरेहल, पठारी, धमोखर, गोहदी, महामन खितौली गेट, कैलाश वाटर पार्क, द रोअरिंग काउंटी, बरतराई, ताली, सलैया, दुबार, पाली, कौडिया, चंदिया, जगुवा, बकेली, बमेरा, उमरिया, सुखदास, चिल्हारी, चंदवार, झाल, चित्रव, खुसरिया, खारी बड़ी, तिखावा, चकरवाहा सहित 37 इलाके शामिल हैं इन क्षेत्रों में 3-डी सैटेलाइट व्यू में गहरा हरा रंग दिखता है, जो घने पेड़ों और जंगलों की उपस्थिति को दर्शाता है। ये क्षेत्र बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व के इर्द-गिर्द वन संपदा के बचे-खुचे आधार हैं।
आधिकारिक रिपोर्ट में भी 14 प्रतिशत वन क्षेत्र घटने की स्वीकारोक्तिः
बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व के लगातार घट रहे वन क्षेत्र के संबंध में आधिकारिक रिपोर्ट में भी इस बात का उल्लेख है कि बीते एक दशक में टाइगर रिजर्व के सीमाई क्षेत्रो में लगभग 14 प्रतिशत वन क्षेत्र कम हुआ है। हालांकि इस आधिकारिक आंकड़े पर सवाल भी उठ रहे हैं क्योंकि 3-डी उपग्रह चित्र इससे संबंधित आंकड़ा कहीं ज्यादा दिखा रहा है। विशेष रूप से बफर जोन की सीमाओं पर यह स्थिति स्लो मोशन डिफॉरेस्टेशन जैसी दिखती है, जिसका मतलब है धीरे-धीरे जंगल का खात्मा।
यहां समाप्त हो गये जंगलः
टाइगर रिजर्व के 10 सीमाई क्षेत्रो में जंगल समाप्त हो चुके हैं। इनमें करौंदी टोला, डोंगरी टोला, डोडका, मारई खुर्द, बरखेड़ा, देवरी, कछुआ, बिजोरी, कटहर, पिपरी टोला शामिल हैं। यहां उपग्रह चित्रों में भूरा और हल्का पीला भूभाग स्पष्ट रूप से दिखता है।
कई क्षेत्रों में रसूखदारों के फार्महाउसः टाइगर रिजर्व की सीमाओं से जुड़े दमन नाला, मझखेता, समाहा टोला, घाट क्षेत्र में कई रसूखदार एवं प्रभावशाली लोगों ने अपने फार्महाउस बना डाले हैं। गूगल के 3-डी इमेज में यह साफ दिखता है कि इन क्षेत्रों में घना जंगल नहीं बचा है और इसी क्षेत्र में बाघों की गतिविधियाँ अचानक कम हुई हैं, जो बाघों के अस्तित्व पर संकट का संकेत है।
सिमटता जंगल बन रहा बाघों के आपसी संघर्ष का कारण:
मध्यप्रदेश ने इस वर्ष सबसे अधिक बाघों को खोया है। जिसमें सबसे अधिक 12 बाघों की मौत बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व में हुई है। इनमें से 40 प्रतिशत बाघों की मौत टाइगर रिजर्व के बाहर हुई है। प्रदेश में 2024 में कुल 38 बाघों की मौत हुई है जिनमें से सबसे अधिक बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व के बाघों की संख्या है। जानकारों के मुताबिक कोर जोन में बाघ सबसे अधिक सुरक्षित रहते हैं परंतु कई बार वे शिकार की तलाश या अन्य कारणों से कोर जोन से बाहर बफर जोन में पहुंच जाते हैं। जहां वे छोटे जानवरों के ट्रैप के लिए लगाये गये इलेक्ट्रिक करंट या जहर का शिकार हो जाते हैं। बफर जोन में अपनी टेरीटरी बनाने का प्रयास भी बाघों के आपसी संघर्ष का कारण बनता है।
अब पारदर्शिता और जवाबदेही की जरूरत:
गूगल की इमेज एक तरह से चेतावनी है कि टाइगर रिजर्व के सीमाई इलाको में कम हो रहे वन क्षेत्रों पर पर्यावरणविद्, सरकार और प्रबंधन को सचेत हो जाना चाहिए। इस संबंध में निम्न बिंदुओं पर ध्यान देने की आवश्यकता है।
यदि सेटेलाइट के रंगो को पढ़ा जाए और सही माना जाए तो टाइगर रिजर्व के सीमाई वन क्षेत्रों में 14 प्रतिशत कमी नीति की विफलता है। बांधवगढ़ के बाहर जंगल के नाम पर जो बचे है, अगर आज उन्हें नहीं बचाया गया तो कल कोर क्षेत्र भी घिर जाएगा। - ललित दुबे, वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता
कोर एरिया में तो घना जंगल है और उसका संरक्षण सुनिश्चित है। बफर एरिया का मूलभूत उद्देश्य ही होता है कि वहां मानव और वन एक साथ सहअस्तित्व में रहें। यह पूरी तरह से संरक्षित क्षेत्र नहीं होता। जहां तक बात उपवाह इमेज की है तो हमारे पास इस तरह के कोई पुख्ता आंकड़े या रिपोर्ट नहीं है। हां, मवेशियों की अवैध चराई, स्थानीय दबाव और मानव हस्तक्षेप के कारण कुछ चुनौतियाँ जरूर हैं। जंगलों को बढ़ाने के लिए लगातार प्रयास किए जा रहे हैं। वृक्षारोपण, चराई नियंत्रण और जागरूकता अभियान जैसी पहल चलाई जा रही है। - पीके वर्मा, डिप्टी डायरेक्टर, बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व उमरिया
सवाल केवल जंगल का नहीं, नीति और नीयत का भी :
धवगढ़ जैसे संरक्षित क्षेत्र के इर्द बा गिर्द यदि वन नीति और जमीनी सच्चाई का फासला इतना बड़ा हो जाए, तो बाघ, पर्यावरण और जैव विविधता केवल फाइलों की भाषा बन कर रह जायेंगे। जरूरी है कि सरकार इस सैटेलाइट चेतावनी को त्वरित टिप्पणी सुने, और जंगल के ऋषि पंडित भीतर की खामोशी को बाहर बहस और निर्णय में बदले। कोर एरिया में तो घना जंगल है और उसका संरक्षण सुनिश्चित है।
बफर एरिया पूरी तरह से संरक्षित क्षेत्र नहीं होता परंतु इस वनआच्छादित क्षेत्र को इसके मूल स्वरूप में संरक्षित रखने की आवश्यकता है। टाइगर रिजर्व क्षेत्र के सीमाई इलाकों में जंगल घटा है या नहीं इस पर पूरी गंभीरता से विश्लेषण किया जाना चाहिए। साथ ही टाइगर मूवमेंट कॉरिडोर और बफर जोन को सुरक्षित रखने की गंभीरता से जरूरत है।
टाइगर रिजर्व को कोर जोन व बफर जोन को यदि फार्महाउस के चंगुल और कंक्रीट के जंगलों से सुरक्षित नहीं किया गया तो सिमटते मूवमेंट कॉरीडोर बाघों एवं अन्य वन्यप्राणियों के आपसी संघर्ष का मैदान बन कर रह जायेंगे। ऐसे में मनुष्य और जानवर दोनों का जीवन खतरे में आ जायेगा। आये दिन वन्यप्राणियों के हमले में लोगों की मौत और आपसी संघर्ष में बाघों की मौत के समाचार जंगली क्षेत्रों से आते रहते हैं। यह स्पष्ट चेतावनी है कि यदि वन क्षेत्रों के संरक्षण को लेकर अब भी नहीं चेते तो भविष्य बड़ा खतरनाक होगा।